फूल और तारा
फूल और तारा
दिन में बगीचे में केवल एक फूल खिलकर मुस्कुरा रहा था और रात के समय आसमान का उर्जावान तारा असंख्य तारों में चमकता हुआ भी निराश था। आखिर फूल से खुशी का राज जानने के लिए सितारे ने फूल से बातों का सिलसिला छेड़ ही दिया।
सितारा-तुम कितने खुशनसीब हो, तुम्हारे कितने चाहने वाले है और मेरा कोई नहीं ?
फूल- शायद यह तकदीर का खेल हो सकता है, मैंने अपना सर्वस्व भौरों तितलियों एवं माली को समर्पित कर दिया है, क्योंकि मैं खुशियां देने के लिए ही खिलता हूँ।
सितारा- (अपने बारे में सोचते हुए) मेरा जीवन तो किसी के काम नहीं आता, मैं तो किसी की राह भी रोशन नहीं कर सकता।
फूल- लेकिन तुम्हारा जो स्थान है, उसे कोई कोई बिरला ही पाता है। तुमसे न जाने कितने भटके लोग दिशा ज्ञान प्राप्त करते हैं और अपनी मंजिल पर पहुंचते हैं।
सितारा- (पुनः उदास होकर) लेकिन तारे आखिर टूटकर बिखर जाते हैं।
फूल- कभी तुमने मेरे बारे में सोचा है ?
सितारा -नहीं।
फूल -मेरी जिन्दगी तो चंद दिनों की होती है। मैं कांटों के बीच में रहता हूं। मैं कांटों की चुभन को भी महसूस करता हूं और फिर भी हंसता खिलखिलाता महकता रहता हूं। मैं तो अपने भाग्य पर कभी दुखी नहीं होता और ना ही इठलाता हूं। मेरी तो अंतिम इच्छा भी यही है कि बिखरने के बाद भी ओंस की बंूद पड़ने से अपनी महक बिखेर सकूं। ताकि मेरा जीवन सफल हो जाये। इतना कहकर फूल चुप हो गया । तारा और फूल दोनों थोड़ी देर चुप रहे। फूल ने ही अपनी बात को आगे बढ़ाया।
वास्तव में आज यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कौन कितने दिनों तक जिया । उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह कि कौन कितने बेहतर तरीके से जिया । आज तारा फूल की दार्शनिक बांते सुनकर अभिभूत हुआ था। सुबह होने को थी, वह तारा अब अपने सम्पूर्ण प्रकाश के साथ मुस्कुरा रहा था। और भोर होते ही वह सबका चहेता बन गया। फूल की प्रेरणा एवं प्रकृति के आगे वह नतमस्तक था।
