भविष्य
भविष्य
नेताजी के बचपन के मित्र उनसे मिलने आये थे। वे मित्र की तरक्की से अभिभूत हुए थे। उन्होंने पहले अपनी आप बीती बताई कि नौकरी के पश्चात मिली "भविष्य निधि" में अपनी बेटियों की शादी कर दी है और बेटे को नौकरी से लगा दिया है।
तभी एक नौजवान नेताजी से 10001 की रसीद कटाकर ले गया। मित्र ने कहा कि "इतनी तो मेरी पेंशन है, जिसमें मेरा गुजारा होता है। आपने इन युवाओं को चंदा किस बाबत दिया।"
नेताजी बोले - "दरअसल वह मेरा बेटा है, आगे चलकर उसे भी मेरी तरह नेता ही बनना है और इतने रूपये देने से उसके साथ आये युवकों, एवं दानदाताओं पर उसका रौब पड़ेगा। उसे रूपया वसूलने में कठिनाई नहीं होगी। इन लड़कों का इस्तेमाल वह चुनाव में करेगा ही। फिर चंदे का हिसाब भी तो उसी के पास रहना है।"