1.निपुणता
1.निपुणता
साँझ होते ही राज के कदम स्वमेव मज़ार की ओर बढ़ रहे थे,जैसे जैसे शाम का अँधेरा बढ़ रहा था,आसमान में तारें छिटक रहे थे, और सड़कों पर रौनक बढ़थी। गई मज़ार पर पहुंचने वाला राज अकेला व्यक्ति नहीं था। राज की तरह अनेक लोगों की आस्था का केंद्र थी ये मज़ार.,राज जैसे ही मज़ार के नज़दीक पहुंचा, उसके आसपास छोटे बच्चों की भीड़ सी लग गई, कुछ बच्चे राज से फूलों की माला खरीदने के लिए आग्रह करने लगे।
लेकिन राज का ध्यान एक छोटी -सी बालिका की ओर गया, बालिका ने माला का हाथ राज की ओर बढ़ाकर उससे माला खरीदने का आग्रह किया ,राज उस बालिका का आग्रह टाल नहीं सका,उसने झुक कर छोटी बालिका से पहले उसका नाम पूछा, बाद में उसके हाथ में राखी माला के दाम पूछे..बालिका ने बड़ी चपलता से उत्तर दिया.
बालिका के हाथ में सिर्फ दो मालायें थी, अतः राज ने अच्छी माला के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि उस बालिका ने साधारण सी माला राज को पकड़ा दी और तत्परता से कहा कि बाबूजी, यह साधारण सी माला कोई बाद में क्यों लेगा.राज भी उसकी बातो से सहमत हो गया. राज तेजी से पलटकर मज़ार में प्रवेश कर गया. इबादत करने के बाद वापस आकर देखा तो उस बालिका के हाथों में पुनः दो मालाएं थी. राज ने उस बालिका से कुछ पूछना उचित नहीं समझा. वह समझ चूका था की पेट की भूख ने बालिका को बचपन में परिपक्व कर दिया था. यक़ीनन वह अपनी कला में निपुण थी..
