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VIKAS KUMAR MISHRA

Inspirational

5.0  

VIKAS KUMAR MISHRA

Inspirational

ऑनलाइन दिखावा

ऑनलाइन दिखावा

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हम युवाओं या फिर यूँ कहे कि हम स्मार्टफोन यूज़र्स की एक बात आजकल बहुत बुरी हो चली है ! हम अपनी छोटी-छोटी चीजों को भी सोशल मीडिया पर प्रदर्शित करने लगे हैं ! कुछ यूं ही हाल था मेरे एक अजीज मित्र का जिनका नाम राजीव था, राजीव को सोशल मीडिया की कुछ यूं लत लग चुकी थी क्या रात और क्या दिन। थाली में सजे मुर्गे की टांगों की तस्वीर जब तक ऑनलाइन मंच पर साझा न करदे साहब मुर्गे को छूते भी न थे।

मैंने एक बार राजीव से पूछा, "भाई आप ये करते क्यूँ हो ? क्या आप दुनिया से ये कहना चाहते हो कि आज सारी दुनिया में मुर्गे की टांगे सिर्फ आपने ही खाई या फिर जिस मुर्गे की टांग आपने खाई वो एकाध करोड़ की थी ?"

उनसे जवाब मिला, मित्र ये आप नहीं समझेंगे !

मैंने भी मुस्कुराकर जवाब दिया के पहले लोग भोजन की थाली के सामने हाथों से जल घुमाते थे और आजकल मोबाइल फ़ोन !

खैर ज्यादा दिन नहीं बीते थे। एक रात करीब सवा बारह बजे राजीव ने एक और स्टेटस साझा किया, कुछ यूँ लिखा था कि पचास कि मी की यात्रा वे इस ठंडी रात में अपनी मोटरसाइकिल से कर रहे हैं और यात्रा का आनंद उठा रहे हैं। मैंने भी उन्हें उत्तर दिया- "लुत्फ उठाइये राजीव।"

अगली सुबह मित्र करीब सात बजे ही मेरे घर आ धमके। इतनी सुबह उन्हें घर पर देख कर मुझे लगा ही जैसे कोई बड़ी बात होगी। उन्होंने कहा- "मित्र बड़ी दिक्कत हो गयी, कल घर आते वक्त रास्ते में कुछ बदमाशों ने मुझे लूट लिया !"

अरे ये क्या कह रहे हो ? थाने में रिपोर्ट लिखाई या नहीं ?

राजीव:- नहीं बस इसीलिये आपके पास आया हूँ, चलिए चलते हैं, सब कुछ लूट लिया, घड़ी, चैन, मोबाइल बटुआ सब कुछ !

ठीक है चलिये ! हम दोनों कुछ देर में ही पुलिस चौकी पहुँच गये। राजीव ने सारी घटना प्राथमिकी लिख रहे एक हवलदार साहब को बताई।

हवलदार:- हम्म..कितने लोग थे ? कहाँ की घटना है ?

राजीव:- बस यही हाईवे पर बने पुल के नीचे की घटना है, चार लोग थे। एक मोबाइल, घड़ी, चैन और बटुआ ले गये।

हवलदार:- पहचान लेंगे उन लोगों को ?

राजीव:- नहीं सभी ने चेहरा बाँधा हुआ था।

हवलदार:- कितने बजे की घटना है।

राजीव:- करीब रात एक बजे।

हवलदार:- कल उसी जगह रात के 3 बजे एक और घटना हुई है, एक और लूट की वारदात को अंजाम देते वक़्त पुलिस की पेट्रोलिंग में बदमाश पकड़े गये लेकिन वो पाँच लोग थे और उनसे सामान भी हमने बरामद कर लिया हैं, पैसे, बटुए तो नहीं मिले घड़ी, चैन और एक मोबाइल मिला है।

अरे रमेश (एक और हवलदार) उन पाँचो को ले कर आओ।

राजीव:- सर हम खुद ही देख लेते हैं।

हवलदार:- ठीक है चलिये।

राजीव मैं और हवलदारसाब उस छोटे से जेल में पहुचे और उन पाँच लोगों में से एक लड़के को राजीव पहचान गये और बोले- अरे सुमित तुम ?

हवलदार साहब:- जानते हैं आप इसे ?

राजीव:- जी ये मेरे पड़ोस में ही रहता है, ये भी लूट में शामिल था ?

हवलदार साहब ने सुमित को एक जोर का थप्पड़ मारा।

शायद रात से ही हुई पुलिस की खातिरदारी ने उन पाँचो में अब तक किसी भी तरह के राज छुपाने की शक्ति नहीं छोड़ी थी।

सुमित:- भैया माफ कर दो, कल पहली बार किया था आपका स्टेटस पढ़ा, नशे मे ये सब हो गया भैया।

राजीव:- पर वहाँ तो सिर्फ चार लोग थे, ये पाँचवा कहा से आया।

सुमित:- मैं कुछ आगे था इन लोगों से। आपकी बाइक पहचानता था, तो मैंने ही आपके होने की पुष्टि की थी।

हवलदार साहब:- और इनके पैसे, बटुआ कहा है ?

सुमित:- उसकी हम सबने शराब पी और फिर जब पैसे कम पड़े तो फिर से लूट के इरादे से निकले थे पर पकड़े गए।

हम तीनों ही बाहर निकल आये, हवलदार साहब ने पूछा राजीव जी ये स्टेटस का क्या मामला है ?

मैंने अपना मोबाइल आगे बढ़ाकर उन्हें राजीव का स्टेटस पढ़ाया !

"अरे ये तो वही बात हो गयी कि आ कसाई मुझे काट !"

हवलदार साहब और मैं जोर जोर से ठहाके लगाने लगे, और राजीव बस चुपचाप आगे चलते रहे।


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