ओंकार के बड़बोल
ओंकार के बड़बोल
ओंकार फर्रूखनगर गाँव में रहता था। पढ़ाई में बहुत होशियार था , बी.ए. तक अच्छे नंबरों से पास की । अच्छी पढ़ाई के लेकर उसे बहुत घमंड था। गाँव के हरेक नौजवान को कहता क्या पढ़ाई करते कितने कम नम्बर हैं तुम्हारे, पढ़ भी लिया करो । एक दिन देखना मैं बहुत बड़ा आफिसर बनूँगा और तुम सबको नौकरी दूगाँ।
ओंकार के पिताजी कहते इतने बड़बोल मत बोला कर । जो भी नौकरी के ऑफर आ रहे हैं, ज्वाइन कर लें, कितना इंतजार करेगा?? लेकिन वह हर बार अपने पिताजी को कहता ये नौकरी मेरे लायक नहीं है। जब मेरी लायक होगी तभी ज्वाइन करुगाँ।
ऐसा कहते-कहते बहुत साल बीत गए और ओंकार को नौकरी के ऑफर आने बंद हो गए। तब उसने अपने पिताजी के द्वारा बतायी हुई एक फैक्ट्री में नौकरी की।
ओंकार बड़बोल से उसके पिताजी सदा परेशान रहते उसे बोलते - पढ़ें फारसी बेचे तेल देखो ये कुदरत के खेल।
इतनी पढ़ाई करने के बाद ओंकार के लिए सही साबित हुई।
