मेरे जीवन की यादगार होली
मेरे जीवन की यादगार होली
बात 2005 की है जब मेरा बड़ा बेटा 7 वर्ष का तथा छोटा बेटा 4 वर्ष का। सुबह शीतला माता पूजा के बाद सभी मन से खाना खाया। दोनों बच्चों की फरमाइश हुई कि हम सभी बच्चे दो मेरे व देवरानी के ऊपर जाकर खेलेंगे। पापा का कमरा ऊपर था। सभी बच्चे पापा के पास खेलने चले गए। बड़े बेटे ने पानी भरकर गुब्बारों से खेलने की सोची। अब चारों बच्चे आपस में खेलते-खेलते अचानक सामने वाली आंटी के रसोईघर में गुब्बारे फेंकने लगे। वो चिल्लाईं... मैंने ऊपर जाकर बच्चों को डाँटा। बच्चों ने माफी माँगी और वायदा किया कि अब ऐसा नहीं करेंगे और थोड़ी देर बाद नीचे आ जाएंगे। करीब दस मिनट बाद फिर बच्चों ने मिलकर सामने वाली दीदी के रसोईघर में गुब्बारा फेंका। वो शिकायत करने आईं। मुझे भी बच्चों पर बहुत गुस्सा आया। फिर मैंने बच्चों को अच्छी तरह समझाया कि सोचो आपको या आपकी मम्मी को कोई बच्चा चुपके से ऐसे गुब्बारे मारकर होली खेले ! तो कैसा लगेगा। बात उन्हें समझ आ गई। बेटे को मैंने आंटी को साॅरी बोलने के लिए कहा।
अब बेटे को समझ आ गया कि किसी को भी चुपके से गुब्बारा मारना ग़लत है। त्योहार को सावधानीपूर्वक वह सुरक्षा के साथ मनाना चाहिए। अपनी खुशी के साथ- साथ दूसरों की खुशी का भी ध्यान रखना जरूरी है।