सच्चा रिश्ता
सच्चा रिश्ता
प्रेमराज दिवान विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे। ईश्वर ने उन्हें एक लक्ष्मी स्वरुप बेटी व दो पुत्र रत्न दिए। पुत्री व बड़े पुत्र की शादी कर दी गई थी। बड़े पुत्र की नौकरी भी दिल्ली जैसे बड़े शहर में अध्यापक के पद पर लगी। पुत्र शादी के तुरंत बाद ही गाँव छोड़कर शहर रहने चला गया था। अब बारी थी छोटे पुत्र विजय की शादी की। छोटा पुत्र पढ़ाई में प्रतिभाशाली था। साथ ही अपनी माँ का भी सबसे लाडला। अपने गाँव में सबसे अधिक पढ़ा लिखा नौजवान - रुपवान युवक था। कई प्रतिष्ठित घरों से विजय के लिए रिश्ते आ रहे थे। आखिरकार पिता जी ने दूर गांँव में एक जमींदार के घर में विजय का रिश्ता तय कर दिया। पूरे गांँव में बहुत सुंदर सजावट की गई। घर को लडियों व झण्डियों से दुल्हन की तरह सजा दिया गया। घर में रिश्तेदारों की चहल-पहल थी।
विजय गाजे बाजे के साथ अपनी दुल्हन को लेने पहुँचा। बारात का स्वागत जोरों शोरों से किया गया। विजय की दुल्हन रीना बड़े जमींदार की बेटी होने के साथ-साथ संस्कारों से भी परिपूर्ण थी।अपने घर की सबसे बड़ी बेटी और पिता के दिल के करीब थी।
विदाई के दौरान सभी के आँखें नम थीं। माँ ने रीना को रीति-रिवाज़ो की अच्छी खासी जानकारी दी थी। विजय को विदा के समय ही पता चल गया था कि आज रीना का बारहवीं कक्षा का गृहविज्ञान का प्रयोग है। रीना अपने टैस्ट को विवाह के चलते भूल ही गई थी। अब उसे कोई उम्मीद भी नहीं थी कि उसकी आगे पढ़ाई चल पाएगी। रीना पढ़ाई में अच्छी थी। लेकिन बारहवीं करते - करते ही पिता जी को जैसे ही अच्छा रिश्ता मिला तुरंत अपना प्रथम कर्त्तव्य समझते हुए हाथ पीले कर दिए। रीना ने अपने मुहँ से एक शब्द भी न निकाला। अब तक वह अपनी नियति से समझौता कर चुकी थी। विदा की डोली अपने नव जीवन की ओर बढ़ने लगी।
परंतु यह क्या अचानक से उसे अहसास हुआ कि कार रूकी है।
दुल्हन के लिबास में सजी संवरी रीना ने थोड़ा- सा घूंघट उठाकर देखा तो ................
अरे !!!!!!!!! यह मैदान तो जाना पहचाना लगता है। ओह ये , ये तो मेरा स्कूल है। अचानक आश्चर्य से बोल पड़ी । "मेरा आज गृहकार्य का प्रयोग भी था। "
विजय मुस्कुराते हुए बोला - "था नहीं पगली है। "
रीना कुछ सकुचाई, कुछ घबराई "तो मैं क्या अपना प्रयोग दे पाऊँगी।"
"हाँ प्रिये ! बिल्कुल इसलिए तो यहाँ आए हैं।"
सचमुच आज रीना विजय को पति के रूप में पाकर मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी।
"हे ! ईश्वर ऐसे जीवन साथी को पाकर मैं धन्य हो गई जो सुशिक्षित ही नहीं है बल्कि शिक्षा के महत्व को भी समझते हैं। मेरे मन की बात को बिना कहे ही जान गए।"अब चमकती हुई आँखों से रीना अपना प्रयोग देने चली गई।
विजय हृदय से रीना को यह खुशी देकर आत्मसंतुष्टि की अनुभूति कर रहा था।सच्चा रिश्ता सम्मान व प्यार से ही फलीभूत होता है। कितना सत्य है यह........