शिवेन्द्र की हिम्मत
शिवेन्द्र की हिम्मत
शिवेन्द्र अपनी दादी के साथ राजस्थान के छोटे से गाँव शीतली में रहता है। ग़रीबी की बदहाल नज़ारा इस गाँव में बखूबी देखा जा सकता है। कोई और नहीं है शिवेन्द्र के परिवार में।
दादी और अपने पेट भरने के लिए अख़बार के लिफाफे बनाने का काम करता था।
आज जोरों की आँधी चल रही है। शीतली गाँव में अक्सर सूखा पड़ जाता है।
शिवेन्द्र आज पूरे सौ लिफाफे बेचकर अपनी झोपड़ी में आया।
आज वह सुबह जल्दी ही निकल गया था।
शिवेन्द्र - दादी मैं आ गया कुछ खाकर तेरी दवाई लाऊँगा...
दादी - दवाई से पहले मुझे पानी लाकर दे मेरा गला सूख रहा है प्यास के मारे....
शिवेन्द्र - अरे ! प्यास तो बहुत मुझे भी लगी है दादी।
सब पानी खत्म। जोहड़ में भी ना है।
दौड़ते- दौड़ते तालाब के किनारे जाता है।
यहाँ भी सब सूखा ...
गाँव में सब पानी को लेकर परेशान हैं।
कहने को शीतली गाँव पर हर तरफ गर्मी के थपेड़े।
ओ शिवेन्द्र सुना तूने कृपा चाचा गुजर गए ... भूख प्यास से - राजन बोला।
शिवेन्द्र - (दुखी होते हुए) - कब तक हम प्यासे से मरते रहेंगे।
शिवेन्द्र एक बड़ा डंडा लेता है।
उसे गाँव की ज़मीन में गाड- गाडकर देखता है।
बहुत दूर तक देखते-देखते एक जगह डंडा अंदर तक चला जाता है। डंडा गीला हो गया। ज़मीन खोद कर मिट्टी हटाता चला जाता है। पता शिवेन्द्र में इतनी ताकत अचानक से कैसे आ जाती है।
शिवेन्द्र - (खुश होते हुए) पानी मिल..... पानी मिल गया...
एक बर्तन से पानी पीकर अपनी दादी के लिए ले जाता।
सब गाँव शिवेन्द्र को शाबाशी देते हैं।
सच ! पानी बिना सब सून....