ओल्ड एज हाउस

ओल्ड एज हाउस

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‌मंगला पागलों की तरह इधर उधर भटक रही थी। जब किसी गली में जाती तो बच्चे उसे पागल समझ कर पत्थरों मारते हैं।

‌ वह भूखी-प्यासी बेसहारा दर-दर मारी फिरती, वजह थी उसके जीवन का एकमात्र सहारा उसका बेटा राज, जिसको उसने बड़े जतनों से पाला था।

‌मंगला के पति की मृत्यु तभी हो गई थी जब राज दसवीं कक्षा में था। मंगला ने आसपास के लोगों की सहायता से छोटे-छोटे बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया और राज की जिंदगी सवारने में लग गई।


‌राज धीरे-धीरे बढ़ा हुआ और शहर की नामी कंपनी में मैनेजर बन गया। जब-जब राज की शादी की बातें चलती तो राज मना कर देता, फिर एक दिन उसने मंगला को बताया कि वह अपने साथ काम करने वाली स्मिता को पसंद करता है।


‌मंगला बेटे से बहुत प्यार करती थी तो पुत्र मोह में आकर वह स्मिता के घर रिश्ता लेकर चली गई स्मिता के माता-पिता को मंगला एक साधारण औरत लगी।


‌शादी से पहले ही स्मिता ने राज से मंगला के साथ रहने के लिए मना कर दिया, शादी करनी थी तो राज ने भी हां भर दी, फिर क्या राज ने मंगला से यह बात छुपाई और बिना बताए ऑफिस के पास एक घर खरीद लिया।

‌शादी होते ही उसने स्मिता के साथ वहां रहना शुरू कर दिया मंगला के पूछने पर भी उसने यही कारण बताया की यह घर ऑफिस से बहुत दूर था इसलिए उसने नया घर खरीदा। एक दिन अचानक राज के पास मंगला का फोन आया कि उसकी तबीयत बहुत खराब थी जिसके चलते राज मंगला को घर ले आता है।

‌स्मिता को यह रास ना आया, उसने राज को बिना बताए ओल्ड एज हाउस में मंगला के रहने की व्यवस्था कर दी।

‌राज को जब यह पता चला तो ज्यादा कुछ कह नहीं पाया, उसने सोचा दोनों सास-बहू लड़ाई करें इससे तो अच्छा है की मां ओल्ड एज हाउस में ही रहे और वहां अपनी उम्र की कोई महिला को अपनी सहेली बना ले।


‌मंगला को ओल्ड एज हाउस मे रहना अच्छा नहीं लगता था।

‌इधर स्मिता को कनाडा जाने का मौका मिलता है, उसने ऑफिस में अपने साथ राज को ले जाने की भी व्यवस्था कर ली। दोनों ने मंगला को यह बात नहीं बताई और बिना बताए ही कनाडा चले गए।


‌बहुत दिनों तक राज का कोई फोन न आने के कारण मंगला ने स्वयं ही दोनों का हाल चाल जानने की लिए वहां जाने की सोची। मंगला उस घर में जाती है वहाँ कोई ओर परिवार मिलता है पूछने पर पता चलता है की घर का मालिक तो 6 महीने पहले ही कनाडा जा चुका है। ‌मंगला को यह बात अंदर तक चुभ गई।


‌दुखों का पहाड़ तो पहले ही उसके सिर पर था, मगर अब तो उसके जीवन का मकसद ही छिन गया।

‌वह दर दर की ठोकरें खाने लगी, भटकती रही यहां से वहां कि किसी दिन उसे उसका बेटा मिल जाएगा।


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