नव विहान
नव विहान
उफ्फ्फ... ये बारिश भी ना...
लगता है आसमान में किसी ने छेद कर दिया है। देखो ना कैसे लगातार चार दिनों से बारिश हुई जा रही है। नई जगह किसीको जानती भी तो नहीं। दूध भी नहीं है... दो दिन से तो काली चाय पीकर एकदम मुँह का स्वाद भी कसैला हो गया है। अपर्णा फोन पर अपनी माँ क़ो बता ही रही थी कि लाइट चली गई।
और माँ, ज़ब तब बिजली भी चली जाती है!"
बोलकर अपर्णा मोबाइल का टॉर्च जलाकर बैठ गई।
वो तो अच्छा हुआ कि उसने दिन में ही अपना मोबाइल फुल चार्ज करवा लिया था।
आज से आठ दिन पहले ज़ब एरिया मैनेजर के पोस्ट के लिए कॉल आई थी तो सुधीर मामा ने उसे अपने इस फ्लैट की चाबी देकर फिलहाल यहीं रहने कहा था। वैसे भी उनका बेटा जबसे अमेरिका गया था तबसे यह फ्लैट खाली ही तो पड़ा था। पर मामा ने यह नहीं बताया था कि यहाँ आसपास मार्केट वगैरह दूर होंगे और आस पड़ोस में भी कोई नहीं होगा। एक तो जबसे आई है इतनी बारिश हो रही है कि बाहर का कुछ पता ही नहीं चल रहा था।
तीन दिन तो ब्रेड और माँ के परांठे से काम चलाया। आज माँ का ज़बरदस्ती दिया हुआ सत्तू बड़े काम आया जो उसे एकदम पसंद नहीं था। ऑनलाइन फूड के लिए कोशिश की तो स्विगी या डोमिनोज़ भी इतनी बारिश में होम डिलीवरी के लिए मना कर रहे थे। इसलिए आज तो किसी बचे हुए बिस्किट और सत्तू से काम चला लिया पर कल वह ज़रूर मार्केट जाएगी।
उसने ज़ब बारिश और परेशानी अद्विक क़ो बताई तो वह हँसते हुए बोला था...
" कितनी बार कहा है कहीं जाने से पहले गूगल कर लिया करो पर तुमको तो अपने आसपास की कोई खबर ही नहीं रहती "
छोटे भाई की डांट खाकर बहुत चिढ़ gai थी अपर्णा।
अगले दिन सुबह निकल ही पड़ी घर से बाहर। बारिश की रफ़्तार कम हो गई थी। बस झिसिझिसी बारिश हो रही थी अब तो।
पूरे बिल्डिंग में एकमात्र लिफ्ट था। मामा का फ्लैट आठवीं मंज़िल पर था। जैसे ही लिफ्ट पाँचवी मंज़िल पर पहुँची हड़बड़ाते हुए एक भीगा सा लड़का लिफ्ट के अंदर दाखिल हुआ। उसे देखकर अपर्णा बुरी तरह चिढ़ गई। वह पूरी तरह भीगा हुआ था और उसने हाथ में छाता भी पकड़ा हुआ था।
उसने अपर्णा की तरफ देखते हुए पुछा,
"आप किस फ्लोर पर रहती हैं?"
ना चाहते हुए भी अपर्णा क़ो जवाब देना पड़ा।
"जी आठवीं मंज़िल पर "
अच्छा तो आप करुणेश क़ो जानती हैं....
लड़का कुछ ज़्यादा ही बातूनी लग रहा था।
पर तब तक ग्राउंड फ्लोर आ गया था और अपर्णा ने चैन की साँस ली।
पर... ज्यों ही वह लिफ्ट से बाहर निकली बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी और वह लड़का अपना छाता खोलकर निकलने ही वाला था कि उसके छाते के किनारे से अपर्णा की आँखों को चोट लगने ही वाला था कि उस लड़के ने अपर्णा के चेहरे पर अपना हाथ रख दिया ताकि छतरी की नुकली किरचें उसके आँखों में ना चुभे।
यह सब पलांश में घटित हो गया था। कदाचित अपर्णा तैयार नहीं थी ऐसी किसी भी स्थिति के लिए।
थोड़ी देर बाद दोनों संभल चुके थे। तब उस लड़के ने अपर्णा से माफ़ी माँगते हुए अपना परिचय दिया।
अपर्णा ने भी उसे धन्यवाद दिया।
आगे बाजार तक जाते जाते दोनों में फोन नंबर तक का आदान प्रदान हो चुका था।
दो दिन में बारिश रुक चुकी थी। पर कुणाल और अपर्णा की दोस्ती रफ़्तार पकड़ती जा रही थी।
कुणाल किसी मल्टीनेशनल कंपनी में सुवेरवाइसर के पद पर कार्यरत था। उसने मामा के उस फ्लैट से निकलकर आगे अच्छा अपार्टमेंट और ऑफिस जाने आने के लिए स्कूटी तक दिलवाने में अपर्णा की बहुत मदद की। दोनों की बातें ही खत्म नहीं होती।
दोनों को एक दूसरे से रोज़ बात करने और ज़ब तब मिलने की ऐसी आदत पड़ चुकी थी कि कुणाल या अपर्णा में से कोई भी घर जाता तो दूसरे का शहर में एकदम मन नहीं लगता था।
इस बार अपर्णा ज़ब घर आई तो बड़े जोर शोर से उसकी शादी क़ी बात चल रही थी।
शाम को ज़ब लड़केवाले उसे देखने आए और उन्होंने अपर्णा को पसंद कर लिया। फिर सागर के साथ ज़ब अपर्णा को अकेले बात करने के लिए छोड़ा गया तो अपर्णा के सामने बार बार कुणाल का चेहरा आ रहा था।
वैसे देखा जाए तो अपर्णा और कुणाल ने कभी भी आपस में प्यार का इज़हार नहीं किया था पर एक दूसरे से मिलते मिलाते, सुख दुख साझा करते हुए कब वो दोनों एक दूसरे के करीब आ गए दोनों को इसका पता ही नहीं चला।
इसके पहले कि अपर्णा के माता पिता सागर से उसकी शादी पक्की करते अपर्णा ने अपनी माँ को विश्वास में लेकर कुणाल के बारे में बताया।उसकी माँ ने उसे आश्वासन दिया कि अगर कुणाल उसके लिए योग्य जीवनसाथी लगा तो अपर्णा की शादी कुणाल के साथ ही होगी।
माँ की बात सुनकर अपर्णा बहुत खुश हुई।
घर से वापस आकर अपर्णा ने इसबार कुणाल को किसी रेस्टोरेंट में नहीं बल्कि अपने फ्लैट पर बुलाया। दोनों ने पहली बार आपस में अपने प्रेम का इज़हार किया।
आगे की कहानी अब ज़्यादा लंबी नहीं है। कदाचित पाठक अंदाजा लगा चुके होंगे कि आगे क्या हुआ होगा।
कुणाल और अपर्णा दोनों के माता पिता की मंज़ूरी से दोनों परिणय सूत्र में बंध गए।
ज़ब किसी से मन का मेल हो जाता है तो बाकी चीज़ेँ गौण होकर रह जाती हैं।
आपसी प्रेम और समझदारी के साथ परस्पर विश्वास हर रिश्ते की नींव होती है। जैसा कुणाल और अपर्णा के रिश्ते में हुआ।
आज कुणाल और अपर्णा दोनों आपस में बहुत खुश हैं। उनके प्रेम से उनकी गृहस्थी की बगिया गमकती रहती है। कोई जो उनके प्रेम के बारे में पूछता है या उनकी प्रेम कहानी के प्रति ज़िज्ञासा दिखाता है तो दोनों समवेत होकर एक ही बात कहते हैँ कि...
"हमारा प्यार टिप टिप बरसा पानी के साथ शुरु हुआ था !"
सच, अनजान शहर में कुणाल अपर्णा के जीवन में एक फ़रिश्ते की तरह ही तो आया था।
प्यार कब कहाँ कैसे किससे हो जाए इसका कोई पता नहीं !

