Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

नव उदित होते रचनाकारों के लिए

नव उदित होते रचनाकारों के लिए

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'हम 'मानव बम' बन जाने से, स्वयं को रोक लें, जो स्वयं तो प्राण गँवाता ही है, साथ ही मासूम लोगों को को मार जाता है।'


इस क्वोटैशन के साथ, विश्व साहित्य पटल पर नव उदित होते रचनाकारों को, साहित्य सृजन करते हुए,किन बातों का ध्यान होना चाहिए, उसकी सरल शब्दों में विधि वर्णन लिख रहा हूँ। जो मेरी दृष्टि में उपयोगी भी है, सम सामयिक और प्रासंगिक भी है।

स्थापित साहित्कार भी पढ़ें और अपने कमेंट दें तो मुझे ख़ुशी होगी।


किसी भी शीर्षक अंतर्गत साहित्य लेखन में, सर्वप्रथम विचार जिस तारतम्य में मन में आते हैं, उसमें हमें लिख लेना होता है।बीच बीच में, लिखित अंश को फिर पढ़ना होता है। कोमा, फुलस्टॉप के प्रयोग से सही तारतम्यता बनाना होता है।

लिख दिए गए काम्प्लेक्स सेंटेंस को, सरल वाक्य में परिवर्तित करना होता है।

(अपनी ही लिखी बात को, एक से ज्यादा, छोटे सरल वाक्य में लिखना होता है। )

फिर शब्द और ज्यादा असरदार चुनने होते हैं।

लिखने की शैली, अनूठी रखनी होती है।

यहाँ, रचना के माध्यम से जो विशिष्ठ संदेश, हम समाज हित या बुराई खत्म कर अच्छाई को प्रेरित करने को लिख रहे होते हैं, उसे बोल्ड, अंडरलाइन्ड एवं इनवर्टेड कॉमा के प्रयोग से उस पर जोर दिखाना होता है।

तथ्य, यह भी होता है कि भले ही हम अपने किरदारों के माध्यम से रचनायें लिखते हैं। मगर कपोल काल्पनिक आधार पर, सृजन में हमारी ही अंदरूनी भावनायें भी परिलक्षित हो जाती हैं। 

हमारे मनोविज्ञान की झलक, सिध्दहस्त साहित्य प्रेमी भाँप लेते हैं।

इसलिए यह आवश्यक है कि जीवन तर्कों पर सविवेक मंथन करते हुए, साहित्य सृजन करने के साथ साथ ही, हमें स्वयं 1 अच्छा मनुष्य बनना होता है, ताकि हमारा लिखना मानवता के दृष्टिकोण से सार्थक हो।

अगर साहित्य प्रेमी पर हम, अपने भले होने की छाप नहीं छोड़ते हैं, अर्थात, हम अच्छे मनुष्य साबित नहीं होते हैं तो, हमारे आव्हान उनके द्वारा पाखण्ड मान लिए जाते हैं। फिर कितने भी अच्छे शब्दशिल्प में, हमने अपनी रचना ढाली हो, प्रेरणा के नज़रिये सें वह बेअसर साबित होती है। ऐसे में हम अपना और पाठक का समय व्यर्थ करते हैं। 

यह अघोषित अपराध होता है। यह बाद के जीवन में, जब जीवन अनुभव, हमें परिपक्व बनाते हैं, हमारे पश्चाताप का कारण बनता है।  

वास्तव में यह सम सामायिक और प्रासंगिक है कि हम प्रेरणास्रोत (Role model) बनें।

कोरोना के खतरे में लॉक डाउन रहते हुए, प्रकृति ने हमें अवसर उपलब्ध कराया है कि हम आत्ममंथन करें। जन्मजात मिले हमारे सदगुणों से, दूसरों की नकल करने के कारण, हम कितने विचलित (Deviate) हो गए हैं उनका लेखा जोखा देखें। हम वापिस उन जन्मजात सदगुणों की ओर वापिस लौटें। 

कोरोना से स्वयं और अन्य के बचाव के लिए, साहित्यकार के रूप में प्रेरणा दे सकने में, स्वयं को सक्षम बनायें।

अपनी पीढ़ी के हमारे, अपने समकालीन मनुष्य के, हृदय के तार झंकृत करते हुए, उन्हें जन्मजात मानवीय मूल गुणों के तरफ वापिस मोड़ना हम पर, आज दायित्व है।और ऐसी दुनिया में जहाँ अभाव, पूर्व पीढ़ी से कम हैं। भुखमरी के खतरे नहीं है। स्वास्थ्य सेवायें बेहतर हैं। सुविधा साधन भरपूर हैं।दुर्भाग्यजनक रूप से वहीं, अति महत्वकाँक्षी सोच की, विध्यमानता है। 

जो किसी को, अन्यायपूर्ण जीवन शैली के तरफ प्रवृत्त करती है। जो स्वयं के ऊपर तनाव बढ़ा लेने का, आत्मघाती हश्र का अनायास कारण होती है। किसी की भी ऐसी लापरवाही, अन्य मासूम लोग भुगतते हैं। हम ऐसे मानव बम बन जाने से स्वयं को रोक लें जो स्वयं तो प्राण गँवाता ही है, साथ ही मासूम लोगों को को मार जाता है।

कोई जान बूझकर ऐसा 'मानव बम' होने वाला काम करता है।

जबकि हम, अनायास, अनजाने में, ऐसा विध्वंसकारी काम मूर्खता में कर जाते हैं। जिसमें धरती पर, जीवन पुष्ट करने का काम नहीं करके, जीवन हनन की परिस्थिति निर्मित होने से रोकते नहीं हैं।

ऐसा न करने की सीख, शिक्षा हमारे साहित्य सृजन से मिले, हमें, यह बात सुनिश्चित करनी चाहिए।

यही सृजन ही साहित्य है।

यही साहित्य की सार्थकता है।

यही हमारा मानव होना है।

यही हमारा, समाज खुशहाली, सुनिश्चित करने में योगदान है।

यही अनीति पर, नैतिकता की विजय है।

यही हर व्यक्ति की हृदय की अरूपी निर्मल भावनाओं को, साकार-साक्षात कर देना है।

यह उपलब्धि, धन वैभव पर भारी होती है। धन वैभव से हमारा साथ, अंतिम श्वाँस के साथ छूट जाता है।  

मगर यह परिचय हमारे प्राण प्रण उपरान्त भी, हमेशा के लिए अंकित रह जाता है। 

आशा है यह लेखन टिप्स, लेखन प्रति हमें ज्यादा जिम्मेदार बनाने में सहायक होगी।


 



 



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