राजनारायण बोहरे

Abstract Inspirational Romance

3.4  

राजनारायण बोहरे

Abstract Inspirational Romance

नशे के सौदागर

नशे के सौदागर

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एकबारगी मैं तो पहचान ही नहीं पाया उन्हे ।

कहां वो अन्नपूर्णा भाभी का चिर-परिचित नितांत घरेलू व्यक्तित्व , और कहां आज उनका ये अति आधुनिक रूप ! चोटी से पांव तक वे बदली-बदली सी लग रही थीं ।

वे कस्बे के नये खुले इस फास्टफूड कॉर्नर से जिस व्यक्ति के साथ निकल रहीे थीं , वह सोसाइटी का कोई भला आदमी नहीं कहा जा सकता था । मुझे तो ऐसा लगा कि सिर्फ संग-साथ वाली बात नहीं , यहां कुछ दूसरा ही मामला है । क्योंकि वे बात-बेबात उस भले आदमी से सट-सट जा रहीं थीं !

आज उन्होने बनने संवरने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रखी थी । उनके चमक छोड़ते गोरे बदन पर ' सब कुछ दिखता है ' नुमा कपड़े सरसरा रहे थे । हल्की शिफॉन की मेंहदी कलर की साड़ी से मैच करता लो कट ब्लाउज , इसी रंग की बिन्दी और कलाई भर चूड़ियाँ , पांव में मेंहदी कलर की ही चौड़े पट्टे की डिजाइनदार चप्पलें और ताज्जुब तो ये कि हाथ के पर्स का भी वहीं रंग । मैंने उन्हे गौर से देखा तो ठगा-सा खड़ा रह गया ।


मैं ऐसी जगह खड़ा था ,जहां से होकर उन्हे निकलना था । मुझे यहां पाकर वे कोई संकोच अनुभव न करेें, इस लिये मैं वहां से हटा और पीसीओे-बूथ की ओट में आ गया ।

यह संयोग ही था कि वे दोनों पीसीओ वूथ में प्रविश्ट हो गये । वे कह रहीं थी -'' आप गलत अर्थ मत लगाइये , किसी के यहां जाने से पहले आजकल फोन कर लेना ठीक रहता है । पता नहीं वे फुरसत में हैं या नहीं , या फिर उन्हे कहीं बाहर जाना हो, या ये भी हो सकता है कि वे बाहर ही चले गये हों ।

उनके साथ वालेे व्यक्ति ने निरपेक्ष भाव से कहा था-'' अरे मैं कहां बुरा मान रहा हूँ । आप का कहना दुरूस्त है मैेडम !''

वूथ में फोन डायल करने तक सन्नाटा रहा , फिर कुछ देर बाद आवाज गूंजी-'' हलो सिमरनपुर से ! पटेल साहब हैं क्या ? मैं मनीराम बोल रहा  हूँ  । जरा बात कराइये उनसे ।''

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'' हलो पटेल साहब, मैंने कहा था न , मैं आज मिलने आ रहा  हूूं । उन्हे साथ ला रहा हूँ  । ''

कुछ देर बाद वे लोग बाहर आये । मनीराम ने जेब से चाबी निकाल कर अपनी वाइक स्टार्ट की और पीछे देखने लगा । अन्नपूर्णा भाभी अपनेपन की भीतरी खुशी से मुस्कराती हुयी लपक के मनीराम के पीछे बैठ गयी । गियर डाल के मनीराम ने गाड़ी आगे बढ़ायी तो वे मनीराम पर लद सी गयीं ।

मैं निराश सा वहां से मुड़ा और अपने बीमा ऑफिस की ओर चल पड़ा ।


अगले दिन मेरा मन न माना तो मैं सुबह-सुबह उनके घर जा धमका ।

उनके सरकारी क्वार्टर के बाहर , बाउंण्ड्रीवाल पर पुरानी नाम-पट्टिका की जगह पीतल की नयी चमकदार नेम-प्लेट लग चुकी थी- भरत वर्मा , क्षेत्रीय अधिकारी ।

दरवाजा वर्माजी ने खोला , मुझे देख कर वे थोड़ा चौंके -'' क्यों साहब ,प्रीमियम ड्यू हो गया क्या?''

हमेशा बनियान-पैजामा पहने रहने वाले वर्माजी को आज मैंने अच्छी क्वालिटी के गाउन में सजा-धजा देखा तो मुझे काफी बदलाव महसूस हुआ । लेकिन गौर किया तो मैंने उनके पैतालीस वर्शीय बदन को वैसा ही दुबला और कमजोर पाया । वही गरदन के पास से झांकती कालर बोन, कपोलों पर मांस से ज्यादा हाड़ दर्शाता सूखा-सा चेहरा ओैर वे ही खपच्चीयों से लटके दुबले लम्बी अगुंलियों वाले हड़ियल हाथ । उन्हे आश्वस्त करता हुआ मैं बोला-'' नही वर्मा जी , प्रीमियम तो तीन महीने बाद है ! मैं तो बस यूं ही... !''

'' कोई बात नहीं ,स्वागतम् ! ...आइये न !''

'मैं प्रसन्न मन से भीतर घुसा और सोफा की सिंगल सीट पर पसर के बैठ गया । वर्माजी मेरे ऐन सामने बैठे फिर मुस्कराते हुये बोले-'' और सुनाइये ,आपकी प्रोग्रेस कैेसी है ? अब तक 'डी एम क्लब' के मैम्बर बने या नही !''

'' हां , वो तो मैं दो बरस पहले ही बन गया था , अपनी ब्रांच का पहला करोड़पति ऐजेण्ट हूँ  मैं ।'' बताते हुये मैं पुलकित था , पर भीतर ही भीतर सोच रहा था कि पहले कभी किसी बात में रूचि न लेने वाले वर्माजी आज बड़ेे व्यवहारिक दिख रहे है । ऐसा क्यों है ?

तभी भीतर से अन्नपूर्णा भाभी की ' कौन हैं जी ' मीठी आवाज आयी तो मेरा दिल उछल के हलक में आ गया , मेेरी निगाहें बैठक कक्ष के भीतरी दरवाजे पर टिक गयीं ।

सुआपंखी रंग की ज़मीन पर गहरे काले रंग की छींट वाला , सूती कपड़े का ढीला-ढाला गाऊन पहने, दोनों हाथ पीछे करके जूड़ा बांधती वे जब नमूदार हुयीं , तो मैं ठगा सा उन्हे देखता ही रह गया । इस अस्त-व्यस्त दशा में भी वे गजब की जम रहीं थीं ।

मुझे देखकर वे गहरे से मुस्करायीं और हाथ जोड़कर बोलीं-'' अरे गुप्ताजी आप आये हैं ! बड़ी उमर हैं आपकी ! मैं  कल ही इनसे कह रही थी, कि एक दिन आपसे मिलना है । आप न आते तो मैं आज ही आपके पास आ रही थी ।''

हमें बतियाता देख, यकायक वर्माजी चुपचाप खिसक गये ।

और अब जाने क्यों मैं खुद को सहज नहीं पा रहा था।

मुझे सोच में पड़ा देख वे तपाक से बोलीं-''अरे अमर, किस टैन्शन में फंसे हुये हो  !''

'' कहां ...? मैं किसी टैन्शन में नहीं हूँ ।'' कहता हुआ मैं मुस्कराने की व्यर्थ सी कोशिश करने लगा-''आपके बच्चे नही दिख रहे आज ! ''

'' वे दोनों स्कूल गये हैं '' कहते हुये वे मुझसे पूछने लगीं -''आपने बीमा एजेंसीं लेते वक्त , ग्राहक को डील करने का कोई खास कोर्स किया था क्या ?''

'' नहीं तो , बस पन्द्रह दिन का ओरियेंटेसन प्रोग्राम हुआ था, मंडल कार्यालय में ! क्यों कोई खास बात ?'

मुझे लगा ,आज कोई ख़ास बात है, इसी वजह से वे इतना अपनत्व दिखा रही हैं। वे इस तरह धाराप्रवाह ढंग से मुझसे बतियाने में जुट गयीं कि मैं उन्हे ठीक ढंग से देख ही नही पा रहा था। क्योंकि मुझे घूरती हुई वे लगातार बोलती जा रही थीं।

वर्माजी चाय बहुत अच्छी बनाने लगे थे ।

बिस्कुट कुतरते समय वे गहरे आत्मविश्वास में डूबी थीं , मैं  उनके व्यवहार पर क्षण क्षण चकित था । बीमा की किश्त लेने मैं हर छह माह में इनके यहां आता रहा हूँ । बीच में नयी लांच की गयी पॉलिसी लेने के लिये उनको पटाने भी मैं अक्सर आ जाता था , पर वे इतनी खुलकर कभी नहीं मिली । प्रायः वर्माजी से भेंट होती थी , वे बीच में कभी-कभार बैठक में आती थीं तो नमस्कार करके तुरंत भीतर चली जाती थीं ।

मेरी निगाह उनके मोहक चेहरे औेर ढील- ढाले गाऊन में से उभरते उनके आकर्शक बदन को ताकने का लोभ संवरण नहीं कर पा रही थी और अब अपने को ताके जाने का ज्ञान होने के बाद, वे मुझसे नजरें नही मिला रही थीं, छत को बेेवजह घूर रहीं थी, औेर खुद को ठीक से ताकने का मौैैैैैैैैैका दे रही थीं ।

शाम को कार्यालय से लौटकर , मैं बाथ रूम से बाहर ही आया था कि पत्नी ने आंखें चमकाते हुये कहा-''जाओ , बैठक में एक स्मार्ट और सुंदर सी महिला आपसे मिलना चाहती है । ''

मै समझ गया कि वे ही होंगी ।

पांच मिनट में ही बाहर जाने वाले कपड़े पहन, सेंट का छिड़काव कर मैं बैठक में  था ।

'नमस्ते ! सॉरी ,मुझे जरा देर हो गयी ।'' आवाज में ढेर सी मुलामियत भर के मैं अदब से झुकते हुये बोला ।

'' नमस्ते , नमस्ते !'' वे चहकीं ।

'' अरे शुभा ! भाभी जी को चाय पिलाओ , औेर देखना ,जरा बिस्कुट वगैरह लेती आना ।''मैंने भीतर की ओर मुंह करके पत्नि से इल्तिज़ा की ।

'' अरे रहने दीजिये ,गुप्ता जी । मेरे रिसोर्श परसन आने वाले हैं ,उन्हे चाय पिला देना आप ।''

'' रिसोर्श परसन माने ?''

''माने मुझे काम सिखाने वाले ! मेरे अपलाइनर !''

''आप कोई काम करने लगी हैं क्या इन दिनों !''

''आपको पता नहीं , मैंने पिछले महीने से एक बिजनेस शुरू किया है । आपको जानकारी होगी कि कुछ ऐसी मल्टी नेशनल कंपनियां हैं, जो विज्ञापन में फिजूलखर्ची नहीं करती बल्कि अपना नेटवर्क डेवलप करके और अपने ऐजेंट नियुक्त करके सीधे ग्राहकों तक अपनी वस्तुयें पहुंचाती हैं ।''

'' हूँ  !'' मैंने गंभीर होते हुये उनकी बात में रूचि प्रदर्शित की ।

वे बोलीं-'' मैंने अभी तक ज्यादा काम नही किया , इसलिये मैं ज्यादा नही बता सकती , बस मेरे रिसोर्श परसन आ रहे है ! वे आपको विस्तार से सारी बातें समझायेंगे ।''

शुभा चाय लेकर आयी तो उनने उठ कर उससे नमस्ते की, और बोली -''आप भी बैठिये भाभी जी, दरअसल मैं जिस काम से आयी हूँ ,वो आप दोनों पति-पत्नी मिलके ज्यादा अच्छी तरह से कर सकेंगे ।''

...अब मेरी भौेहों में बल पड ़गये थे ।

झिझकती सी शुभा बैठ तो गयी , पर उसकी निगाहें जमीन से चिपक गयी थीं । यकायक मुझे लगा कि शुभा तो मेरी इज्ज्त खराब करे दे रही हैं । इसे इतना संकोची नहीं होना चाहिये कि एक ओेैरत के सामने भी नयी दुल्हन सी शरमाये ।

हमारी चाय खत्म ही हुयी थी कि उनके वे रिसोर्श परसन आ गये । मैने उनका स्वागत किया और अपना परिचय दिया -'' मै अमर गुप्ता ,बीमा ऐजेंट ।''

'' मैं जम्बो कंपनी का एक छोटा सा वर्कर -सिल्वर एजेंट मनीराम !''

हम लोग हाथ मिला कर बैठने लगे तो शुभा बर्तन समेट कर बाहर जाने लगी , वर्मा भाभी ने उसे फिर रोका -'' भाभी आप रुकिये प्लीज !''

'' मै अभी आती हूँ '' कहती हुयी शुभा पीछा छुड़ा कर भागी, और भीतर पहुंच के बर्तन बजाकर मुझे अन्दर आने का इशारा करने लगी ।

मैं भीतर पहुंचा , तो वह झल्ला रही थी -'' कोैन है ये सयानी मलन्दे बाई !''

हंसते हुये मैं बोला-'' तुम काहे जल रही हो ? बेचारी वो तुम्हे क्या सयानपन दिखा रही है ? वो अपना कोई प्रॉडक्ट बेचने आयी है ।''

'' हमे नहीं खरीदना उसकी कोई चीज । उससे कहो अपने खसम के साथ उठे औेर कहीं दूसरी जगह जाकर नैन मटक्का करे ! और जोे मर्जी हो बेचे, चाहे गिरवी रखे ।''

मै शरारतन मुस्कराया -'' अरे यार, हजार-दो हजार रूपये देकर इतनी कमसिन और ख़ूबसूरत औरत के साथ बैठने का मौका मिल जाये तो महंगा नही है ।''

शुभा की आंखें अंगार हो गयीं थीं , वह जलते स्वर में बोली -''कहे दे रही हूं , मैं अभी बैठक में जाकर उसे घर से बाहर निकाल दंूगी ।''

मुझे लगा कि खेल बिगड़ रहा है ,सो समझौते के स्वर में उससे कहा-''यार तुम भी बिना पढ़ी-लिखी औरतों की तरह बेकार की बातें करने लगती हो । वो क्या हमारी जेब में हाथ डाल के रूपया निकाल लेगी । अब कोई अपना माल दिखाये ,तो लो मत लो देखना तो चाहिये । अपने घर में हर सामान भरा पड़ा है, हमको क्या खरीदना है ? वो जो बतायेगी , देख लेते हैं बेचारी को निराश काहे करती हो ?''

मैं बैठक में जा कर बैठ गया और उनके रिसोर्श परसन से बात करने के बहाने मुस्कराते हुये पूछने लगा-'' आप कहां रहते हैं मनीराम जी !''

''मै घाटीपुरा में रहता हूँ  ,उधर हाई स्कूल की पुरानी इमारत है न ,उसके पीछे हमारा पुराना मकान है ।''

''अच्छा उधर ,जहां दरोगा संग्रामसिंह रहते हैं ।''

''आप उन्हे जानते हैं ! वे मेरे चाचा हैं ।''

अब हमे बात करने को एक विशय मिल गया था , सो हम पूरी दिलचस्पी के साथ दारोगा संग्रामसिंह और अपने हाई स्कूल के जमाने की बातें करने लगे थे । हालांकि यह विशय अन्नपूर्णा भाभी के लिये बोर कर सकता था , पर ऐसा नहीं दिख रहा था ,बल्कि वे बड़े प्रसन्न भाव से मनीरामजी को देखते हुये हमारी बातें अपनी आंखें फैला कर इस तरह सुनने लगीं ,मानों वे इस विशय से बहुत गहराई से जुड़ी हों ।

इसके बाद वे प्रसन्न मन गुनगुनाती सी उठीं और घर के अन्दर चली गईं। कुछ देर बाद वे लौटीं , तो उनके साथ आंखों में उलझन का भाव लिये शुभा भी थी ।

मनीराम जी ने उठकर मेरी श्रीमती जी का अभिवादन किया और बोला -'' भाभीजी मैं जम्बो कंपनी का एजेन्ट मनीराम हूँ  । माफ़ी चाहूंगा कि मैं आपके मूल्यवान समय में से दस मिनट ले रहा हूं । आपको अच्छा लगे तो आप मेरे बिजिनैस-प्रपोजल पर विचार करें, और न जमे तो कोई बात नहीं ।''

मुझे सम्बोधित करते हुए अब मनीराम की आवाज में मखमली अंदाज आ गया था-'' सर कभी आपने सोचा कि आप दूसरों से कुछ हटकर यानी कि अलग हैं । दरअसल आपको अपनी योग्यता के अनुरूप जॉब नहीं मिला है । इसलिये आप अपने वर्तमान-व्यवसाय से पूरी तरह संतुश्ट नहीं होंगे, ...मन में कहीं न कहीं यह चाह रहती होगी यानी कि एक सपना होगा आपका भी , कि आपके पास खूब सारा पैसा हो! ...बड़ा सा बंगला हो ! ...शानदार कार हो! ...भाभी के पास ढेर सारे जेवर हों ! ...आपके बच्चे ऊंचे स्कूल में पढ़ने जायें ! आप लोग भी फॉरेन टूर पर जायें ! ...यानी कि आपके पास वे सारी सुख-सुविधायें हों जो एक आदमी के जीवन को चैन से गुजारने के लिए जरूरी हैं । लेकिन आप लोग मन मसोस के रह जाते है, क्योंकि आपके सामने वैकल्पिक रूप में अपनी इतनी बड़ी इच्छायें पूरी करने के लिए कोई साधन नहीं हैं । छोटी-मोटी एजेंसी या नौकरी से यह काम कभी पूरे नहीं होंगे-हैं न ! एम आय राईट ?''

मैंने सहमति में सिर हिलाया-'' आप बिलकुल सही कह रहे है। ''

''अपने सपने पूरे करने के लिए आपको कम-से-कम पचास हजार रूपये महीना आमदनी चाहिये और पचास हजार रूपये के मुनाफे के लिए आप अगर कोई बिेजिनैस करेंगे तो उसमें पच्चीस लाख रूपये की पूंजी लगाना पड़ेगी ...ठीक है न ! अब पच्चीस लाख रूपये की रिस्क , फिर नौकर-चाकर, दुकान-गोदाम ... कित्ते सारे झंझट हैं ! लेकिन मैं आपको ऐसा बिजिनैस बताने आया हूं , आप बिना पूंजी, और बिना रिस्क के शुरू कर सकते है, और जितनी मेहनत करेंगे ,उतना ज्यादा कमाऐंगे ।''

'' हमे बेचना क्या है ?''मुझे उलझन हो रही थी ।

'' आप तो सिर्फ नेटवर्किंग करेंगे जनाब , सीधे कुछ नहीं बेचेंगे ।'' मनीराम ने उसी मुस्तैदी के साथ कहा-'' अब वो जमाना नहीं रहा जब दुकान खोलके बैठना पडता था । आप जिन लोगों को डिस्ट्रीब्यूटर बनाऐंगे , वे जम्बो कंपनी के प्रॉडक्ट बेचेंगे ,और घर बैठे मुनाफा आपको मिलेगा ।''

'' लेकिन इसमें मेरी क्या भूमिका होगी ?'' शुभा अब तक मनीराम का जाल नहीं समझ पा रही थी ।

'' आपकी वजह से ही तो गुप्ताजी के डाउनलाइनर्स की फेमिली को इस बिजनैस और इन प्रॉडक्टस में विश्वास होगा । हमारी सोसायटी में ये माना जाता है कि आदमी तो ब्लफ दे सकता है, औरत नहीं ! सो आपकी मौजूदगी ग्राहक के मन में इस मान्यता को फोर्स के साथ अमल में लायेगी । इसका आपको व्यक्तिगत लाभ भी होगा, क्योंकि इस काम के लिए आप दोनों के एक साथ जाने-आने से एक बहुत बड़े सर्कल में आपकी सोशल-रिलेशनशिप बनेगी । जम्बो कंपनी की फेमिली बड़ी रिच है इसके लिये ऊंचे-ऊंचे आइ ए एस अफसर और बड़े-बड़े बिजनिस मैन तक काम करते हैं। उन लोगों के ऐक्सपीरियंस, बिजनैस के टिप्स, आर्ट-ऑफ-लिविंग और थिंकिग, आपकी लाइफ-स्टाइल बदल देगी ।''


मनीराम द्वारा दिखाये गये सपने का जादू हम लोगों पर असर करने लगा था ,हम दोनों उसके चेहरे को मंत्रमुग्ध-से होकर ताकने लगे थे ,यह अनुभव करके वर्मा भाभी अब मनीराम की तरफ बड़े गर्व से देखने लगी । मनीराम अपने प्रॉडक्टस की क्वालिटी के बारे में बताता रहा।

हठात् शुभा ने मनीराम से पूछा''आपके इन प्रॉडक्ट की कीमत क्या है ?''

''यह टुथ-पेस्ट एक सौ दो रूपये का है , और ये नाईटक्रीम एक सौ बीस रूपये की है।''

मैंने हस्तक्षेप किया-''वाय द वे, आपको नहीं लगता ये चीजें कुछ ज्यादा मंहगी हैं ? हमारी सोसायटी में कितने लोग ऐसे होगे ,जो ये चीजें अफोर्ड कर सकेंगे !''

'' हां , थोड़ी सी कॉस्टली ! वट एक्चुअली , जनरल प्रॉडक्ट की तुलना में हमारे प्रॉडक्ट तीन गुना ज्यादा सेवा देते हैं । एक बार उपयोग करने पर कंज्यूमर सैटिसफाय हो जाता है। फॉर एग्जामपल देखें ,जनरल पेस्ट की एक इंच लम्बी टयूब जितना काम करती है, इस पेस्ट का चने बराबर हिस्सा ही उससे ज्यादा काम कर देता है...।...मतलब ये कि सही मायने में ये चीजें मंहगी नहीं हैं ।''


'' आप कह रहे हैे कि आपका बनाया हुआ चना बराबर पेस्ट वो काम कर जाता है जो बाजार में मिलने वाले जनरल पेस्ट का एक इंच लम्बा टुकड़ा काम नही कर पाता । इसका मतलब ये भी तो हो सकता है कि इस पेस्ट में ज्यादा कैेमिकल मिला दिये जाते हों ,जो शरीर के लिये नुकसानदायक हों ।'' मेरा मन लगातार प्रश्न पैेदा कर रहा था औेर मेरी जुबान उन्हे मनीराम की ओर मिसाइलों की तरह दाग रही थी।

'' गुप्ता जी , हमारे यहां कंज्यूमर एवेयरनेस अब भी उतनी ज्यादा नही है ,जितनी अमेरिका या दूसरे यूरोपीय देशों में है । यह माल भी यूरोप में बनाया गया है , इसलिये मेैं दावा करता हूँ  कि उसमें मानव शरीर के लिये नुकसान देने वाला कोई रसायन शामिल नही होता ।''

'' इसकी शुरूआत कैसे करना पड़ती है ।'' मुझे लगा कि प्रश्नों के बजाय मनीराम के सामने सीधा समर्पण कर दिया जाये तो शायद इस बहस का अंत हो जायेगा ।

'' हमारा एक किट चार हजार छः सौे रूपये का है , इसमें हमारा हर प्रॉडक्ट छोटी मात्रा में  शामिल है'' मनीराम ने गंभीरता से बताया ।

''तो ठीक है , आप एक पैकेट हमारे यहां रख जाइये ।'' शुभा बिना हिचक बोली तो मै चौंक गया । उसका इतनी जल्दी इस योजना से सहमत होना मुझे बिस्मित कर रहा था।

'' देखिये ,पहले मैं आपको गाइड-लाइन समझा रहा हूँ ! आपको सबसे पहले घर में  बैठ कर एक सूची बना लेना  है, जिसमें आप उन लोगों के नाम लिखेंगे जिनसे आपका धंधा हो सकता है । इस सूची में आप फै्रेण्ड के नाम लिखेंगे ।''

'' फ्रैण्ड यानि की दोस्त लोग ! ''

मनीराम मुस्कराया -'' फ्रैण्ड मायने दोस्त भी, पर हमारे इस फ्रैण्ड में अंग्रेजी के फै्रेण्ड की स्पिलिंग का हर हिज्जा होता है। फै्रण्ड के पूरे हिज्जे हैं -  F R I E N D ! इसके हर हिज्जे से आपके इर्द गिर्द का हर वो आदमी आ जाता है, जो किसी न किसी कारण से आपसे जुड़ा हुआ है । एफ मायने फै्रेण्ड एंड फेमिली -दोस्त और परिवार के लोग । आर का अर्थ है रिलेटिव्स मायने रिश्तेदार । आय मायने इनर परसन , आपके वे परिचित जो आपके अति निकट है। इ मायने इंपलायी यानी कि कर्मचारी गण । एन मायने नेवर यानी आपके पड़ौसी , और डी याने कि आपके डिपार्टमेंटल कुलीग्स । इस तरह आप यदि आपने आसपास के सब लोगों की सूची बना लेंगे, तो आपके हाथ में उन संभावित लोग के नाम होंगे, जो कि आपके काम में मददगार हो सकते हैं । इसमें सेें तमाम लोग ऐसे होंगेजो वितरक बन सकते हैं , और तमाम लोग ऐसे हो सकते हैे , जो सिर्फ अपने दैनिक उपयोग वाली दुकान बदल देंगे, यानी वे अपनी पुरानी दुकान की जगह आपसे सामान लेंगे।''


''जाओ शुभा , चाय ले आओ , आगे की चर्चा हम चाय के बाद करेंगे । मनीराम जी ने हमको मंत्र पढ़ कर मोहित सा कर दिया है , शायद चाय उस जादू को तोड़ेगी ।'' मैंने शुभा से चिरौेरी की , तो वह प्रसन्न मनसे उठी और भीतर चली गयी । अन्नपूर्णा भाभी भी झट से उठीं औेर वे भी उसके पीछे-पीछे भीतर जा पहुंची ।

मनीराम ने बेैग में से निकाल कर एक ऑडियो वाली कैसेट निकाली और कहा

-'' इसे सुनकर आपको ग्राहक की डील करने की टेकनिक ही नहीं ,इस तरह का काम करनेवाले उन तमाम लोगों के विचार सुनने को मिलेंगे , पहले जिनमें से हर कोई या तो छोटा-मोटा दुकानदार था ,या फिर छोटी मोटी नौकरी करके अपना गुजारा किया करता था ,औेर वे सब इस कंपनी को ज्वाइन करने के बाद आज हर महीने लाखों में खेल रहे हैं ।''

फिर उसने वह सिस्टम समझाया जिसे अपना के हम भी लाखों में खेल सकते थे। उसने बताया कि हमको पहले ऐसे आठ लोगों को टारगेट बना के काम शुरू करना है ,जो एक्टिव हों ओैर उनमें से हरेक आदमी आठ-आठ वितरक बना सके । उन चौंसठ का लक्ष्य होगा प्रत्येक के लिए आठ-आठ वितरक बनाना ।

मनीराम की बातें बड़ी आकर्शक थीं , तथ्य बड़े मोहक थे , ओैर आंकड़े भी प्रामाणिक , पर वह ऐसा प्लान था जिस पर हजारों-लाखों में शायद कोई एक चल पाता होगा ।

उस दिन हम लोगों ने विचार करने का समय मांगा और किसी तरह उन दोनों से मुक्ति पायी ।


आठ दिन बाद वर्मा भाभी एकाएक मेरे ऑफिस में आ धमकी । मैं उस दिन अपने डेवलपमेंट ऑफीसर के पास बैठा था ।

उन्हे बैठा कर मेैंने मुस्कराते हुये उनसे पूछा-''कहिये भाभी जी, क्या हुकुम है ?''

'' अपन लोग बाहर चल कर चाय पियें तो कैसा रहे !''

मैं तपाक से तेैयार हो गया । गाड़ी स्टार्ट हुयी तो अन्नपूर्णा भाभी फुर्ती से लपकीं और एक अभ्यस्त महिला सवार की तरह इत्मीनान से सटकर मेरे पीछे बैठ गयी । अब उनका चेहरा मेरे कान के पास था , इतने पास , कि मुझे उनके बाल में लगे सुगंधित तेल औेर चेहरे पर लगायी गयी क्रीम की खुशबू मेरे नासा पुूटों में प्रवेश कर रही थी । उनके दांये हाथ ने मेरी कमर के गिर्द घेरा कसा तो मुझे लगा कि मेरीे वाइक जमीन पर नहीं चल रही , आहिस्ता से जमीन से ऊपर उठी हेै औेर हम आसमान में कंलांचे भरने लगे हैं ।

हर्बल चाय पीते हुए भाभी ने बताया कि दिल्ली में जम्बो कंपनी की एक दिवसीय सेमिनार हैे ,इसमें जिस वितरक को जाना हो वो सोलह सौ रूपये का टिकट लेकर शामिल हो सकता है । पता लगा कि वे ख्ुाद के साथ मेरा भी टिकट ले आयी हैं। मै ना नुकर करने वाला था कि वे बड़ी आज़िज़ी से बोलीं -'' दरअसल मनीराम जी के घर में गमी हो गयी हैे ,सो वे नहीे जा पा रहेे, इस कारण आप से इस़रार करने आयी हूं कि आप मेरे साथ चलें ।''

...अब भला मैं मना भी कैसे कर सकता था !

उन्हे विदा कर कार्यालय में लौटा ,तो मेरे मस्तिश्क में पुराना मुहावरा गूंज रहा था-अंधे के हाथ बटेर ।

मैंने अपनी जिन्दगी में अब तक बटेर नहीं देखी थी, आंख मूंद के मैं बटेर की कल्पना करने लगा। जब भी मैं अपने स्मृति-फलक पर बटेर की छबि सृजित करने की कोशिश करता, मुझे हर बार वर्मा भाभी की सूरत याद आती, तो मैं अनाम और मीठी सी अनुभूतियों से भर उठता ।

घर पहुंचा , तो शुभा चाय पकड़ाते हुये बड़े प्रसन्न मन से सुना रही थी-'' पता है, आज अपनी चिंकी की टीचर कुलकर्णी मैडम आयी थीं । पैरेन्ट-टीचर मीटिंग में तो वे प्रायः मिलती रहती हैं ? पर इस बात उनके आने की वजह वहीं जम्बो कंपनी थी ।''

'' जम्बो कंपनी ?'' अब चौंकने की बारी मेरी थी ।

'' हां !'' मन्द-मन्द मुस्काती शुभा रहस्य खोलने के अन्दाज में बोली-'' आजकल वे भी जम्बो कम्पनी का काम कर रही हैं । बोल रहीं थीं , कि इस काम से उन्हे हर महीने पांच हजार से ज्यादा अर्निंग हो जाती है ।''

''हूं ! !'' एक गंभीर हुंकारा छोड़ कर मैंने उसे प्रोत्साहित किया ।

''सुनो ! ! ....अपन लोग इस काम को काहे को लटका रहे हैं ? चलो अपन भी ये काम शुरू कर दें ।'' उसके स्वर में बड़ा आत्मीय आग्रह झांक रहा था ।

मैंने जम्बो कंपनी के काम से ही वर्मा भाभी के साथ दिल्ली जाने की सूचना दी तो यकायक शुभा जिद करने लगी , कि वह भी दिल्ली जाना चाहती हेै । मेरी सारी उमंग समाप्त हो गयी । लेकिन दिल्ली तो जाना ही पड़ा ।


अलबत्ता, दिल्ली यात्रा में मुझे वो आनंद नहीं आया ,जेैसी कि मैं कल्पना कर रहा था । हां ,ग्राहक को डील करने की कला, नये प्रॉडक्टस का परिचय औेर नयी स्कीमों के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला । कुछ बातें तो ऐसी भी सीखने कोे मिली जो बीमा एंजेंट होने के नाते मेरे जॉब के लिये लाभ दायक हो सकती थी ।


एक दिन रात आठ बजे मेैं अपने एक पॉलिसी होल्डर से प्रीमियम लेने वर्माजी के मोहल्ले की तरफ जा निकला था, और वहां से लौट ही रहा था कि अन्नपूर्णा भाभी से मिलने का मन हो आया । वर्माजी दरवाजे खोल कर बैठे थे और मेरी गाड़ी को उन्होने मनीराम की गाड़ी समझा ।

पहले तो मायूस हुये फिर मुझे देख कर वे मुस्कराये । मेैने भाभी के बारे में पूछा तो उन्होने बताया कि वे सुबह से ही मनीराम के साथ गयी हैे ,और अब तक लौटी नहीं हैे ।

मैने दुखी से स्वर में उनसे कहा -'' इस तरह बिजनेस के लिए भाभी के प्रायः घर से बाहर रहने पर आपको दिक्कत तो होती होगी । ''

''अब भई तरक्की करना है, तो हमे कुछ न कुछ तो त्याग करना ही पडेगा न !''

''फिर भी घर के काम ़ ़ ़़?''

''घर के काम तो कैसे ही हो जाते हैंे अमर भैया ! इत्ती सी बात के लिए उन्हे घर में बन्द रखना उचित नहीं । मैं बेसिकली महिलाओ की स्वतंत्रता का समर्थक हूं । मेरे मतानुसार औेरतों को रसोेईघर से बाहर निकल कर काम धाम सीखना चाहिये। इससे उनका इंडीजुअल डेवलपमैंट होता हेै, ...अभिव्यक्ति का मौका मिलता है , ...और घर के साथ-साथ स्वयं वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो जाती हैं ।''

मन ही मन मैंने कहा -' पिछले साल , जब भाभी को बीमा-ऐजेंट बनाने का प्रस्ताव रखा था तो आप कहते थे कि औरतों की सही जगह घर में है, उन्हे घर में ही रहना चाहिये ! और अगर जॉब भी करना है तो किसी कॉन्वेंट में टीचरशिप वगैरह मिल जाये तो वह कर लेंना ठीक रहता है ।'

पर प्रत्यक्षतः मैं यही बोला-'' हां , अभिव्यक्ति का मौका और आर्थिक स्वतंत्रता तो मिलती है !''

'' कहिये आप कैसे पधारे !'' वर्माजी ने सहसा मुझे सकते की स्थिति में डाल दिया था ।

''मैं दरअसल ,... '' कहते हुये कुछ अटकने लगा तो यकायक याद आया और मैंने बेधड़क उनसे कह डाला -'' उस दिन भाभी ने कहा था कि जम्बो कंपनी का रीजनल-स्टोर आपके घर में हैं ,सो मैं टुथ-पेस्ट और नाईटक्रीम लेने आया था !''

मेरा इतना कहना था कि अब तक उदास और अलसाये से बैठे वर्माजी में यकायक फुर्ती आ गयी , वे उठे और बैठक में अस्त-व्यस्त रखे कार्टूनों में मेरी मांगी गयी चीजें तलाश करने लगे ।

मैंने उड़ती नजर से देखा कि वर्माजी के घर में बैठक ही नही, स्टोर, किचेन और यहां तक कि बेडरूम तक में भी ...यानी कि हर जगह, अन्नपूर्णा भाभी की कंपनी की चीजें अपने प्राइज-टैग प्रदर्शित करती बिखरी हुईं थीं , जिनमें मिक्स होकर अन्नपूर्णा भाभी की निहायत निजी चीजें भी बेध्यानी में वहां पड़ीं थीं। जिसे देख मुझे जाने कैसा-कैसा लग रहा था? अचानक मुझे अहसास हुआ कि इस नयी तरक्की यानी भूमण्डलीकरण के इस नये दोैर में बहुत कुछ बदला है।...चीजें तेजी से अपनी जगह बदल रही हैं ! ... जिस चीज के लिए जो जगह निश्चित की गयी हैे , अब वो केवल वहीं नही मिलती, सब जगह मिल जाती है ! ...बाजार केवल बाजार तक सीमित नहीं रह गया...। अब वर्माजी जैेसे कई घरों में बाजार स्वयं घुस आया हेै-अपने पूरे संस्कार, आचरण , आदतों और बुराइयों के साथ !

घर लौटते वक्त मैं मन ही मन तरक्की के लाभ-हानि का बही-खाता तैयार कर रहा था, जिसमें मैं और मेरी पत्नी शुभा भी शायद अपनी प्रविश्टि कराने को आतुर थे ।



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