नजरिया
नजरिया
"अरे मेरे मोबाइल से लो, फोटो अच्छा आएगा। ये देखो अच्छा है न ?" नेहा और प्रिया ने अपनी सिटी बस यात्रा को कैमरे में कैद कर लिया।
"राहुल ने दिलाया है ये मोबाइल, शादी की सालगिरह पर" कहते हुए नेहा अपना मोबाइल दिखाने लगी। "अरे वाह, बड़ी लकी हो तुम तो" प्रिया ने कहा।
"बस कहने को लकी हूँ। राहुल ना पूरा "मम्मा'स बॉय" है। हर बात में मम्मी पहले। कोई त्यौहार हो, पहले मम्मीजी के लिए कपडे लाएगा। बाहर कहीं घूमने भी जाना हो, तो पहले मम्मीजी से पूछेगा। इतना बड़ा होकर भी न अपनी माँ का पल्लू नहीं छूटता। मैं तो तंग आ गयी हूँ। क्या हर वक़्त मम्मी, मम्मी !" "मेरी तरफ तो जैसे उसका ध्यान ही नहीं है।"
"सच कह रही हो नेहा। मेरे घर भी यही हाल हैं। ऊपर से मेरी सास तो कुछ लेने का मौका ही नहीं छोड़ती। पता नहीं कौन सी घुट्टी पिला रखी है अपने बेटों को !"
पीछे की सीट पर ही एक अधेड़ उम्र की महिला बैठे-बैठे सब सुन रही थी।
"बेटा मे
रे मोबाइल से एक फोटो ले लोगी क्या मेरा ?" महिला अपना मोबाइल आगे बढ़ाते हुए बोली। नेहा को बड़ा अजीब लगा पर उसने हाँ कर दी।"
"वॉव, इसका कैमरा तो मेरे मोबाइल सी भी अच्छा है, नेहा ने कहा।
"एक बात कहूँ बेटा ?" आंटी को बोलने का मौका मिल गया।
"जो व्यक्ति अपनी माँ को अच्छे से रखता है ना, वो ही व्यक्ति अपने पत्नी को अच्छे से रख सकता है।"
"एक बार सोच कर देखो। जिस माँ ने नौ महीने गर्भ में रखा, अगर कोई आदमी उसका ही ध्यान नहीं रखेगा तो अपनी पत्नी का कैसे रखेगा ?"
"तुमने सुना भी हो शायद लोग कहते हैं - जो माँ-बाप का ही नहीं हो सकता, वो क्या किसी का होगा ?"
"अगर तुम्हारे पति अपनी माँ का अच्छे से ध्यान रखते हैं, तो तुम्हारा भी ज़रूर रखेंगे।"
"बात नज़रिये की है बेटा। कैमरा जितना अच्छा हो, फोटो भी उतना ही अच्छा आएगा।"
और आंटी अपने स्टॉप पर उतर गई। वहां उनका बेटा उनको ले जाने के लिए तैयार खड़ा था।