Pinkey Tiwari

Drama

5.0  

Pinkey Tiwari

Drama

अनजान रंग

अनजान रंग

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मम्मी, ज़रा पापा को बोला करो ना कि दीवार से टिक कर ना बैठा करें। अभी दिवाली पर ही पुतवाया था पूरा घर। हॉल से ही घर की शान होती है, कम से कम हॉल की दीवारें तो बेदाग़ रहें। एक तो सिर में इतना तेल लगाते हैं और फिर दीवार से टिक कर बैठ जाते हैं।

वक़्त से पहले ही हर चीज़ मिल गयी थी विक्रम को। पुश्तैनी मकान तो था ही और वह कम उम्र में ही प्रशासनिक अधिकारी भी बन गया, फिर अपने बूते पर एक मकान और बना लिया। दम्भ का रंग धीरे धीरे चढ़ता जा रहा था विक्रम पर। पर बदकिस्मती से विक्रम के पिताजी ने घर में आते वक़्त विक्रम की बातें सुन ली थीं।

आज होली के एक दिन पहले वे हमेशा की तरह रंग लेने बाज़ार गए थे। पर विक्रम के शब्द सुनकर उनके चेहरे और मन दोनो का रंग फीका पड़ गया था। वो विक्रम के बचपन के उस दिन को याद कर रहे थे जब उसने घर की कई दीवारों को मोम के रंगों से चितर दिया था और उन चितरी हुई दीवारों को देखकर वो बहुत खुश हुआ करते थे और कोई कुछ कहता तो बोल देते थे कि दीवाली पर फिर पुतवा लेंगे।

रंगों के भी इस बदलते हुए रंग को वो कुछ नाम ही नहीं दे पा रहे थे। उन्होंने फिर अपने चेहरे पर सब बातों से अनजान बनने का रंग लगाया और चुप चाप हॉल में आकर बैठ गए, दीवार से दूर।


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