जादुई बिस्किट
जादुई बिस्किट


साक्षी शहर के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में काम करती थी। सुबह की भाग दौड़ और समय पर ऑफिस पहुँचने की जद्दोजहद में कई बार नाश्ता भी नहीं कर पाती थी। इसके समाधान स्वरूप पर्स में एक बिस्किट का पैकेट रखती थी और समय मिलने पर कभी कभी खा भी लेती थी। उसकी मम्मी जब भी उसे कहती कि नाश्ता करके ही जाया कर तो वो कहती 'ये है ना मेरा जादुई बिस्किट' और कभी उनकी बात नहीं सुनती थी। घर लौटते समय ट्रैफिक जाम और वहाँ पर पेन-पेंसिल और खिलौने बेचने वालों और माँगने वालों से आए दिन उसका सामना होता रहता था और कभी कभी वो उन्हें कुछ दे भी देती थी। आज सिग्नल पर एक बच्चा बिल्कुल पीछे ही पड़ गया -'मैडम कुछ दे
दो'। सिग्नल खुलने ही वाला था। पर्स में से वॉलेट निकालकर खुल्ले रुपए निकालने जितना समय नहीं था। अतः उसने जल्दी-जल्दी में बिस्किट का पैकेट निकालकर उस बच्चे को थमा दिया और सिग्नल खुलते ही घर की ओर चल पड़ी। सिग्नल पर उस बच्चे को 5 रुपए के बिस्किट का पैकेट देकर उसे जो खुशी हो रही थी वह कभी किसी को भीख देकर नहीं हुई थी। आज बहुत तनाव पूर्ण दिन होने के बावजूद उसे एक अलग सा सुकून मिल रहा था और सोते-सोते इस सुकून का कारण भी पता चल ही गया।
अगली सुबह उसने अपने पर्स में एक की जगह दो बिस्किट के पैकेट डाल लिए और ऑफिस के लिए निकल गई, जादुई बिस्किट की जादुई ऊर्जा के साथ।