एक सीख ऐसी भी
एक सीख ऐसी भी


'मम्मी मुझे भी एक पिंजरा दिला दो ना। हम उसमे मिट्ठू को रखेंगे जैसे मेरे दोस्त के घर पर है और पता है वो मिट्ठू तो राम-राम भी बोलता है। मैंने पापा से पहले ही पूछ लिया है और उन्होंने तो हाँ भी कर दी है। बस आप मान जाओ।
अपने नन्हे की फरमाइश को बड़े ध्यान से सुन रही थी श्वेता तभी आरव के पापा विशाल भी ऑफिस से आ गए। 'बताओ आज शाम को कहाँ घूमने चलना है ? आज मेरा हाफ डे है।"
'नेहरू पार्क' श्वेता ने तुरंत कहा। सभी तैयार हो नेहरू पार्क के लिए निकल पड़े।
नेहरू पार्क की एक विशेषता थी। पार्क के बाहर बरगद के बड़े-बड़े पेड़ थे और शाम होते ही वहां पर बड़ी संख्या में पक्षियों की मधुर आवाज़ सुनने को मिलती थी, विशेषतः मिट्ठुओं की।
'हम शॉपिंग मॉल भी तो जा सकते थे श्वेता पर तुमने नेहरू पार्क को क्यों चुना ?'- विशाल ने पुछा।
श्वेता ने कहा - 'आपको थोड़ी देर में उत्तर मिल जायेगा।'
पार्क में पहुँचते ही आरव का ध्यान भी उन मिट्ठुओं की आवाज़ों पर स्वतः ही चला गया। 'मम्मा मैंने पहले कभी इतने सा
रे मिट्ठू नहीं देखे। मुझे तो बहुत मज़ा आ रहा है इनको देखकर। '
'हाँ आरव, वो तुम क्या कह रहे थे कुछ पिंजरा लेना है ?'
'हाँ मम्मी, मैं कह रहा था कि मुझे मिट्ठुओं से बहुत प्यार है, तो हम एक पिंजरा ले लेंगे, उसमे मिट्ठू को पालेंगे ।'
'एक बात पूछूं ? क्या वाकई तुम्हे इतना प्यार है मिट्ठुओं से ?
'हाँ मम्मी, कितनी बार बताऊंगा ?'
'मुझे तो लगता है जिसने ये पेड़ लगाए होंगे उसे ही मिट्ठुओं से सबसे ज़्यादा प्यार होगा।'
वो कैसे मम्मी ?
'क्योंकि जब हम पिंजरे में किसी पक्षी को पालते हैं, तब वो खुश नहीं रहता है और ये देखो कितने उन्मुक्त होकर, कितने चहचहा रहे हैं इतने सारे मिट्ठू और ये ऐसे ही खुश रहते हैं।'
पक्षियों से अगर प्यार है न बेटा, तो उनको पिंजरे में कैद मत करो बल्कि एक पेड़ लगाओ।
पार्क से घर लौटते हुए आरव से अपने पापा से कहा - 'पापा वो रस्ते में जो नर्सरी आती है न मुझे वहां से एक पौधा दिला देना।'
विशाल को भी उत्तर और सीख दोनों मिल गए थे।