बरकत
बरकत


रियांश अब पूरे पाँच साल का हो गया था। घर में सबका लाडला और बहुत नटखट। कभी दीवारों पर अपनी कलाकारी दिखाता तो कभी सोफे के हैंडल पर चढ़कर टीवी देखता। इस बार तो रियांश की मम्मी को उसके जन्मदिन पर तोहफे के रूप में एक सलाह भी मिल गयी थी। वही सलाह कि बच्चे को पाँच साल तक बहुत लाड़ करो, पाँच साल के बाद बच्चे के साथ थोड़ा सख़्त हो जाओ और जब वो जवान हो जाए तो उसके साथ एक दोस्त की तरह बर्ताव रखो।आखिर श्वेता भी ठहरी सुपरमॉम तो बस फिर अब रियांश की हर हरकत पर उसकी मम्मी श्वेता की रोक-टोक शुरू हो गई।
वो कभी तकिये पर बैठ जाता तो पीछे से श्वेता कहती 'अरे तकिये पर मत बैठो, ऐसा करने से घर की बरकत चली जाती है।' बेचारा रियांश एक-दो दिन तो याद रखता फिर भूल जाता, लेकिन श्वेता तो कटिबद्ध थी एक ही दिन में अपने लाडले को सुधारने के लिए। अब रियांश का हाथ रसोई में रखी पानी की मटकी पर भी पहुँच जाता था तो वो कभी भी उसमे लोटा डाल कर उसे मुँह से लगाकर पानी भी पी लेता, लेकिन श्वेता फिर वही बात कहती 'ऐसा नहीं करते, इससे घर की बरकत चली जाती है।'
अब तक तो दादी अपने हाथों से उसे खा
ना खिलाया करती थी लेकिन अब श्वेता ने कह दिया 'अबसे रियांश अपने हाथ से ही खाना खायेगा।' रियांश भी चल दिया अपनी रंग-बिरंगी कार्टून की डिज़ाइन वाली खाने की थाली लेकर, लेकिन डाइनिंग टेबल पर नहीं, बिस्तर पर जाकर बैठ गया। जैसे-तैसे आधी रोटी भी अपनी हाथों से खा ली, लेकिन श्वेता फिर वहीं आकर अटक गई 'बिस्तर पर बैठकर खाना नहीं खाते, नहीं तो घर की सारी बरकत चली जाती है।' अब तो नन्हे रियांश ने पूछ ही लिया की ये 'बरकत' क्या होती है मम्मी ?' श्वेता ने दो टूक में वो भी समझा दिया - 'बरकत यानी पैसा।' मम्मी का जवाब सुनकर रियांश अपनी नन्हे खाली हाथों को ऊपर करके बोला- 'पर मम्मी….मेरे पास तो बरकत है ही नहीं !!'
दूर बैठी दादी माँ सारा वाकया देख रही थी। उन्होंने नन्हे रियांश को अपने पास बुलाया और समझाया 'बेटा बरकत यानी सिर्फ पैसा नहीं होता, बरकत यानी होता है ख़ुशी, खिलौने, दोस्त, परिवार, टीचर, घर, हँसी, मस्ती, खेल, धमाल, और वो सब जो हमारे पास होता है।' और दोनों दादी-पोते पलंग पर बैठकर तोता उड़, मैना उड़ खेलने लगे।
श्वेता अपने घर की बरकत को तोता उड़, मैना उड़ खेलते हुए भीगी पलकों से देख रही थी।