नई उम्मीद
नई उम्मीद


दादी के लाड़ले आयुष को पेड़ पौधों से बहुत लगाव था। उनके साथ रोज़ पौधों को पानी देता । उसकी जिज्ञासाओं का समाधान दादी कई बार बड़े ही रोचक तरीके से करती। दूसरी तरफ़ आयुष का बड़ा भाई 12 वी कक्षा में पिछले वर्ष अनुत्तीर्ण हो गया था, अक्सर उदास रहता था। एक दिन आयुष ने दादी से कहा मुझे भी अपने हाथों से पौधा लगाने है और दादी की अनुमति से उसने मेथी के कुछ दाने (बीज) एक छोटे से गमले में डाल दिए। रोज़ उसमें पानी देता और बीज के अंकुरित होने की प्रतीक्षा करता। लगातार पाँच दिन तक जब उसे बीज में अंकुरण नहीं दिखा तो वो दुखी हो गया । दादी ने उसको समझाकर कहा कि बेटा
बीज को पौधा बनने में समय लगता है, उम्मीद मत छोड़ो। जो उम्मीद छोड़ देता है वो कई बार जीतने की क्षमता होते हुए भी हार जाता है। दो तीन दिन बाद गमले में एक छोटा सा अंकुर फूटा और आयुष दौड़ता हुआ दादी के पास आया और बोला 'दादी आप बिलकुल सही कह रही थीं आज मेरे गमले में एक टाइनी सा प्लांट दिखा मुझे'!
दादी ने फिर उम्मीद वाली बात दोहराई और आयुष को गले लगा लिया। दोनों की बातें सुनकर आयुष के बड़े भाई ने भी इस बार पूरी मेहनत करके 12 वी की परीक्षा उत्तीर्ण करने का संकल्प लिया। एक छोटे से बीज ने आज किसी के मन में नई उम्मीद का शाश्वत बीज बो दिया।