Ankur Singh

Horror

4.0  

Ankur Singh

Horror

निशी डाक

निशी डाक

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रमेश बाबू आज बहुत दिनों बाद बहुत खुश नजर आ रहे थे आखिर कई सालों बाद उनके घर खुशियां जो आयी था। खुशियों से तात्पर्य है उनकी बहु से - मनोलिका बसु। रमेश बाबू को आज पहली बार अपने बेटे के पसंद पर भी गर्व था। आखिर हो भी क्यों न इतनी खूबसूरत लड़की से शादी जो कर आया। हालांकि उन्हें इस बात का दुख है कि वैसे शादी नहीं हो पायी जैसा वो चाह रहे थे पर इस कोरोना काल में शादी हो गयी यही बड़ी बात थी।

रमेश बाबू हावड़ा ब्रिज के बगल में एक छोटे से खानदानी घर में रहने वाले सरकारी बाबू थे। कुछ समय पहले उनकी बीवी की हृदयघात से मृत्यु हो गयी थी। तभी से रमेश बाबू बहुत उदास और दुखी रहने लगे परंतु आज उनके बेटे सतीश बाबू ने अपनी जॉब के दौरान एक लड़की को पसंद कर लिया और कुछ ही दिनों में भारतीय आर्य समाज ट्रस्ट के सामने विवाह बंधन में बंध गए।

मनोलिका कमाल की खूबसूरत लड़की थी और उतनी ही गुड़कारी, संस्कारी भी .. आते ही सबका दिल। जीत लिया। रमेश बाबू की तो बहु नहीं बेटी बन गयी थी। शाम को रमेश बाबू ने अपने घर में छोटी सी पार्टी रखी इस उम्मीद में की आस-पड़ोस के लोग जरूर आएंगे। आधी रात तक इन्तजार लिया पर कोरोना की वजह से कोई नही आया। रमेश बाबू जो सुबह से खुश नजर आ रहे थे वो रात होते - होते फिर से निराश हो गए। अपनी निराशा से बाहर आते पाते इससे पहले ही एक फ़ोन आ गया। फ़ोन पर दूसरी तरफ से जो कुछ सुनाई दिया उसे वो सहन नहीं कर पाए और कटे पेड़ की तरह सोफे पर गिर गए।

थोड़ी देर बाद उन्हें अपने आप होश आया और तुरंत ही गांव जाने का प्लान बनाया। अपने बेटे - बहु से बात की और उन्हें भी अपने साथ गाँव सुबह तड़के ही ले के निकल गए।

गाँव पहुंचते ही रमेश बाबू फुट-फुट के रोने लगे और अपने घर पहुंचते तक उनका रो-रो कर बुरा हाल हो चुका था होता भी क्यों न उन्हें अपनी माँ के मरने की खबर मिली थी। 97 साल की वृद्ध माताजी को इस तरह देख कर पूरा परिवार क्या .. पूरा गाँव दुखी था। अपनी माता जी के आखिरी दर्शन करने के लिए जब रमेश बाबू झुके तो हैरान राह गए। माँ के हाथ पैरो पे अजीब से निशान थे। इससे पहले रमेश बाबू कुछ कह पाते उनके बगल में बैठे एक बुजुर्ग व्यक्ति ने धीरे से उनके कान के पास कहा - निशि डाक उस वृद्ध की बात सुन रमेश बाबू हैरान रह गए।

आज से पहले सिर्फ किस्से-कहानियों में ही निशि डाक के बारे में सुना था एक ऐसी आत्मा या चुड़ैल जो रात में किसी के भी घर के गेट को खटखटा कर 2 बार आवाज़ लगाती है और अगर उस घर का कोई सदस्य दरवाजे को खोल देता हैं तब वही निशि डाक उसे मार डालती है। रमेश बाबू अपने बच्चे और बहु के साथ तुरंत वहाँ से निकलना चाह रहे थे पर लोगों ने अंतिम संस्कार तक रुक जाने को कहा। रमेश बाबू जानते थे की अगर वो आज रुक गए तो अगले 13 दिन और रुकना पड़ेगा। परंतु निशि डाक का डर उन पर इतना हावी था कि वे कुछ सोच समझ नहीं पा रहे थे।

आखिरकार माँ की खातिर उन्हें रुकना ही पड़ा। शाम होते होते सतीश बाबू की गाँव के अपने हम उम्र लोगों से अच्छी दोस्ती हो गयी। पिताजी जॉब लगने के बाद बहुत काम घर आये और उनके बच्चे भी इसी वजह से सतीश बाबू गाँव में किसी को नहीं जानते थे। परंतु आज गांव में कुछ लोगों से दोस्ती हो गयी उन्हीं में से एक था भोला चंद्र चट्टोपाध्याय। दिन भर के कार्यक्रम में साथ रहने के कारण दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गयी थी। शाम को करीब 6 बजे दोनों एक साथ एक नल पर हाथ पैर धो रहे थे तब सतीश बाबू उत्सुकतावश निशि डाक के बारे में पूछ बैठे। पहले तो भोला ने मना कर दिया परंतु सतीश बाबू के बहुत जोर देने पर मान गए। भोला ने सतीश बाबू को निशि डाक के बारे में सब बता दिया पर सतीश बाबू पढ़े लिखे इंसान थे उन्हें इस बात पर पर पूरा भरोसा कि ये सिर्फ अंधविश्वास है।

रात को खाने की मेज़ पर रमेश बाबू ने वही बात दोहराई कि कोई भी 3 बार लगातार नाम सुने बिना न तो दरवाजा खोलेगा और न ही बाहर वाले से कोई बात करेगा। पिता जी के सामने तो सतीश बाबू ने हामी भर दी परंतु उनके जाने के बाद हँसने लगे परंतु जब देखा कि मनोलिका नहीं हँस रही है तो वापस चुपचाप खाना खाने लगे। खिचड़ी खाने के बाद दोनों पति-पत्नी अपने कमरे में सोने चले गए।

रात को अचानक रमेश बाबू को भोला की आवाज़ सुनाई दी -रमेश बाबू मेरी मदद करो मेरे बापूजी का एक्सीडेंट हो गया है। रमेश बाबू रमेश बाबू। भोला की आवाज़ सुन कर रमेश सकते में आ गए पर तभी भोला ने दुबारा आवाज़ लगाई - रमेश बाबू रमेश बाबूरमेश बाबू ने गिनती की अब तक 4 बार मेरा नाम लिया जा चुका है यानी ये निशि डाक है इसी भावावेश में वो बाहर जाने लगे। पत्नी के रोकने के बावजूद वो ब्रमेश बाबू बाहर निकल गए।

मनोलिका घबराई सी ससुर जी के पास गयी और उन्हें अपने पूरा घटनाक्रम सुना दिया। रमेश बाबू ने अपनी बंदूक उठाई और अपने बेटे को खोजने घर से बाहर निकलने ही वाले थे कि तभी उन्हें अपने पड़ोसी शैलेश बाबू की आवाज़ सुनाई दी जो उनसे मदद मांग रहा था। रमेश बाबू आपका लड़का बाहर पड़ा है उसका एक्सीडेंट हो गया है जल्दी आइये। रमेश बाबू .. रमेश बाबू अपने बेटे की चोट की बात सुन कर वो खुद को रोक नहीं पाए और बिना कुछ सोचे समझे बाहर निकल गए अपनी बंदूक के साथ।

परंतु मनोलिका घर में अकेली रह गयी। सुबह 5 बजे अचानक शोर मच गया मनोलिका भी घर से बाहर निकली तो देखा उसके पति और ससुर जी दोनों की लाशें उसी अवस्था में पड़ी है जैसे उनके ससुर की माँ की थी। ये सब मनोलिका से नहीं देखा गया और वो वही बेहोश हो गयी। कुछ घंटे बाद जब होश आया तब उसके आँखों से सिर्फ आंसू बाह रहे थे। तभी वही बुजुर्ग मनोलिका के सामने आया और पूरी सच्चाई बताई की ये सारा काम निशि डाक का है। साथ ही निशि डाक इस गाँव में कैसे आयी इसकी क्या कहानी थी वो भी बताई।

उस बुजुर्ग के शब्दों में -रमेश बाबू के परदादा महेश बाबू ने एक ऐसी लड़की से शादी कर ली थी जो जादू-टोना जानती थी। इसका इस्तेमाल कर वो लोगों की बलि लेती थी और अपनी शक्तियां बढ़ाती थी। एक दिन उसे महेश बाबू ने पकड़ लिया और पूरे गया गाँव वालों के सामने उसे जिंदा जला दिया। जाते - जाते उसने श्राप दिया कि इस गाँव का कोई भी निवासी और उसकी अगली 7 पुश्ते का जब तक खून ना पीयेगी उसे शांति नहीं मिलेगी। इस तरह इस गाँव में उस आत्मा का प्रभाव हो गया। तंत्र मंत्र शक्तियों की वजह से निशि डाक में बदल गयी और गांव के लोगों को मारने लगी। लोगों के शरीर को खरोंच कर पहले खून निकालती है फिर जान से मार देती।

उस बुजुर्ग व्यक्ति ने मनोलिका को तुरंत ही वापस जाने को कहा- मनोलिका रुकना चाहती थी परंतु बुजुर्ग ने जबरदस्ती उसे वापस शहर भेज दिया।

शहर वापस आने के बाद मनोलिका गुमसुम सी रहने लगी। मनोलिका को शहर आये भी 2-3 दिन ही हुए होंगे कि अचानक रात में उसे उल्टी होने लगी प्रेग्नेंसी टेस्ट लिया वो पॉजिटिव आया। मनोलिका हैरान और खुश दोनों थी कि तभी किसी ने उसके दरवाजे में दस्तक दी और आवाज़ लगाई - मनोलिका मनोलिका दरवाजा खोलो बेटा।


समाप्त



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