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Ankur Singh

Abstract Children

4  

Ankur Singh

Abstract Children

वो ठंडी रातें

वो ठंडी रातें

4 mins
32

मैं आज भले ही 31 का हो गया हु पर मेरा मन में मेरे बचपन कि यादें इस तरह बसी हुई है कि जैसे वो कल कि ही बात हो।

ठंडी के मौसम को प्यार का भी मौसम कहा जाता है। प्रकृति धरती पर खास तरह के फूल, फल को जन्मदिन देती है। कुछ खास जीव इसी मौसम में अपना कुनबा आगे बढ़ाते है। ठंडी के मौसम में पूरा शरीर जब काँपने लगता है तो आग और गर्म कपड़ो का सहारे ले इंसान खुद को बचाता है। इन्ही घटनाओं से अक्सर यादें बनती है जो ठंडी में भी मन को गर्म बनाये रखती है।

मेरे पास भी ठंडी से जुडी कुछ यादें है और एक दिन मैं अपने बच्चों के साथ उन्हें साझा करने वाला हु जैसे मुझसे बड़े लोगों ने कभी मुझसे साझा किया था। कुछ यादें साझा करने से बनती है और कुछ खुद शरीक हो कर बनानी पड़ती है। मेरे पास जो यादें है वो थोड़ी सी है पर वो मुझे हमेशा ऊर्जावान् बनाये रखती है।

अक्टूबर का महीना ख़त्म होने या सीधा-सीधा कहे दशहरे का त्यौहार ख़त्म होने पर ठण्ड का मौसम आने लगता है। घरों से ऊनी वस्त्र बाहर पहनें के लिए निकाल लिए जाते है और उन्हें धूप में एक दिन के लिए रख दिया जाता है ताकि अगर कपड़ो में कोई फंग्स वगैरह हो तो ख़त्म हो जाए।

रजाई और कम्बल रात में ओढने के लिए, महिलाये खासतौर पर शाल और स्वेटर और पुरुष स्वेटर या जैकेट का प्रयोग ठण्ड से बचने के लिए करते है। कानो के जरिये ठंडी हवा ना घुसे इसलिए सिर में कैप भी लगाते है। मेरे पिता मंकी कैप लगाना पसंद करते है क्योंकि उससे पूरा चेहरा ढक जाता है और ऊनी होने के वजह से गर्म भी खूब रखता है।

ठण्ड के मौसम में माते पालक और चौराई कि सब्जी बनाना ज्यादा पसंद करती है। पालक और चौराई में आयरन खूब होता है जिससे खून में शक्ति आती है। ठण्ड में पत्तेदार सब्जी खाने का मज़ा ही कुछ और है। अक्सर इसी मौसम में भैंस और गाय अपने-अपने बच्चों को जन्म देती है जिनसे दूध और घी का सेवन गाँव में बना रहता है और परिवार के वो सदस्य जो शहर में ही बस गए है उनके पास भी पहुंचा दिया जाता है।

ठंडी के मौसम बनने वाले मिष्ठान भी गजब के होते है। लाई, बर्फी गुड़ वाली बँधी लाई, रामदाना, गुड़ से बना सेव तो मेरा आज भी पसंदीदा मिष्ठान है पर दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर पे हमेशा गाजर का हलवा रहेगा उसका मुकाबला मेरी नजर में दुनिया का कोई मिष्ठान नहीं कर सकता खासकर जब वो मेरी माँ ने बनाया हो। घर में बने मिष्ठान कि खुशबू और स्वाद ऐसा होता है खुद तो खाते ही है और उस खुशबू और स्वाद का फल नाते-रिश्तेदारों और पड़ोसियों को भी देते है। मेरे यहाँ तो अक्सर नानी के यहाँ से मिष्ठान आते है उनके हाथ के बने गुड़ वाले सेव का कोई मुकाबला नहीं। सेठउरा भी गुड़ से बनता है और उसे दूध के साथ खाने का अलग ही मज़ा है खास कर उसमे जब ड्राई फ्रूट्स पड़े हो। खाने-पीने में इतनी वैराइटी सिर्फ ठण्ड में ही मिल सकती है।

चुंकि में प्रयागराज में रहता हु तो ठंडी में लगने वाले माघ मेले में घूमने जाना तो बनता है। कभी फॅमिली के साथ तो कभी किसी रिश्तेदार के साथ तो कभी भाई-बहनो तो कभी दोस्ती के साथ मेले में घूमने का अलग ही मज़ा है। मेले में चल रहे प्रदर्शिनी को देखना, तरह-तरह कि चीजे खाना, झूला-झूलना और थोड़े बहुत अच्छे से सामान दिख जाए तो अपने लिए और और अपने परिवार या दोस्तों के लिए लेना। इन भावनाओं को शब्दों में उतार पाना बहुत ही मुश्किल है पर इतने सारे पलों में एक ख़ास पल जो मुझे सबसे ज्यादा पसंद है वो है फॅमिली के साथ गांव में पुआल या लकड़ी का आग लगाना और उसके अगल-बगल बैठ कर तमाम तरह कि बात करना।

एक प्लेट या थाली में खाने का सामान आ जाता जैसे लाई और मिठाई। लोग खाते हुए अपने और पैर को सेंकते और एक दूसरे से घंटो तक विभिन्न मुद्दों पर बात करते। आपसी सामंजस्य बनाने का इससे अच्छा मौका मुझे दूसरा तो नहीं दिखता। एक बार अगर समूह बैठ गया तो पहले बातें एक दूसरे के बचपन में कि गयी शरारतों से होती, फिर बात पहुँचती उन लोगों पर जो सिंघाड़ा और नये चने के पत्तों के बने साग को खाना मिस कर गए, ऐसे ही बात आगे बढ़ती है और पहुँचती है पॉलिटिक्स और खेल पर और अंत में बात आ कर ख़तम होती है ठण्ड पर जिसमे तुलना कि जाती है कि इस बार पिछले बार से ज्यादा ठंडी पड़ रही है या कम। ठंडी से ठिठुर रहे हाथों को जल रहे अलाव से आराम दिया जाता है ज्योंकि दिन भर काम कर सबसे ज्यादा परेशान हाथ ही होते है ख़ास कर महिलाओं के हाथ। 

मैं अब भले ही एक बड़े शहर में रहता हु पर एक दिन अपनबे बच्चों को लेकर अपने गाँव जरूर जाना चाहूंगा जहा मैं उन्हें अपने बचपन कि बातें बता सकूँ।


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