नई चुनौती
नई चुनौती
उसने पूरी जिंदगी यूं ही काट दी थी, रोना अकसर वो चाहती थी पर दो बूँद आँसू ऑखो से गिराने के लिए तरसती रही, सब्र का जो पाठ मायके में घूंटी के साथ बराबर पिलाया गया था उससे वह दगा न कर सकी कभी रो नहीं सकी ।
परन्तु, आज मौका भी था दस्तूर भी रोना सामाजिक आवश्यकता भी थी उसे जार ज़ार रोना चाहिए फ़फ़क फ़फ़ क कर रोना चाहिए - - -
अभी बेटे का फोन अस्पताल से आया था वेंटीलेटर से हटाकर पिता को घर ला रहे हैं ' मृत्यु अवश्यमभावी थी - ' ।
पच्पन वर्षीय बेटी ने मां को कनखनी से देखा मन को तसल्ली दी ' माँ ठीक हैं पचास वर्षीय छोटी बेटी कंधे पर सिर रखकर फ़फ़क पड़ी माँ स्थिर रही . हाथ कंधे पर भी न रखा कुछ पल रोने के बाद वह स्वतः ही सिसकती हुई अलग हो चुप बैठ गयी । बड़ी लड़की ने शून्य में तकती जमीन पर गद्दे पर बैठी माँ के पैरो पर कंबल डालदिया जैसे सान्त्वना दी ' हम ख्याल रखेंगे तुम्हारा माँ ।
उसका दिमाग सुन्न होता जा रहा थाजिसके जीवन को जीते वह कई आदतो के बीच एक आदत बनगयी थी अब उन आदतों के बिना वह कैसे जिएगी ?
सुबह तड़के चाय बनाने से लेकर दिनभर खाना कपडे दवा नहलाना ' सारे दिन बकबक सुनना ' जवाब न देना ..उसकी दिनचर्या नहीं आदते थी - इन आदतो के विना वह कुछ नहीं थीअब कुछ नहीं ' को जीना ..जीवन की नई चुनौती थी।
