Rashmi Moide

Abstract

3.8  

Rashmi Moide

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नारियल पानी

नारियल पानी

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कई महिनों के बाद, आज कुछ जरूरी सामान खरीदने के लिए मैं अपने पति के साथ बाजार में आई थी। बाजार में चहल-पहल देखकर ऐसा लग ही नहीं रहा था कि कोई भयंकर महामारी का आंतक फैला हुआ है।

कुछ गिने चुने लोग ही नियमों का पालन कर रहे हैं, बाकी सब बेधड़क नियमों को ताक में रखकर आराम से घुम रहे हैं।

फल खरीदते हुए नारीयल पानी के ठेले से नारीयल लिए। उस ठेले के आसपास कोई कोई खड़े खड़े स्ट्रा से नारीयल पानी पी रहे थे। उन्हें देखकर मेरा मन बीस साल पीछे चला गया और सारे दृश्य चल चित्र की तरह एक के बाद एक अॉखो के सामने तैरने लगे। बड़ी मुश्किल से मैं अपने विचारों को रोककर वापस घर आईं व अपने आप को घर के कामों में व्यस्त किया। लेकिन रात को फिर से दुगनी शक्ति से विचारों ने मुझे घेर लिया।

बार बार मेरा मन नारीयल पानी के ठेले के आसपास मंडराते हुए नारीयल पानी के मिठास व ठंडाई को महसूस करने लगाता है।बात उन दिनो की है जब मैं पहली बार अकेले नेशनल योग काम्पटीशन के लिए चैन्नई गई थी।

पहले स्टेंट लेबल में सिलेक्शन हुआ, फिर नेशनल में जाने का अवसर मिला।खुशी के साथ साथ डर भी सताने लगा कि अकेले इतनी दूर कैसे जाउंगी। मेरी योग क्लास से मेरा अकेली का ही सिलेक्शन हुआ था बाकि अन्य क्लासो से हुआ था। मैं हमेशा कहीं भी जाती हूं तो अपने पति और बच्चों के साथ ही जाती हूं। इस बार सफर में योगाचार्य सर, मैडम और योग स्टुडेंट तो रहेंगे लेकिन उनसे ज्यादा जान पहचान नहीं थी। बस योग काम्पटीशन के दौरान ही दो चार लोगों से मिलना हुआ था।

कभी खुशी कभी ग़म के चलते वो दिन आ ही गया, जिस दिन चैन्नई जाना था। एक तरफ खुशी थी कि चैन्नई शहर घुमने को मिलेगा तो दूसरी ओर लग रहा था पता नही कौन और कैसे साथी रहेंगे। खैर , नियत समय पर रामजी का नाम लेकर गाड़ी में चढ़ गयें और अपनी सीट नंबर देखकर बैठ गए, आसपास नजर दौड़ाकर उन्हें ढूंढने लगी जिनसे योग काम्पटीशन के दौरान थोड़ी हलो,हाय हुई थी। लेकिन वो लोग कही दिखे नहीं। उस समय मोबाइल का चलन भी कम था। किसी किसी के पास ही होते थे।

 15 -20 मिनट ऐसे ही चुपचाप बैठी रही, फिर हिम्मत करके पास बैठी स्मार्ट लड़की से पूछा "आप कहाँ जा रही हो।"

 उसने कहा " चैन्नई। "

मैने पूछा, "आप वहां रहती हो या यूं ही घूमने जा रही है।"

मै योग काम्पटीशन में भाग लेने जा रही हूँ, वो बोली। 

"आप कहाँ जा रही हो आंटी। "

"मै भी वहीं जा रही हूँ जहाँ आप जा रही हो और जिस काम के लिए जा रही हो।"

"अच्छा। "

"कौन कौन है आपके साथ मेरा मतलब कौन से सर के नेतृत्व में। "

"उससे सर का नाम सुनकर मै बोली अरे इन्ही सर के साथ तो मै भी जा रही हूँ पर दिखाई नहीं दे रहें हैं।"

वो बोली "सर 4 नंबर सीट पर बैठे हैं। "

"हम 60 नंबर सीट पर बैठे हैं, "मैंने कहा। 

धीरे-धीरे ओर लोगों से जान पहचान हो गई। 10 - 12 साल की क्उम्र के लड़के लड़कियां से लेकर 55- 60 साल की उम्र के 30 - 35 योग प्रतियोगी चैन्नई जा रहें थे।कुछ हमारे शहर के, कुछ अन्य शहरों से है।8 -10 तो मेरे आसपास, उपर,नीचे की सीटों पर ही बैठे थे।एक एक करके सभी से अच्छी जान-पहचान हो गई।और फिर योग की चर्चा से लेकर नाश्ता,खाने का आदान-प्रदान करते हुए, गाने, अन्ताक्षरी, चुटकले, हंसी मजाक करते हुए इतना लंबा सफर अब कट गया पता ही नहीं चला।

हम लोग एक हफ्ते चैन्नई में रहे। रोज सुबह शाम दो घंटे योगासन, प्राणायाम प्रेक्टीस करना अनिवार्य था।दो घंटे योग करने के बाद बहुत तेज भूख लगती थी।खाने, नाश्ते में रोज सुपाच्य, सात्त्विक पौष्टिक साउथ इंडियन आहार होता था।शुरू शुरू में दो चार दिन तो बड़े मजे से इडली डोसा सांभर,चावल, रसम उपमा, नारियल चटनी स्वाद ले लेकर खाते रहे, पर रोटी, परांठे खाने वाले कब तक चुप रह सकते थे। *अतिथि देवो भव* जिस देश की परम्परा रही हो वो अपने मेहमानों को नाराज नहीं कर सकते थे।रोटी, परांठो को खाकर तो ऐसा लगा जैसे बरसों बाद खाना देखा हो।

काफी पीने का भी एक मजेदार किस्सा याद आ गया। एक बार जब हम कुछ सहेलियां पहली बार काफी पीने के लिए एक होटल में गये ओर काफी आर्डर की तो होटल का वेटर मिडियम साइज के स्टील के गिलासो में नीचे प्लेट रखकर काफी लेकर लाया, अब इतनी गरम गरम काफी गिलास से कैसे पीऊ समझ में नहीं आया, धीरे से एक चुस्की ली, ये क्या इसमें तो चीनी  भी नहीं हैपर किसी से बोल भी नहीं सकते थे, क्योंकि फीकी चाय- काफी पीने का फैशन जो था। वैसे ज्यादा मीठा तो नहीं पीते पर  बिना चीनी के भी नहीं चलता है। जैसेे काफी गुड़की और गिलास जैसे ही नीचे रखा उसके पैदे में बैठी चीनी रानी हस रही थी।चम्मच तो साथ में था नहीं, तो फिर काफी मिलाते भी  कैसे।बाद में पता चला साउथ में गिलास और प्लेट में उबड़ छाबड़ कर चीनी घोलते हुए काफी ठंडी करके पी जाती हैं।

अरे भाई बात तो नारीयल पानी से शुरू हुई है फिर यहाँ, वहां की बातें क्यूँ?बात तो सही है पर जब चैनई आये और बीच,याने समुद्र की बात ना हो तो मजा नहीं आता है। हम सब स्टूडेंट हमारे सर व मैडम के साथ बीच गये। मैंने पहली बार समुद्र इतनी पास से देखा और उसकी लहरो को छूकर महसूस किया। कितना मजा आ रहा था दूर से आती हुई अठखेलियां करती उंची उंची  लहरो में भीगना और ओ,ओ कर चिल्लाना।एक 12 साल की बच्ची तो डूबने ही वालीं थी पर अचानक मेरी नजर उस पर पड़ी और मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया। 

हाँ तो अब बात करते नारीयल पानी की। जहां हम ठहरे हुए थे उसके पास ही बहुत से नारीयल पानी के ठेले वाले खड़े रहते थे। हमें जब भी मौका मिलता था,सुबह या शाम हम नारीयल पानी पीते थे और उसकी मलाई जरूर खाते थे, जिसके नारीयल में मलाई नहीं होती थी वो दूसरो के पास से मांग कर खाते थे।बस जब भी नारीयल पानी के ठेले के आसपास खड़े लोगों को देखती हूं तो पुरानी यादें ताजा हो जाती है।


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