Rashmi Moide

Drama Inspirational

3.8  

Rashmi Moide

Drama Inspirational

प्यार की डोर

प्यार की डोर

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रात के खाने के बाद रमा हाल में चहल कदमी करते हुए इधर से, उधर घूम रही है।

श्रावण शुरू हो गया है, रक्षाबंधन आने वाला है। इस साल त्यौहार कैसे मनायेगे 

लाकडाउन तो खुल गया है लेकिन महामारी का खतरा बना हुआ है। स्कूल, कालेज भी बंद है। दो गज की दूरी रखते हुए सारे नियमों का पालन करना अनिवार्य है, इसलिए इस महामारी के चलते कही जाना भी ठीक नही है।

रमा ने  घड़ी पर नजर डाली, रात के ग्यारह बज रहे थे। वो अंदर अपने कमरे में आयी। देखा उसके पति सूरज ए सी चलाकर आराम से सो रहे है। रमा को नींद नही आ रही थी। 

उसके मन में बार बार यही बात आ रही थी कि इस बार इस वैश्विक  बिमारी के चलते राघव भैया को राखी बांधने कैसे जाऊंगी।

40 साल में यह पहला मौका है, जब मै अपने भाई को राखी बांध नही पाऊंगी। 

बचपन से लेकर आज तक हमेशा मैंने अपने भाई को राखी बांधी है।

बचपन में हम दोनो भाई-बहन छोटी छोटी बातों में कितना लड़ते झगड़ते रहते थे। लेकिन राखी के दिन न जाने कहाँ से मन में इतना प्यार उमड़ आता था।

अचानक रमा को शादी के बाद की एक घटना याद आ गई।

शादी के तीन साल बाद की बात है। 

उन दिनों भैया इन्दौर में रहते थे और हम पुणे में। 

 राखी के एक दिन पहले का इन्दौर का रिजर्वेशन था। हमारे घर से रेलवे स्टेशन का रास्ता आधे घंटे का था फिर भी ट्रेफिक के कारण डेढ़ घंटे पहले का समय देकर टैक्सी बुक करवा ली थी। 

निश्चित समय पर तैयार हो कर टैक्सी का रास्ता देखने लगे पर टैक्सी आई नहीं। दस मिनट के अंदर दूसरी टैक्सी से स्टेशन के लिये निकल गये लेकिन हर चौराहे पर जाम। ऐसा लग रहा था जैसे टैक्सी चल नही रही है, रेंग रही है।

मै बार बार टैक्सी वाले से बोल रही थी, टैक्सी तेज चलाओ हमारी ट्रेन का टाईम हो रहा है। टैक्सी वाला हर बार यही जवाब दे रहा था, क्या करे मैडम इतना जाम लगा है। 

बार-बार घड़ी देखते हुए रास्ते भर भगवान से प्रार्थना कर रही थी हें भगवान समय से पहुॅचा देना।

जैसे तैसे स्टेशन पहुंचे, देखा गाड़ी चार नंबर प्लेटफॉर्म से पांच मिनट में निकलने वाली थी और हम एक नंबर प्लेटफार्म थे।  

दो सूटकेस दो बैंग मेरी गोद में मेरा एक साल का बेटा।

कुली करने का भी टाईम नही। इतने सामान के साथ पुल पर चढ़ना, उतरना कैसे होगा। 

मैंने अपने पति की ओर देखकर बोला अब क्या करे?

पति ने फूर्ती से दोनों बैग कंधो पर टांगे और दोनों सूटकेस हाथो में लेते हुए बोले जल्दी दौड़कर चलो, कहकर दौड़ लगा दी, मै पीछे पीछे बच्चे को गोद में पकड़ कर तेज तेज कदमों के साथ चल दी। ये तो दौड़कर सामान सहित गाड़ी में चढ़ गये, मै गाड़ी तक पहुॅच भी नहीं पाई और ट्रेन चल दी।

अब क्या होगा? 

मेरा दिल जोर - जोर धड़कने लगा। (उस समय मोबाइल का चलन भी नही था )

घबराहट के मारे हाँथ, पैर फूलने लगे।

ऑखो के सामने अंधेरा छा गया और मै धम्म से प्लेटफार्म पर ही बैठ गईं। 

ऑखो से गंगा जमुना बहने लगी।

अचानक चैन पुलिंग की तेज आवाज के साथ ट्रेन रुक गई।

 मै जल्दी से उठी और दोड़कर अपने बोगी की तरफ लपकी, इतने में मेरे पति भी नीचे उतरकर आ गये और मुझे सहारा देकर डिब्बे में चढ़ाया।

इन्दौर पहुँच कर, भैया, भाभी और परिवार के साथ रक्षाबंधन बड़े अच्छे से मनाया था।

 पर उस घटना को याद कर आज भी रमा के दिल में घबराहट होने लगती है।

वो बैचेन हो कर बैठ गई।

पानी पीने के लिए गिलास उठाने लगी तो गिलास नीचे गिर गया। आवाज सुनकर पति जाग गये और बोले तुम अभी तक सोई नही। क्या बात है?

कुछ नही बस ऐसे ही नींद नहीं आ रही है। 

जरुर कुछ सोच रही होगी।

हाँ इस बार रक्षाबंधन पर राखी बांधने कैसे जाऊंगी, चिंतित रमा बोली। 

अरे अभी सो जाओ, रात के दो बज रहे हैं और रक्षाबंधन आने तो दो, सब ठीक हो जाएगा, सूरज ने रमा को आश्वासन देते हुए कहा। 

दो दिन बाद भैया का फोन आया वो बोले, कैसी हो रमा। 

ठीक हूँ भैया। 

जीजाजी बोल वहे थे, रक्षाबंधन त्यौहार को लेकर तुम बहुत परेशान हो। 

देखिये ना भैया इस साल हम कैसे मिलेगे।

इस बार हम राखी का त्यौहार अलग तरीके से मनायेगे। 

जैसे समय की मांग हो वैसा करना चाहिए।  

इस बार कोरोना महामारी फैली है।

ऑनलाइन राखी महोत्सव मनायेगे, वैसे भी हम लोग 60 हो गये है। हमें तो बहुत सावधानी की जरूरत है। 

रमा तुम भगवान के सामने राखी 

रखना, मै भी भगवान के सामने राखी रखूगा और फिर उठाकर खुद अपने हाथ में बांध लूगा और तुम मोबाइल पर ही विडियो कान्फ्रेंस से आरती आदि फंक्शन कर लेना।

मै भी अमेजन ऑनलाइन गिफ्ट भेज दूंगा। 

हाँ भैया ये ठीक रहेगा, इस बार ऐसे ही रक्षाबंधन मनाते है, लेकिन गिफ्ट तो जब हम मिलेगे तभी लूंगी रमा मुस्कराते हुए बोली।

अच्छा जब चाहो तब लेना राघव ने भी हंसकर जवाब दिया। 

दोनों भाई-बहन ठहाका मारकर हंसने लगे।

रमा खुश होकर गुनगुनाने लगी।

फूलों का तारो का सबका कहना है।

एक हजारों में मेरा भैया है।

फिर से रमा सोचने लगी कि 

अगर हमारे समान  सभी लोग नियमों का पालन करेगें तो इस महामारी को हराने में सफल हो जायेंगे और अगले साल बड़ी धूमधाम से रक्षाबंधन और हर त्यौहार का आनंद ले पायेगें।


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