Rashmi Moide

Abstract

4.6  

Rashmi Moide

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बेसहारों का सहारा

बेसहारों का सहारा

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10 साल के लम्बे इंतजार के बाद आज ये खुशी सुनंदा और विनोद को मिली है।  इस खुशी के लिए सुनंदा और विनोद ने हर संभव- असंभव प्रयास  किये, मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा सब दूर जाकर माथा टेका, प्रार्थना की, मन्नते मांगी, पीर, फकीर, पंडित, ज्योतिष सभी के हाथ जोड़े, डाक्टर, वैद्य, झाड़ फूंक सभी तरह के इलाज करवाये।

जिसने जो कहाँ वो किया। आखिर भगवान ने उनकी सुन ली। 

प्रार्थनाओं का फल आज उन्हें मिल ही गया।

अपनी नन्ही परी को गोद में लेकर सुनंदा और विनोद खुशी से झूम उठे।

आज उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। 

इतनी खूबसूरत बेटी को पाकर वो धन्य हो गये थे।

 ईश्वर ने उनकी झोली खुशियों से भर दी थी।

साधारण आमदनी होने के बाद भी दोनों ने अपनी बेटी को बड़े लाड़-प्यार से पाला, उसकी हर फरमाइश पूरी की। 

खुद आधा पेट खाना खाकर,अपनी लाडो शालू को उसकी मनपसंद मंहगी, मंहगी चीजें खरीद कर खिलाई।

एक से बढ़कर एक सुंदर ड्रेस, खिलौने सभी कुछ, अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च कर अपनी बेटी की हर इच्छा पूरी की।

घर आंगन में खेलती उछलती शालू, धीरे धीरे बड़ी होने लगी। 

स्कुल की पढाई पूरी कर कालेज में पहुॅच ग‌ई।

 कालेज में पहुंचने के कुछ समय बाद ही खूबसूरत फैशनेबल शालू को, अमित नाम के लड़के से प्यार हो गया।

अमित खूबसूरत स्मार्ट नौजवान था।

 रोज न‌ई, न‌ई गाड़ियों में आता और शालू को घुमाने ले जाता था।

अब शालू को अमित के बिना अच्छा नहीं लगता था।

शालू ने अमित को अपने मम्मी-पापा से मिलवाया और कहां मुझे अमित से प्यार हो गया है।

 हम दोनों शादी कर रहें हैं।

अपनी बेटी की हर बात मानने वाले शालू के मम्मी-पापा को अमित पसंद नहीं आया। 

उन्होंने अपनी ज़िद्दी बेटी को पहली बार डाटकर समझाया। 

कहां पहले अपनी पढ़ाई पूरी करो और कुछ बनकर आत्मनिर्भर बनो।

अभी तुम्हारी उम्र शादी की नहीं है। 

तुम अमित के बारे में क्या जानती हो ?  

अमित कौन है ? 

क्या करता है ? 

उसका परिवार कैसा है ? 

पहले हम अमित के बारे में सारी जानकारी निकाल लें। तब तक तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो। 

 शालू को ना सुनने की आदत नहीं थी।

 उसने दूसरे ही दिन मंदिर में जाकर अमित से शादी कर ली।

हफ्ते दस दिन बाद हनीमून से वापस आते समय शालू ने अमित के कंधे पर सर रख कर पूछा, जानू तुमने मुझे अभी तक अपने और अपने मम्मी-पापा के बारे में कुछ नहीं बताया।

कब बताओगे ?

अमित ने कहां बस थोड़ी देर में हम अपने घर पहुंच रहें हैं। 

अमित ने एक जोरदार झटकें साथ गाड़ी को ब्रेक लगाया।

 शालू ने कहा क्या कर रहे हो।

 ठीक से गाड़ी चलाओ ना।

अमित बोला नीचे उतरो तुम्हारा घर आ गया है।

शालू ने शर्माते हुए बड़े प्यार से बाहर देखा।

दूर दूर तक नजरें दौड़ाई। आश्चर्य से देखती हुई बोली ये क्या है ? 

 झोपढ़ पट्टी।

 हम यहां क्यू आये हैं ?

अमित ने कहा हम अपने घर आ गए हैं।

क्यो मजाक कर रहे हो।

 वैसे ही मुझे बहुत जोर से भूख लग रही है।

जल्दी से कुछ आर्डर कर दो। घर चलकर पहले कुछ खायेंगे।

बाद में जिससे मिलवाना हो मिलवाते रहना।

अमित बोला यह मजाक नहीं मेरा घर है।

अच्छा बाबा पहले तुम मुझे अपनी आया से मिलवाना चाहतें हो तो ठीक है।

मिल लेती हूं।

शालू नीचे उतरकर अपनी नाक पर रूमाल रखते हुए, अनमने मन से उबड़-खाबड़ कीचड़ भरी गलियों से होती हुई चलने लगी।

बोली तुम्हारे प्यार के कारण एक बार मिल लेती हूं।

बार बार नहीं मिलूंगी।

 लेकिन सच्चाई कब तक छुपाये छुप सकती है।

जल्दी ही उसे पता चल गया कि अमित एक ड्राइवर है और दूसरो की गाड़ीयां किराये पर चलाता है।

उसे अपनी बेवकूफी का परिणाम जल्द ही समझ में आ गया है।

बरतन धोते-धोते शालू ने अपनी आप बीती सुनाई।

सुनकर मैं स्तब्ध रह ग‌ई।

अगले दिन मैने उससे कहा।

तुम तो पढ़ी लिखी थी। तलाक देकर अच्छी नौकरी भी कर सकती थी। 

शालू बोली आजकल अच्छी नौकरी मिलना कितना कठिन है और मेरा तो ग्रेजुएशन भी पूरा नहीं हुआ था। 

मेरे पापा-मम्मी ने मुझसे रिश्ता तोड़ दिया है ।

मेरे मम्मी पापा ने कहा तुम हमारे लिए मर चुकी हो और 

हम समझ लेगे की हमारी कोई औलाद नहीं है। रिश्तेदारों ने भी रिश्ता तोड़ दिया है। 

जहां भी नौकरी के लिए जाती थी, लोग ललचाई नज़रों से मुझे देखते थे।

अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए मैं आप जैसे लोगों के यहां झाड़ू पोंछा लगाने का काम करती हूं।

मैंने उससे पूछा तुम्हारी शादी को कितने साल हुए हैं। 

उसने कहा  

एक साल।

मैंने फिर पूछा तुम अमित के साथ खुश हो ?

शालू बोली, नहीं मेम।

अमित की शराब की आदत के कारण उसकी ड्राइवर की नौकरी छूट गई है।

अब वो कोई काम नहीं करता है।

दिन भर घर में पड़ा रहता है और मेरी मेहनत की कमाई को शराब पी कर उडा देता है। 

मना करने पर गाली गलौज कर मारता है।

मैं उससे नफ़रत करती हूं। लेकिन मजबूरी में उसके साथ रह रही हूं।

मैंने फिर शालू से पूछा तुम्हारे सर्टिफिकेट और मार्कशीट तुम्हारे पास है क्या ?

वो बोली, जी मैम।

मैंने कहा, कल उन्हें अपने साथ लेकर आना।

शालू ने कहा, जी मैम।

रात को डिनर के वक्त मैंने अपने पति को शालू की पूरी कहानी बताई और उसके प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए कहा हम शालू के लिए कुछ कर सकते हैं, क्या ?

इन्होंने ने कुछ नहीं बोला। मैंने थोड़ी देर बाद फिर पूछा आपने कुछ बताया नहीं। 

ये बोले किस बारे में।  

वही शालू के लिए मै कुछ करना चाहती हूं। 

इनका जवाब था ;---

 देखो रागिनी ज्यादा भावुक बनने की जरूरत नहीं है।

हमें इन लोगों के चक्कर में नहीं पढ़ना है। 

और भी बहुत से काम है, उस पर ध्यान दो। 

इन छोटे-छोटे लोगों की बातों में नहीं आना है। 

ये लोग मनगढ़ंत कहानी बनाकर तुम जैसी महिलाओं को बेवकूफ बना कर सहानुभूति बटोरने का काम बहुत अच्छे से करते हैं। 

ऐसा बोलकर मेरे पति तो रात को जल्दी सो गये। लेकिन मुझे रात भर नींद नहीं आई। 

 मैं शालू के बारे में ही सोचती रही। 

ऐसा क्या करूं जिससे शालू का जीवन संवर सके।

दूसरे दिन शालू अपनी मार्कशीट लेकर आई।

 हर क्लास में उसके नंबर साधारण थे। 

10 वी -12 वी बोर्ड क्लास में भी पासिंग नंबर थे।

 मैने कहा तुम्हारे नंबर बहुत कम है। 

वो धीरे से बोली मैंने कभी पढ़ाई को सीरीयस लिया ही नहीं। 

 मै तो मौज-मस्ती में ही सारा टाइम निकाल देती थी। 

परिक्षा के टाइम थोड़ा पढ़ कर पास हो जाती थी। 

मैं बोली, अच्छा ये बताओ तुम्हें और कुछ आता है। सिलाई, कढ़ाई, पैटिंग।

 उसने ना में सिर हिला दिया। 

मैने फिर पूछा, खाना बनाना तो जानती ही होंगी। 

वो रूआंसी होकर बोली, शादी के पहले मैंने कभी एक कप चाय भी नहीं बनाई थीं।  

मुझे खाना बनाना नहीं आता है।

 मेरे पापा-मम्मी ने मुझे राजकुमारियों जैसा पाला था।

 लेकिन मेरी एक भूल ने आज मुझे नौकरानी बना दिया है।

झाड़ू पोंछा बर्तन करना तो दूर, मेरी मां ने कभी मुझे जूठे बर्तन भी उठाने नही दियें थे। 

 शालू का गला भर आया और वह सिसक सिसक कर रो पड़ी।

मैंने किसी तरह उसे चुप कराया और उससे कहा कि जो हो गया उसे तो अब, हम बदल नहीं सकते हैं। 

 लेकिन आगे भविष्य को हम अच्छा बनाने की कोशिश तो कर ही सकते हैं ना। 

कुछ भी हो हमें हमेशा अपनी सोच को सकारात्मक रखना चाहिए। 

 अब तुम्हे धैर्य से काम लेना होगा।

सब ठीक हो जाएगा।

उसके जाने के बाद मैं फिर सोचने लगी कि मैं ऐसा क्या करूं, जिससे शालू का जीवन संवर सके।

मैंने यह बात अपनी जान पहचान वालों से और सखियों से कहीं।

लेकिन किसी ने कुछ रूचि नहीं दिखाई।

 हां थोड़ी बहुत सहानुभूति जरूर दिखाई। 

 सब तरफ से निराश होने के बाद भी मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी।

 मैने ईश्वर से प्रार्थना की हे ईश्वर अब आप ही कुछ कीजिये।

 मुझे कुछ राह दिखाइये।

दूसरे दिन शालू सफाई कर रही थी, तो स्टोर रुम के एक कोने में सिलाई मशीन देखकर वो बोली, मेम आप कपड़े सिलते हो।

हां, मैने सिलाई में डिप्लोमा और फैशन डिजाइनिंग कोर्स किया है।

पहले बहुत से डिजाइनर ड्रेसेज बनायी है, लेकिन अब नहीं बनाती हूं।

शालू बोली मैं भी कभी कभी सिलाई मशीन चलाकर अपने कपड़ों की फीटिंग करती थी।

अच्छा तुम्हे सिलाई मशीन चलाना आता है।

मुझे आशा की एक नन्ही सी किरण दिखाई दी। 

मैंने उससे कहा क्या तुम पुराने कपड़ों और रेडिमेड कपड़ों पर सिलाई लगाने का काम करोगी ?

शालू बोली पर मुझे सिलाई नहीं आती है।

मैं तो ऐसे ही अपनी मां के निर्देशन में ड्रेसो पर सिलाई कर लेती थी। 

ठीक है मै तुम्हे कुछ कपड़े देती हूं, उस पर सिलाई लगाओ।

उसने कपड़ों पर बहुत अच्छे से सफाई के साथ सिलाई लगाई। 

मैंने उससे कहा मैं तुम्हें कपड़े सिलना सिखाऊंगी।

अब से तुम रोज दो घंटे कपड़े सिलोगी।

ठीक है मेम, मै करूंगी।कहकर शालू अपने घर चली गई।

दूसरे दिन से उसने सिलाई का काम शुरू कर दिया।

 मैंने अपनी सोसाइटी और जान-पहचान वालों से उसे पुराने और नये रेडिमेड कपड़े दिलवाये।

वो भी बड़ी मेहनत से सभी के कपड़ों पर सिलाई लगा कर उनके घर जाकर दे आती थी।

धीरे-धीरे मैंने उसे लेडीस कपड़े बनाना सिखाये।

 मैं उसे काटकर देती और वो सिल देती थी। 

धीरे - धीरे कपड़े सिलवाने वालों की लाइन लग गई।

मैंने बैंक में उसका खाता भी खुलवा दिया। 

 एक एक करके उसने झाड़ू, पोंछा, बर्तन धोने का काम छोड दिया।

अब वो सलवार सूट, ब्लाऊज और सुंदर सुंदर फ्राक बनाने लगी।

मैने अपना एक बुटीक खोल लिया और शालू को पार्टनरशिप में काम करने के लिए रख लिया। 

हमें डिजाइनर कपड़ों के बहुत से आर्डर मिलने लगे।

मैंने एक दिन शालू से कहां। अब तुम, इस काम से थोड़ा समय निकालकर अपनी अधुरी पढ़ाई पूरी कर लो।

उसे भी यह बात अच्छी लगी,

 उसने पूरी मेहनत और लगन से अपना ग्रेजुएशन पूरा किया।

 साथ ही साथ उसने फैशन डिजाइनर कोर्स भी कर लिया।

 शालू अब नये नये डिजाइनर कपड़े बनाना भी सिख ग‌ई थी। 

उसकी अच्छी आमदनी होने लगी। 

उसके अंदर एक नया आत्मविश्वास जाग गया था।

अब अमित की मार और गाली का उसे मूंह तोड़ जवाब देना आ गया है। 

पहले वो चुपचाप अमित के अत्याचार सहती थी लेकिन अब वो अमित के उठे हाथ को पकड़ कर मरोड़ना सीख गई है।

मैंने एक दिन शालू से पूछा अब तो तुम आत्मनिर्भर हो गई हो, अब तुम अमित को तलाक दे कर किसी अच्छे लड़के के साथ दूसरी शादी कर सकती हो।

 शालू बोली नहीं मेम मैं अब दोबारा शादी नहीं करुंगी।

 मुझे अब किसी भी पुरुष पर विश्वास नहीं है।

अगर मेरी किस्मत में पति सुख होता तो, अमित ही अच्छा लड़का होता, यूं छल कपट नहीं करता। 

रही तलाक की बात तो मैं कभी अमित को तलाक नहीं दूंगी।

 क्योकि अगर अमित को तलाक दे दिया तो, वह फिर किसी लड़की को धोका देकर शादी कर उसकी जिंदगी खराब कर देगा।

अब न तो मै अमित के साथ रहुंगी और न उसे तलाक दे कर आजाद करुंगी।

फिर आगे भविष्य में क्या करने का इरादा है, मैंने पूछा। 

शालू बड़े आत्मविश्वास से बोली, मैं इसी काम को विस्तार से बढ़ाकर अपनी एक नई पहचान बनाउंगी और मेरी जैसी जरुरत मंद लड़कियों की मदद करुंगी। जैसे आपने मुझमे़ आत्मविश्वास जगाया है, वैसा ही में भी किस्मत की मारी लड़कियों को सहारा देकर उनका आत्मविश्वास जागृत करुंगी।

बहुत खूब मुझे तुमसे यही उम्मीद थी, मैंने उसकी पीठ थपथपाई।

मैं शालू के मम्मी पापा से जाकर भी मिली और उन्हें बहुत समझाया कि शालू से गलती हो गई है, उसे माफ कर दीजिए। 

शालू अपनी गलती के लिए बहुत शर्मिन्दा है, साथ ही साथ पश्चाताप भी कर रही है। 

मैंने उनसे कहां कि अगर आपकी कोई बहुमूल्य वस्तु कीचड़ में गिर जाये तो आप क्या करोगे ?

उन्होंने तुरंत कहा उसको हम कीचड़ से निकालकर धोकर साफ करके फिर से रखेंगे।

मैंने कहा, बिल्कुल सही कहा आपने। 

शालू भी तो आपकी बहुमूल्य बेटी है।

 वो भी तो दल-दल में गिरकर फंस गई है।

उसे नहीं निकालोगे, क्या ?

सुनंदा और विनोद को मेरी बात समझ में आ गई।

उन्होंने अपनी लाडली बेटी शालू को फिर से अपना लिया।

आज शालू का कारोबार बहुत फैल चुका है।  

अपने मम्मी पापा के साथ रहकर शालू, बहुत सी बेसहारा महिलाओं की मदद कर रही है। 

शालू ने एक संस्था खोली है और उसने अपनी संस्था का नाम रखा।


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