नारी के अस्तित्व की लड़ाई....
नारी के अस्तित्व की लड़ाई....
कहने को आज हम आजादी के 74वी वर्षगांठ बना रहे हैं पर आज भी हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति में बहुत ज्यादा सुधारा नहीं है। कहने को हम भारत देश जैसे महान देश में रहते हैं पर आज भी समाज में कुछ लोग हैं जो भारत के संविधान और कानून को नही मनाते... मनाते हैं सिर्फ अपने द्वारा बनाए गए नियम कानून जो पुरी तरह से गैरकानूनी होते हैं। ख़ास कर जब लोग इसका विरोध करते हैं तो उन्हें ही दोषी करार दिया जाता है।ये सिर्फ एक ओछी मानसिकता का परिचय देता है।इसका जीता-जागता उदाहरण मैं खुद हुं।"सुलेखा ये बात अपनी बेटी दिया को कहती है....जो एक न्यूजचैनल में नारी जागरूकता अभियान कार्यक्रम पर काम करती है...
."आप कैसे ??मैं कुछ समझी?आप कहना क्या चाहती है मां?"दिया ने एकसाथ बहुत सारे सवाल अपनी मां से कर डाली....
"सुलेखा" बेटा मैं तेरे सब सवालों के जवाब दूंगी... बात उन दिनों की जब मैं दसवीं कक्षा में थी।मैं पढ़ाई में बहुत होशियार थी और मेरी मां-बाप चाहते थे कि मैं आगे पढू वो मुझे बड़ा अफसर बनते देखना चाहते थे।पर मेरे ताऊ जी को ये बात अच्छी नही लगी। क्योंकि उनकी नजर में दसवीं तक पढ़ाई बस बहुत है ।वहीं रुढ़िवादी सोच रखने वाले। लड़कियों को ज्यादा छूट देने से वो हाथ से निकल जाती है। उन्हें ज्यादा छूट नहीं मिलनी चाहिए।पर मेरे पिता ऐसे नहीं थे वो लड़की और लड़के में कोई फर्क नहीं करते थे। मेरे पिता ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे पर वो चाहते थे कि मैं पढूं। और ताऊजी हमारे घर के मुखिया।उनके फैसले के खिलाफ जाने की हिम्मत किसी में भी नही.. मेरे पिताजी में भी नही।हमारे ताऊजी घर के मुखिया के साथ साथ गांव के मुखिया थे। इसलिए रूतबा भी बहुत था और ऊपर से खानदानी जमींदार पैसे की कोई कमी।पर हमारे गांव की एक प्रथा लड़कियों को दसवीं से ज्यादा शिक्षा नही, लड़कियों का विवाह उसी से होगा जो सबसे ज्यादा पैसा देगा। यहां पैसा दिया नही लिया जाता है। एक तरह से ये समझ लो वो लोग अपने घर की बेटीयों का शादी के नाम पर सौदा कर रहे थे। मेरे माता-पिता को ये प्रथा कताई भी पसंद नही थी पर ताऊजी के समाने कहने की हिम्मत नहीं।पर जब बात बच्चो पर आ जाती है तो माता-पिता के अंदर हिम्मत अपने आप आ जाती है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ। ताऊजी ने मेरी शादी तय कर दी वो भी ऐसे इंसान के साथ जो मुझसे दोगुनी उम्र का और पहले से शादीशुदा। मेरे पिताजी ने इसका विरोध किया। पहली बार ताऊजी के समाने मेरे पिताजी ने मेरे हक के लिए मेरी जिंदगी के लिए ताऊजी की कही बात को मनाने से इन्कार कर दिया। उसके बाद मेरे ताऊजी का गुस्सा सतावे आसमां पर।पर मेरे पिताजी ने तब भी हिम्मत नही हारी... मेरे माता-पिता ने मुझे उस नरक से बाहर निकलने का फैसला किया और सब से छुपाकर मुझे घर से भाग दिया"इतना कहते ही सुलेखा का गला भर आया.... अपनी मां को इस कदर देख, दिया भी बहुत दुःखी हो जाती है... "उसके बाद मेरी और आपकी मां की पहली मुलाकात होती है...."सुलेखा के पति आनंद जी कहते... "हां बेटा तेरे दादाजी तेरे नानाजी के दोस्त थे । आपके दादाजी शहर में बहुत बड़े अफसर पर थे।जब आप की मां हमारे घर आई और अपने गांव की उस ओछी प्रथा के बारे में बताई जो कि एक गैरकानूनी काम जिसे प्रथा के अड़ा में किया जा रहा था।तब आप के दादाजी वहां अपनी फोर्स लेकर गए। मुश्किल तो बहुत हुई पर कानून और सच्चाई के आगे किसी की नहीं चली..पर तब तक बहुत देर हो गई थी... आपके नानाजी को उनके ही भाई के द्वारा हत्या करवा दिया जाता है और ये बात आपकी नानी सह ना सकी और उनकी भी मौत हो जाती है। और आगे चलकर आपकी मां भी अफसर बन जाती है और अपने ही गांव में जा कर वहां की कानून व्यवस्था को संभालती है। "आनंद ने सब बातें अपनी बेटी दिया को कही जिसे सुनकर दिया बहुत रोती है।
तब सुलेखा जी कहती हैं "बेटे रोते नही,माना कि इस संघर्ष ने मेरे मात पिता की जान गई...पर अब उस गांव में क्या उसके आसपास के गांवों में भी ऐसी अब कोई प्रथा नही।जो हमारे देश के कानून के खिलाफ हो।अब वहां की बेटीयां आजादी से अपनी जिंदगी जी रही है।इस आजाद देश में।ये आजादी नारी के अस्तित्व की है....। अपनी मां की बात सुनकर दिया के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।तब दिया कहती हैं "मुझे गर्व है कि मैं आपकी बेटी हूं और दोनों मेरे माता-पिता है"।