नाले बा' का शोध: एक प्रतिशोध
नाले बा' का शोध: एक प्रतिशोध
विया अमेरिका में ही पली-बढ़ी थी। उसके पापा अय्यप्पा को सॉफ्टवेयर में परास्नातक की पढ़ाई करने अमेरिका आना पड़ा। उनको अपना देश बहुत अच्छा लगता था, लेकिन उनकी माँ भारत में उनके लिए "नो एंट्री " का बोर्ड लगाकर रखी थीं। हमेशा बोलती थीं कि अमेरिका में पढ़े-लिखे लोगों की कद्र होती है। अय्यप्पा की मेधाशक्ति को न्याय अमेरिका जैसे देश में ही मिल सकता था। विया की दादी अपने बेटे को भारत से दूर ही रखना चाहती थीं, लेकिन दादी को अपनी मिट्टी, अपना देश बड़ा अच्छा लगता था। एक बार जो अमेरिका में आ गया, वहीं का होकर रह जाता है।
पढाई, नौकरी और फिर शादी, ग्रीन कार्ड और फिर नागरिकता के चक्कर में अय्यप्पा ऐसे फंसे कि उम्र कैसे बीत गयी,पता ही नहीं चला। कभी-कभी वो विया से बोलते थे कि अभी जितने मज़े लेने हों ले लो, नहीं तो एक बार जिंदगी के चक्कर में फँसोगी तो इस चक्कर का अंत साँस के साथ ही होगा। अय्यप्पा अमेरिका में रहते हुए भी अपने को भारत की यादों से जोड़े रखे थे। अपनी माँ का जब हाँथ-पैर काम करना बन्द कर दिया तो माँ को अमेरिका ले जाने में ज़रा भी देरी नहीं किये। लगभग पूरा जीवन एक जगह बिताने पर अंतिम समय में दादी को अमेरिका की हवा तनिक भी रास नहीं आती थी। हर दम अपने गाँव की यादों में डूबी रहती थीं। जैसे उनको कोई चिन्ता सताये जा रही हो। रोज़ शाम को जैसे कुछ करना चाहती हों। उनका हाँथ जैसे फड़क उठता हो, कुछ करने के लिए। विया अपनी दादी से कहानियाँ सुने बिना कभी नहीं सोती थी। दादी-पोती का रिश्ता हमेशा रात की कहानियों के लिए जाना जाता है। दादी का भी मन थोड़ा-थोड़ा लगने लगा था। उनका आधा समय यह सोचने में चला जाता था कि आज रात को विया को कौन सी वाली कहानी सुनाऊँगी।
इत्तेफ़ाक़ से दादी ख़ुद भी कभी-कभी कहानियाँ लिखती थीं। थ्रिलर, सामाजिक, स्त्री-प्रधान इत्यादि भिन्न-भिन्न प्रकार की कहानियॉं दादी के पिटारे में रहती थीं। लेकिन विया जब भी कभी कुछ अलग सुनाने की ज़िद करती थी तो दादी सोने का बहाना करने लगती थीं।
विया हमेशा से कुछ अलग करना चाहती थी, आम की भीड़ में खड़े होना उसको पसंद नहीं था। जब बड़ी हुई तो उसको कॉलेज जाना पड़ा। उसका दाखिला प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विधा में हुआ। अब वो हॉस्टल में रहती थी। बीच-बीच में घर आती रहती थी। दादी से कहानियाँ सुनना अभी भी उसको अच्छा लगता था , बस उसका झुकाव थोड़े अलग क़िस्म की कहानियों की तरफ होने लगा था। दादी को लगने लगा था कि विया अब मानने वाली नहीं है। अब उनको थोड़ा उन कहानियों पर भी सोचना पड़ेगा। अरे सोचना क्या? दादी ने तो बहुत सारी झेली भी थीं।
विया की दिमाग और उसकी शक्तियों के बारे में बड़ी जिज्ञासा हुई। एक दिन के पैरानॉर्मल विषय पर सुने व्याख्यान ने तो उसके जीवन की दिशा ही बदल दी। उसको लगने लगा कि उसका जन्म इसी सच्चाई को जानने के लिए हुआ है। अब वो इस विषय पर शोध करके सच्चाई का पता करना चाहती थी। वो जानना चाहती थी कि क्या सच में कोई ऐसी योनि है, जिसके बारे में महसूस तो किया जा सकता है, लेकिन देखा नहीं जा सकता। क्या इन शक्तियों का कोई मकसद है ? क्या इनका कोई बसेरा है ? ... अय्यप्पा कभी भी विया के चुनावों पर अपने आपको थोपना नहीं चाहते थे, लेकिन विया का इस विषय में एकदम डूब जाना उनको ख़तरे की घण्टी नज़र आता था। एक-दो बार उन्होंने विया को दूसरे विषय में शोध करने का सुझाव भी दिया था, लेकिन विया ने 'स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी' और 'फ्रीडम ऑफ़ थॉट ' जैसे भारी-भरकम शब्दों से अय्यप्पा का देसी मुँह बंद कर देती थी।
अंततः विया ने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के सेण्टर ऑफ़ पैरानॉर्मल स्टडीज़ में प्रोफेसर रिचर्ड वॉल्टर के साथ शोध की अनुमति ले ली। विया के तार्किक क्षमता और उसकी आदमी की परख से प्रोफेसर साहब बड़े प्रभावित रहते थे। वो एकदम से दिमाग़ पढ़ने वाली मशीन जैसी थी। एक दिन विया ने उनसे पूछा-
" सर भूत क्या होता है ?"
इतना सीधा-सीधा सवाल प्रोफेसर साहब से पहले कभी किसी ने नहीं किया था। थोड़ी देर सोचने के बाद प्रोफेसर साहब -"
"भूत एक 'काल' है , जो बीत गया है। एक समय है। ज़्यादातर लोगों का अच्छा होता है, लेकिन कुछ-एक का बुरा रहता है। हमारा शोध इन्ही बुरे 'काल' वाले लोगों पर है। आम भाषा में हम इन्हे 'भूत' कहते हैं।
विया -"क्या ये हमें दिखाई देते हैं। "
रिचर्ड -"सामान्यत: नहीं, लेकिन अपने होने का एहसास ज़रूर दिलाते हैं। इनके होने का प्रमाण ढूंढना ही हमारे शोध का विषय है।"
विया -" आख़िर ये होते क्यों हैं ?"
रिचर्ड -"अपनी किसी अधूरेपन को पूरा करने के लिए ! "
विया की जिज्ञासा का अगला तीर निकलता, तभी, मुस्कुराते हुए-
"विया कुछ शोध करके तुम भी मुझे बताओगी? ... मेरी जानकारी सीमिति है, तुम्हारी अथाह होने वाली है ..."
अगली बार विया जब घर पहुँची तब दादी पहले से ही अप्रत्यक्ष दबाव में थीं, 'उस' तरह वाली रोमांचक कहानी सुनाने के लिए। उनका शक सही था। विया ने रात में ज़िद कर ही दी। न चाहते हुए भी दादी के मुँह से धारा प्रवाह कहानी निकली -
"बहुत साल पहले की बात है। एक गाँव में लोग बड़े ठाट-बाट से रहते थे। जमींदारी करके लोग बड़ी सम्पन्नता के साथ जीवनयापन करते थे। कुछ घर ऐसे भी थे, जो खेतों में काम करके अपना गुज़र-बसर करते थे। वे लोग जमींदार लोगों की जरूरतों का ध्यान देते थे।
एकाएक उस गाँव को किसी की नज़र लग गयी। रात में एक औरत मोहिनी का रूप धरकर दरवाजा खटखटाती थी और खोलने पर वहाँ से घर के आदमी को अपने वश में करके साथ ले जाती थी। वो आदमी फिर कभी वापस नहीं आता था।। गाँव वाले डरके मारे अपना दरवाजा कभी नहीं खोलते थे। उससे बचने के लिए अपने घर की दीवालों पर चारों ओर "कल आना " लिख कर रखते थे। क्योकि कल कभी आता ही नहीं , इसलिए किसी के दरवाजे दस्तक नहीं हुई। जिन लोगों ने नहीं लिखा, उनके घर के आदमी ग़ायब होते चले गये। बहुत सारे घर उजड़ गये। औरतों को पता नहीं चल पता था कि वो विधवा बनकर रहें या सिन्दूर लगाते रहें।सिन्दूर लगाते समय हमेशा उनको सन्देह होता था, भगवान इसे सच रखना। "
दादी की इस कहानी को सुनाने की शैली एकदम अलग थी। जैसे उनका गला भर आया हो , वो रो पड़ी हों .... वो कहानी कम और अपनी आपबीती ज़्यादा बता रही हों। फिर दादी बिना कुछ बोले ही सो गयीं। विया को लगा कि कहानी में कोई इतनी सच्चाई कैसे भर सकता था ?
सुबह नाश्ते की मेज पर विया मन ही मन कुछ सोच रह थी। उसका ध्यान सैंडविच पर कम था,वो कहीं खोई हुयी थी। तभी अय्यप्पा :
"इसीलिए मैंने मना किया था कि ये सब में शोध मत करो.....कहाँ खोई हो ?"
विया-"पापा कल दादी ने एक बड़ी रोचक हॉरर स्टोरी सुनाई। बड़ा मज़ा आया। उसी के बारे में सोच रही थी, कोई ऐसा क्यों करना चाहेगा ... ? "
विया ने पापा को वो कहानी सुना दी , अय्यप्पा सन्न रह गये -" माँ ने ये क्या कर डाला ?"
विया कॉलेज वापस जाकर ये कहानी प्रोफेसर रिचर्ड को सुनाती है। ऐसी सब कहानियों की जानकारी रिचर्ड रखते थे। इस तरह की कहानियों की ज़रूर कोई जड़ होती है, ऐसा सोचते हुए वो गूगल की मदद लेते हैं। गूगल ने विया के गाँव की ही एक कहानी बता दिया। विया अपने प्रोजेक्ट के और क़रीब महसूस कर रही थी। प्रो. रिचर्ड ने बोला कि रिया इस सच्चाई को आसानी से पता कर सकती है। इत्तफ़ाक से क्रिसमस की छुट्टियाँ भी दो महीने दूर थीं। विया ने इस विषय पर बहुत अध्ययन किया और एक प्लान बनाया।
विया ने बहुत पापड़ बेलने के बाद क्रिसमस में अपने गाँव जाने के प्लान पर मुहर लगवा ही ली। बेटियों की बात पापा कहाँ काट पाएँ ? पापा ख़ुद नहीं जा सकते थे, दादी का सख़्त आदेश जो था। वज़ह, दादी और पापा को ही पता था। लेकिन नहीं , अब विया को भी कुछ-कुछ प
ता हो गया था। विया किस मिशन पर बैंगलोर जा रही है, इस बात की भनक दादी और पापा को रंच मात्र भी नहीं थी। अय्यप्पा की माँ ने अय्यप्पा की शादी और उसकी बेटी इत्यादि सारी जानकारियाँ गाँव वालों से छिपाकर रखी थीं। गाँव वालों के लिए विया एकदम अजनबी थी। ये बात विया को पता थी। उसका प्लान इसके मुताबिक़ ही था।
बैंगलोर एयरपोर्ट पर पहुँचते-पहुँचते रात हो चली थी। टैक्सी से गाँव जाने में २ घण्टे लग गए। दादी डरी हुई दिख रही थीं। थकान से एकदम चकनाचूर, वो बस बिस्तर का इंतजार कर रही थीं।
विया के लिए एक नई दुनिया थी। उसको लगा की वो अमेरिका के २० साल पीछे वाली जगह पर आ गई है। अपने प्लान के बारे में सोचते-सोचते विया का गाँव आ गया। टैक्सी वाले ने उस गाँव में अंदर जाने से मना कर दिया। विया और उसकी दादी को काफ़ी पैदल चलना पड़ा। दादी को थकान पे थकान होती जा रही थी। सब घरों के दरवाजे बंद थे। रात के ८ बजे ही इतना सन्नाटा ? हर घर के बाहर दीवारों पर कुछ कन्नड़ में लिखा था। विया कन्नड़ा थोड़ी बहुत पढ़ सकती थी। जैसे-तैसे दोनों लोग अपने घर पहुँचे। घर के चारों ओर विया और दादी ने घूमकर देखा।
उसके घर वाली लिखावट धुँधली हो चुकी थी ,एकदम न के बराबर ! दादी ने सोचा कि कल फिर से लिख दूँगी, वैसे कोई पुरूष तो है नहीं घर में। एक ही चीज़ दो लोगों के लिए अलग मायने की थी। विया ने सोचा कि आज से ही काम शुरू करती हूँ। जेट लैग के चक्कर में नींद भी नहीं आ रही थी। दादी बिना कुछ खाये-पीये ही सो गईं। दादी के सोने के बाद विया ने पर्स से नकली मूछ निकाली और लगा ली। भारत आने से पहले उसने अपने बाल छोटे करा दिए थे। हेयर स्टाइल लड़कों जैसा ही था, कोई भी विया को टी-शर्ट और जीन्स में औरत नहीं, आदमी ही समझता , धोखा खा जाता। अपने बिस्तर पर किताब पढ़ रही थी और उसको इंतजार था ....
तभी दरवाजे पर ठक-ठक की आवाज़ आयी। कोई औरत मधुर आवाज़ में पुकार रही थी। विया ने सब कुछ अपने प्लान के मुताबिक़ जाते देखकर दरवाजा खोला। सोम-सुधा जैसी नशीली आँखे , कटे-फटे होंठ, बरछी जैसे नुकीले दाँत, लम्बे-लम्बे बाल, बालों में हर तरफ फूल ही फूल, एक माला में पिरोये हुए, ....चमेली की ख़ुशबू , चमकदार हरी साड़ी, भर-भरकर हाँथों में चूड़ियाँ और लम्बे-लम्बे कटारी जैसे नाख़ून ..... ऐसी औरत विया के सामने ! विया की सिट्टी-पिट्टी गुम!! उसका पहला प्रजेक्ट इतना ख़तरनाक होगा, उसने कभी सोचा भी न था।
डर को जीतते हुए औरत का हाँथ पकड़कर उसके साथ चल दी। बीच-बीच में औरत उसको अज़ीब से देखती थी। विया को लगा कि वो हवा में तैर रही है।
पहाड़ से पूर्णिमा का चाँद पूरा दिख रहा था, जैसे अभी गोधूलि बेला हो। वीरान पहाड़ी, आस-पास झाड़ियाँ ही झाड़ियाँ , कुछ कंकाल के जैसे तने हुए पेड़, पेड़ पर डेरा डाले हर तरफ चील ही चील। और ....चाँद के उजाले में चमकते आदमियोँ के कंकाल ! वो औरत विया को एक पत्थर की शिला पर ले जाती है। गोंद में बैठाती है। विया मौत के कगार पर अपने आप को देखकर मुँह खोलने वाली ही थी , तभी ऊपर वाले पेड़ से एक जटाधारी, खूँखार, दाढ़ी वाला दैत्यनुमा आदमी धड़ाम से कूद बैठा। सर से पाँव तक राख से लिपटा, पीले-पीले दाँत , मानव था या दानव ? उसकी वेशभूषा आदमी के पूर्वज बन्दर के समान थी। कुछ नहीं पहना था ! बड़े ही ताप वाले स्वरों में उसने गर्जना की :
"अरे चाण्डाल, तू ये किसको आज ले आयी है ? ये तो महिला है, तू इतनी बूढ़ी हो गई है कि आदमी-औरत का फ़र्क भूल गई। जा ! तुझे मुक्त करता हूँ। "
औरत ग़ायब हो गयी।
दैत्यनुमा आदमी -"क्या चाहती है तू ?, मेरी औरतों से कोई शत्रुता नहीं है ! तुझे मारने का मेरा कोई औचित्य नहीं है। "
लड़की अपनी धड़कने सम्हालते हुए , काँपते हुए शब्दों से -" आप कौन हैं ? क्यों लोगों के घरों के दिये बुझा रहे हैं ?, मेरे दादा के साथ क्या किये ?"
विया उस दिन नाश्ते के बाद अपने दादी और पापा की बात दरवाजे के पीछे खड़ी होकर चुपके से सुन लेती है।
दैत्यनुमा आदमी-"यहाँ सबका एक ही हाल होता है , कंकाल !!!!! पहचान सकती है, तो ढूंढ अपने दादा को ... "
विया-"क्यों कर रहे हैं ये सब ? क्या वज़ह है ? "
दैत्यनुमा आदमी-"बदला !"
विया -"कैसा बदला ?"
उस वनमानुष जैसे आदमी से पहले यह सवाल किसी ने नहीं किया था। उसकी आवाज़ थोड़ी नरम होते हुए :
"मैं १२ साल का था, मेरे पिता जमींदारों के यहाँ मजदूरी करते थे। उस गाँव में एक मंदिर था, उसमें बस हमारे जैसे लोगों को छोड़कर बाकी सारे लोग जाते थे। मुझे नहीं पता था कि हमारा जाना मना है। एक दिन उत्सुकतावश मैं मंदिर में चला गया। मुझे एक जमींदार ने मंदिर से बाहर आते समय देख लिया। वो मेरे पीछे-पीछे सीधे मेरे घर आया। बहुत गुस्से में था। पिता जी को बाहर बुलाकर उसने बोला कि मंदिर को मैंने अपवित्र कर दिया है। मुझे मेरे पिता ने रीती-रिवाज़ ठीक से नहीं बताये हैं। इसकी सज़ा मेरे पिता को मिलेगी। उसी दिन पंचायत में पूरे गाँव के आदमियों ने मिलकर मेरे पिता को हसिया से काट डाला। मेरे सामने मेरे पिता को बिना उनकी गलती के ही मार डाला। मेरी गलती मेरी माँ को भी लील गई। उस दिन मैंने उस गाँव के आदमियों को मिटाने का प्रण लिया। सम्पूर्णानन्द से यंत्र-मंत्र-तंत्र विज्ञान की शिक्षा ली और अपने आपको सिद्ध किया। तब से ये चाण्डाल वहाँ से आदमियों को लेकर आती है। सब ठरकी हैं , इसकी नकली, नशीली आँखों में डूबकर कटने आ जाते हैं। उनको कटते देख मुझे बड़ा सुकून मिलता है। "
विया को लगा कि अब सही समय है, अपनी वाद-विवाद वाली कला को इस्तेमाल करने का-
"किसी को मारने से सुकून कैसे मिल सकता है? वो तो बस सुकून पाने का दिखावा कर सकता है। ....और बदला ....जो हुआ अच्छा नहीं हुआ , मुझे बहुत खेद है, लेकिन बदले से आपका क्या भला होगा ?, बदले का कालचक्र अनंत होता है। आज आप ले रहे हैं, कल कोई आपसे बदला लेने के लिए सिद्दी पायेगा। आप अभी उसी काल में हैं, आजकल सब लोग मंदिर जाते हैं , सारे लोग समय के साथ बदल गये हैं। आप उसी जगह पर ठहरे हैं। अब किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता है। मेरा विश्वाश मत करिये , ये देखिये ... "
विया अपने iphone से गूगल करके सारे सामाजिक सुधार से सम्बंधित कानूनों को पढ़वा देती है।
दैत्यनुमा आदमी थोड़ा पसीज रहा था। इन बदलाओं से वो अनभिज्ञ था। उसको लगा कि लोग अब किसी को भी उसके पिता के जैसे प्रताणित और नृशंश हत्या नहीं करते होंगे। उसके जीवन का लक्ष्य समाप्त हो चुका था। वो लड़की को इस बात का बोध कराने के लिए धन्यवाद ज्ञापन करता है और समाधि ले लेता है।
यह सब बातें वो अपने iphone में रिकॉर्ड की रहती है और अगले दिन अपने प्रोफेसर को भेजती है। प्रोफेसर उसको शाबाशी देते हैं और चेन्नई में अमेरिकी दूतावास के माध्यम से मीडिया को ख़बर करवाते हैं। विया की बहादुरी के गुणगान होने लगे थे। लोग हर बच्चे को विया जैसे बहादुर बनने की प्रेरणा देते थे। दादी अब गाँव छोड़कर नहीं जाना चाहती थीं, उन्होंने सिन्दूर लगाना छोड़ दिया। उनके हिसाब से अय्यप्पा को गाँव में रहने में कोई दिक्कत नहीं आयेगी। उनका सपना था कि जहाँ की मिट्टी है, वहीं की मिट्टी में मिल जाँय। विया अपनी मर्ज़ी की मालिक थी, पढाई पूरी करके उसे कहाँ रहना था , वो ख़ुद फैसला लेती। २५ साल बाद अय्यप्पा आपने गाँव वापस जाते हैं और वहीं बस जाते हैं। उनका नाम अमेरिका में अपवाद के रूप में लिया जाता है -
"वो देखो एक बेवकूफ़ आदमी, जो अमेरिकन नागरिकता छोड़कर भारतीय बन गया। "
'नाले बा ' लोगों का स्टेटस बन चुका था और लिखा जाता रहा।
रोचक इत्तेफ़ाक़ : कोरियन भाषा में 'नाले बा ' को 내일 봐 (नेल बा ) कहते हैं।