Naveen Singh

Horror Romance Thriller

3.8  

Naveen Singh

Horror Romance Thriller

अधूरा प्रेम

अधूरा प्रेम

8 mins
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प्रेम गाँव में इंटरमीडिएट की पढाई पूरी करने के बाद बनारस विश्वविद्यालय में प्रवेश लेना चाहता था। प्रेम का दिमाग़ जितना तेज़ था, उससे भी अधिक प्रभावशाली और आकर्षक उसका व्यक्तित्व था। बहुत सारी लड़कियाँ उसपर अपनी जान छिड़कने के लिए तैयार बैठी रहती थीं, लेकिन उसका पूरा ध्यान पढ़ाई पर ही था। उसको परिवार वालों के मन से ही विवाह करना था, तो वो कभी भी इन सब चक्करों में पड़ा ही नहीं। उसका मानना था कि जिस गली में जाना नहीं, उसका रास्ता क्यों पूछना ? प्रवेश परीक्षा में पास होकर प्रेम को अपने मनचाहे विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल चुका था। गाँव दूर था,तो उसको छात्रावास में रहना पड़ा। उसको छात्रावास में आये अभी कुछ दिन ही हुए थे। एक कमरे में दो लोग रहते थे। समर उसका दूसरा रूम पार्टनर था। समर की शारीरिक संरचना भी प्रेम से तनिक कम नहीं थी। समर बजरंग बली का भक्त था। नित्य सुबह नहा-धोकर पूजा-पाठ से दिन की शुरुआत करता था। अगरबत्तियों की सुगंध ऐसी थी कि आस-पास के रूम के लोग भी उसी सुगन्ध को अलार्म के रूप में मानते थे। सुगंध आ गई, मतलब समर ने पूजा कर ली है और अब ८ बज गए हैं। प्रेम का आचरण नास्तिक वाला था। वो भी अगरबत्ती की सुगंध के साथ उठता था, लेकिन गुस्से से। अक़्सर प्रेम और समर की बहस अगरबत्ती को लेकर हुआ करती थी। 

 नये सत्र को शुरू हुए ४-५ महीने बीत चुके थे। छात्रावास के लोग एक दूसरे के क़रीब आ चुके थे। किसकी किससे बनेगी ? इस बात का बोध ज़्यादातर लोगों को हो चुका था। कुछ लोग तो अपने क़रीबी दोस्तों के कमरे में ही दिन-रात पड़े रहते थे। अगर किसी को ढूढ़ना है तो उनके क़रीबी के रूम में पहले जाते थे। अभी तक प्रेम का कोई ऐसा क़रीबी नहीं बन पाया था। अगर उसका जागरण होता था तो उसका कारण केवल मित्र के कमरे में पढ़ाई का होता था। वो मौज-मस्ती में कम शामिल होता था। एक रात प्रेम किसी और कमरे में पढ़ रहा था। इस वज़ह से समर को अकेले अपने कमरे में सोना पड़ा। रात ढल रही थी। समर गहरी नींद के आग़ोश में था। लेकिन उसका हाँथ-पाँव हिल रहा था। वो हाँथों को ऐसे बाँधता, जैसे किसी को गले लगा रहा हो। किसी पल वो पेट के बगल लेटा होता, तो अगले ही पल किसी करवट। उसके कानों में एक विभत्स आवाज़ आ रही थी। कोई डरावने स्वरों में बोलने का प्रयास कर रहा था, "चले जाओ... बीच में मत आओ,..वो मेरा प्रेम है ...। " जब ये सब अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया, तब समर को सपने में भी बजरंग बली की याद आयी और वह उठकर बैठ गया। जैसे उसने कोई बुरा सपना देखा हो। माथे से टप-टप पसीना टपक रहा था। धड़कनें तेज़ थीं। उसको ऐसा लगा, जैसे उसके बिस्तर पर कोई लेटा पड़ा हो । उसने प्रेम को बगल में लेटा समझकर बड़बड़ाते हुए बिस्तर के बग़ल में मेज पर रखे टेबल लैंप को ऑन किया। प्रेम वहाँ नहीं था! वहाँ पर कोई नहीं था!! फ़िर उसने इसको बुरा सपना मानकर थोड़ी देर हनुमान चालीसा पढ़ा। "भूत पिशाच निकट नहीं आवैं, महावीर जब नाम सुनावैं। " फिर टेबल लैंप जलते ही छोड़कर लेट गया। उसकी आँखे खुली ही थीं कि उसने ये क्या देख लिया? ठीक उसके ऊपर सीलिंग पर उसके सपने में आयी लड़की चिपकी पड़ी थी। लेकिन सपने जैसी सुन्दर नहीं थी। वो लम्बे, लटियाए हुए बाल समर के बिस्तर तक बिखरे थे । चेहरा साफ़ दिख रहा था। काले-काले दाँत। ख़ून जैसी लाल आँखें । आँखों में अंगारे। यह सब देखकर समर का गला कुण्ठित हो गया। वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने का प्रयास कर रहा था, लेकिन कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी।२ मिनट के भीतर उसके पड़ोसी दरवाज़ा तोड़कर अंदर आ चुके थे। समर की चीत्कारें इतनी भीषण थीं कि पूरा हॉस्टल उसके रूम के बाहर जमा हो चुका था। उसके पास पहुँचने के बाद भी उसका चिल्लाना बंद नहीं हुआ। दूसरे छात्र जैसे-तैसे उसको होश में लाये। सबकी जगते हुए बाकी की रात बीती।

  समर ने सुबह होते ही प्रेम को सारी बातें बताई और एक साथ कमरा बदलने के लिए बोला। प्रेम को समर की कथा मनगढ़ंत लगी । उसने तनिक भी विश्वाश नहीं किया। प्रेम उसी कमरे में रह गया। समर उस कमरे से दूर वाले कमरे में हमेशा के लिए चला गया। अब प्रेम उस कमरे में अकेले रहता था। क्योंकि उसका कोई क़रीबी दोस्त नहीं था,इसलिए अक्सर वो अपने कमरे में ही सोता था। उसके साथ भी वहीं प्रकरण शुरु हुआ जो समर के साथ हुआ था। लेकिन समर को, उसके साथ क्या हो रहा है, इसका तनिक भी अंदाज़ा नहीं था। उसके कमरे से दो लोगों की आपस में बातें करने की आवाजें आती थीं। हँसी -मज़ाक सब चल रहा था। दूसरी आवाज़ बहुत ही सिल्की और सुरीली थी। उसके पड़ोसी कमरे के लोग प्रेम की रात की हरकतों से परेशान रहने लगे। लोगों को शक़ था कि इस रूम में कुछ असामान्य है।

अक्सर प्रेम रात में छात्रावास से बाहर जाया करता था और भोर में वापस आता था। लोगों को लगा कि प्रेम रात में लोगों के चोरी कोई लड़की लेकर आता है और फिर उसी के साथ बाहर, बिना किसी को जनाए, घूमने निकल जाता है। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। वह थोड़ा अंतर्मुखी टाइप का था, इसलिए पड़ोसी उससे बात करने में संकोच करते थे। प्रेम की रात वाली गतिविधियाँ सारी मर्यादाओं को लाँघ चुकी थी। एक रात सारे प्रताड़ित पड़ोसी प्रेम को रंगे हाँथो पकड़ने के लिए उसके रूम पर धावा बोल दिए। प्रेम गहरी नींद में था। अचानक दरवाज़े पर शोर सुनकर उसकी नींद टूटी और वह दरवाज़ा खोला। लोग उससे बिना कुछ पूछे उसके रूम में रेड मार दिए। बहुत ढूंढें पर कोई लड़की नहीं मिली। फिर सब लोगों ने प्रेम को लेकर अपनी आपबीती सुनाई।

लड़की से बात करने की सुरीली आवाज़, प्रेम का काली रातों में बाहर जाना और भोर में लौटना, इत्यादि। प्रेम बड़ा असमंजस में था। क्योंकि ये सारी चीजें उसने सपने में देखा था। लेकिन उसके सपने के बारे में औरों को कैसे पता चला ? यह बात उसको खटकी। उसके रोज़ के सपने में एक ही लड़की कैसे दिख सकती थी ? वहीं खूबसूरत चेहरा जिसके बगल में वो कभी मणिकर्णिका घाट पर बैठता था, तो कभी दशाश्वमेध घाट पर। उसका गंगा का पानी छूना, एक दूसरे पर पानी फेंकना। वो उसी लड़की को देखने की इच्छा मन में लिये क्यों सोता था ? क्या उसको उस सपने वाली लड़की से प्यार हो गया था ? इन सब सवालों का ज़वाब प्रेम की नास्तिकता के परे था। उसके पड़ोसी उसको अपना ध्यान रखने और सजग रहने की नसीहत देकर अपने-अपने रूम में चले गए। अगली रात सोने से पहले प्रेम थोड़ा भयभीत था। वो सोच ही रहा था कि आज सपने में उस लड़की को न देखूं, तभी वहीं ख़ूबसूरत लड़की उसके बिस्तर पर बैठी मिली । साक्षात्, प्रकट ! 

"प्रेम! ये जो तुम देख रहे हो, वो सपना नहीं है। मैं सच में तुमसे प्यार करती थी और करती हूँ। " लड़की ने बोला। 

मैं हरदम तुम्हारे साथ रहती हूँ। तुम्हें अकेला कभी नहीं छोड़ती हूँ। "

प्रेम डर के मारे कुछ भी नहीं बोल पा रहा था। लड़खड़ाते हुए उसने बोला: "मुझे छोड़ दो, मैंने क्या बिगाड़ा है, तुम मेरा नाम कैसे जानती हो ?"

"तुम मेरे प्रेम हो। ..... मैंने बरसों तुम्हारा इंतजार किया है ।" लड़की ने बोला। 

"मेरी शादी तय हो गयी है। " लड़का। 

इस बात को सुनकर लड़की अपने खूँखार रूप में आ जाती है। वहीं रूप जो समर ने देखा था, बस इस बार उसके आँख, नाक, कान से ख़ून ही ख़ून बह रहा था। जैसे उसका गुस्सा ख़ून के रूप में फूटा हो।

"तुम मेरे ही रहोगे, किसी और के नहीं हो सकते हो, मैं होने नहीं दूँगी। " लड़की। 

प्रेम बेहोश हो गया। सुबह अपने घर वालों को यह सब बातें बताई। घर वालों ने गंभीरता से नहीं लिया। इधर लड़की प्रेम को ख़ुद से शादी के लिए राज़ी कराने के लिए बाथरूम में अपने शरीर के अंग एक-एक करके काटकर फेंकने लगी। कभी अंगुली, कभी हाँथ, कभी उसकी जीभ होती थी। लेकिन प्रेम आत्मा से शादी के लिये हामी कैसे भर सकता था ? वो सीधे अपने गाँव भाग गया।

 घरवाले उसकी पागलों वाली हालत देखकर डर गए और एक तान्त्रिक के पास प्रेम को लेकर गए। तांत्रिक को समस्या की जड़ का पता चल चुका था।

लड़की को किसी प्रेम नाम के लड़के से प्यार हुआ था। लड़की सच्चे प्यार में थी, लेकिन लड़का उसको अपने गले ही हड्डी मानने लगा था। वो लड़का अब इस लड़की से छुटकारा पाना चाहता था। एक दिन लड़के ने उसी रूम में लड़की को सोते समय ही गला घोंट कर मार दिया था। उस कमरे के बाथरूम में लड़की की लाश को दफ़न कर दिया। लड़की सुबह का सूरज नहीं देख पाई। उसके बाद उस लड़के ने रूम आनन-फानन में छोड़ दिया। तब से लड़की की आत्मा सुबह होने का इंतजार कर रही थी। लड़की प्रेम का इंतजार करती रही। तब से पहली बार कोई प्रेम नाम का लड़का उस रूम में रहने आया था। प्रेम के रूमपार्टनर सागर को अपने और प्रेम के बीच का रोड़ा समझकर उसको डराकर भगा दिया। उसके बाद से वह प्रेम के साथ साये की तरह रहती थी।  

 जो भी हुआ था, तांत्रिक को लड़की की आत्मा को मुक्ति दिलानी थी। तांत्रिक, प्रेम और प्रेम के पिता छात्रावास पहुँचे । वो कुछ मजदूर भी अपने साथ लाये थे । महामृत्युञ्जय मंत्रोच्चार के बीच प्रेम के रूम के बाथरूम की खुदाई की गई । वहाँ पर एक लड़की का कंकाल मिला। कहीं-न-कहीं प्रेम भी सपने वाली लड़की से प्यार कर बैठा था। अपना फ़र्ज़ समझते हुए लड़की की आत्मा को आज़ाद करना चाहता था। प्रेम उन अस्थियोँ का मणिकर्णिका घाट पर पूरे रीति-रिवाजों के साथ दाह संस्कार करता है। 

वो ख़ूबसूरत लड़की प्रेम के सपने में फिर कभी नहीं आई। प्रेम कभी-कभी उसको सपने में देखना चाहता था, लेकिन वो दूर अपने जहान को जा चुकी थी। 


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