Naveen Singh

Children Stories

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वेयरवुल्फ का खौफ़ (Prompt#17)

वेयरवुल्फ का खौफ़ (Prompt#17)

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घने शहर से थोड़ी दूर एक छोटा जंगल था । जंगल के ठीक पास पहाड़ी में एक गुफा थी, जिसमें तीन वेयरवुल्फों का एक परिवार रहता था। एक बूढ़ा नर और एक बूढ़ी मादा अपने बच्चे का पेट भरने का पुरजोर प्रयास करते थे । वो जंगल उनका इलाक़ा था, जहाँ वे शिकार करते थे । बूढ़े अक़्सर रात में जाते और भोजन का बंदोबस्त करके सुबह तक वापस आते थे । कई दिन तो खाली ही लौटना पड़ता था । जब मौत सामने हो तो शिकार की रफ़्तार को बूढ़े वेयरवुल्फ कैसे मात दे सकते थे ? उनकी आँखों का तेज भी कम हो चला था, जिसको देखकर शिकार सोच में पड़ जाते थे कि वो पलायन करें या उम्र की चपेट में आये हुए के सामने अड़ा रहें। वे दोनों अपने बच्चे के जल्दी से बड़ा होने का इंतज़ार कर रहे थे ताकि बच्चा बड़ा होकर उनका पेट भर सके ।

 एक दिन दोनों वेयरवुल्फ रात में शिकार करने गये और सुबह वापस नहीं लौट पाये । बच्चा कई दिन तक गुफ़ा के प्रकाश को आस से देखता रहा, लेकिन उसको काली मायूसी ही दिखी। वो अभी शिकार करने के काबिल न था। भूख भी पेट पर दस्तक़ देने लगी थी । उसकी माँ ने गुफा के अंदर रहने का सख़्त निर्देश दिया था। माँ को डर था कि कहीं वो ख़ुद न शिकार हो जाय । कई दिनों तक माँ को न देख पाने से उसका मन बड़ा व्याकुल हो उठा । उसको माँ के आदेशों को नज़रअंदाज़ करते हुए गुफा से बाहर आना ही पड़ा। भूख से टूटती आँतें सारे आदेशों की आहूति दे चुकी थीं । उसको दूर-दूर तक कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। उसने आस-पास काफ़ी ढूँढा । उसको उस जंगल की तलाश थी, जिसमें उसके माता-पिता आया करते थे । जंगल तो दूर, आस-पास कोई पेड़ भी नहीं दिखा। दोबारा अपनों से न मिल पाने से उत्पन्न निराशा लिये इधर-उधर भटकता रहा। क्या उसका इंतजार अनंत हो जाएगा? ऐसे ख़याल उसके मन में उठने लगे । तभी उसको एक जगह राख दिखी । उसने नजरें उठाई और उस राख को दूर-दूर तक फैला पाया । वो उस खौफनाक मंजर को समझने के लिए राख का पीछा करता गया । दूर-दूर तक जले हुए पेड़ों की ठूठें थी। बड़े पेड़ जैसे खड़े-खड़े ही आत्मदाहकर कंकाल बन गये हों । सियार, लोमड़ी, हाँथियों के शव ऐसे पड़े थे,जैसे कि आग की लपटों ने उनके भागते हुए पैरों को सबसे पहले भस्म कर दिया हो। उसको अब डर लगने लगा, अधीरता और व्याकुलता बढ़ने लगी। धरती में इतनी तपन थी कि उसको सहना मुश्किल पड़ रहा था । हर तरफ बिखरी लाशों से उसका मन दुःखी होता जा रहा था । अंततः अपनी माता-पिता की लाशों तक पहुँच ही गया। उस इलाके में कोई दूसरा वेयरवुल्फ नहीं था, इसलिए पड़े हुए अवशेष उसके माता-पिता के ही थे। वो वहीं धड़ाम से गिर गया । उसका इंतज़ार अंधकार के गर्त में डूब गया, उसकी आँखें डबडबा गईं । वो ज़ोर-ज़ोर से चित्कारने लगा । पहली बार उसने इतने वीभत्स आवाज़ें निकाली थी । जैसे वो अपना गला फाड़ने को आमादा हो ! लाचार था । सच को स्वीकारकर गुफ़ा को लौट गया । माँ-बाप से फिर कभी न मिलने का दुःख उसके पैरों की गति को धीमा कर रहा था । वो पलटकर बार-बार देख रहा था, लेकिन धीरे-धीरे उन अवशेषों से दूर अपनी गुफा में चला गया । उसके माँ-बाप अब स्मृतिशेष रह गए थे ।

 शिकार की तलाश में अब उसको मीलों दूर स्थित जंगल जाना पड़ता था । उसकी पेट की अग्नि हजारों मीलों के फ़ासले को भी जलाकर छोटा कर देती। भूख मिटाने के लिए उसने छोटे जानवरों का शिकार करना शुरू कर दिया । भूख से बड़ी दूसरी कोई पाठशाला नहीं होती ।

 समय बीतता गया । वेयरवुल्फ एक दिन उजाले के समय गुफा से बहार निकला । जहाँ पर उस काली रात को राख ही राख देखी थी, वहाँ पर बहुत सारी आलीशान इमारतें दिखीं । वो बड़ा हैरानी में था, आख़िर पेड़ जलकर इमारत कैसे बन गये? जब पेड़ इमारत बन सकते थे तो शायद उसके माँ-बाप भी कुछ बने हों, ऐसा विचारकर वो उन घरों के इर्द-गिर्द जाने की सोचता है । उसको एकदम अलग प्रकार के जानवर दिखे । वो दो पैरों पर चलते थे, कुछ पहने हुए सबसे सज्जन प्राणी प्रतीत हो रहे थे। उसने ऐसे वाले पहली बार देखे थे । वो जानवरों का तो शिकार करना अब सीख चुका था । मन में प्रसन्नता भी हुई, अब शिकार के लिए उसको मीलों नहीं चलना पड़ेगा । उसने केवल चौपायों को मारना सीखा था, लेकिन दोपायों का अनुभव नहीं था । उसकी भूख और भोजन के बीच दो पैरों वाले जानवरों का शिकार सीखने मात्र की दूरी थी । एक दिन वो शाम ढलने पर शिकार करने उन इमारतों के पास चुपके से जाता है। दो पैरों वाला एक नन्हा उसको दिखता है। एकदम सुनहरी, ईमानदार मुस्कान, सुन्दर काजल वाली आँखें, घुँघराले बाल ! वियरवुल्फ नन्हे की आँखों में ताड़ता है, जैसे नन्हे को डराने का प्रयास कर रहा हो । उसको उकसाना चाहता हो । लेकिन वो नन्हा भी बहुत देर तक वेयरवुल्फ की आँखों को आश्चर्य और जिज्ञासा से देखता रहा। नन्हा डरा एकदम नहीं , न तो अपनी जगह से एक इंच हिला । नन्हे की मासूम आँखों से नजरें मिलाने में असफल वेयरवुल्फ अपनी गुफा को लौट जाता है । वो समझ नहीं पाता है, आख़िर वो उस छोटे दोपाये जानवर का शिकार क्यों नहीं कर पाया ? जब छोटे का शिकार करके वो सीख नहीं सकता तो आगे बड़े दोपाये जानवरों को कैसे मार सकेगा ? अपने आपको काफ़ी धिक्कारा । ख़ुद की आलोचना करना काफ़ी विरलय व्यवहार होता है । वो अगले दिन फिर शिकार करने का संकल्प करके गया । उसको वही नन्हा मिला । थोड़ी देर के नज़र मिलाप के बाद दोपाये ने बड़ी मासूमियत के साथ बोला-

" भालू , भेड़िया, वग़ैरह के बारे में तो पढ़ा हूँ,, लेकिन तुम्हारे बारे में मेरी टीचर ने कभी नहीं बताया !. क्या नाम है तुम्हारा ?"

 वेयरवुल्फ ने ऐसी आवाज़ पहली बार सुनी थी । अब वो क्या बोलता , चीत्कारता ?.. हूँकार भरता ? इन हरकतों से वो ख़ुद ही शिकार हो सकता था । उसको इन नये जानवरों की क्षमता का कोई आकलन न था, इसलिए वो किसी भी जोख़िम से बचना चाहा। वो फिर से बिना शिकार के ही वापस गुफा को लौट गया। उसने सोचा कि लग रहा है कि उससे नहीं हो पाएगा । उस नन्हे की नज़रों की मासूमियत वेयरवुल्फ की सारी आक्रामकता को शान्त कर देती थी , ठीक वैसे ही जैसे पानी अंगारे को । उसको लगा कि भोजन के लिए मीलों दूर जाना ही सही था । फिर उसने उन घरों के आस-पास भटकना बंद कर दिया । ख़ुद के अहम से समझौता कर लिया । 

एक दिन वो गुफा में बैठा था, तभी वहीं नन्हा दोपाया भटकते हुए उसकी गुफा में आ पहुँचा । वेयरवुल्फ थोड़ा सहमा, उसने सोचा -"अरे ये जानवर तो बड़े ख़तरनाक निकले , इनके बच्चे भी बड़े शिकारी लगते हैं ! "

नन्हा बच्चा एकदम सामान्य होकर, जैसे वो किसी दुसरे बच्चे से ही बात कर रहा हो -"तुमने उस दिन अपना नाम नहीं बताया ?..फिर तुम दिखे भी नहीं ....,तब से ढूँढ रहा हूँ । तुम्हारे बारे में अपनी टीचर को भी बताया और पूछा, उन्होंने डाँटकर चुप करा दिया, ....होमवर्क में जानवरों के नाम और पहचान लिखकर ले जाना पड़ा । अब तुम ही बताओ, .....कौन हो ?"

वियरवुल्फ इधर-उधर हाँथ हिलाता, पूँछ डुलाता, जैसे कुछ कहने का प्रयास कर रहा हो। बच्चा थोड़ी देर वियरवुल्फ के पास जाकर उसको चारो तरफ से बड़े ध्यान से देखता है । जैसेउसको टीचर से इसके बारे में होमवर्क मिला हो। फिर -

"अच्छा ! तो आज नहीं बोलोगे, फिर कभी बता देना । "

ऐसा होते-होते वेयरवुल्फ को भी एक साथी मिल चुका था, दोनों की दोस्ती हो गई। वियरवुल्फ का भी समय अच्छा कटने लगा । वो अब बच्चे के साथ दूर तक सैर-सपाटे पर जाता था। एक दिन बच्चा कुछ पेड़ लेकर आया और बोला-

"आज हमारी पर्यावरण की क्लास थी, टीचर ने बोला कि सबको ढेर सारे पेड़ लगाने चाहिए, जिससे की प्रकृति का संतुलन बना रहे । तुम मेरी मदद करोगे? हम सब बहुत सारा पेड़ लगायेंगे। "

 पेड़ तो हर जानवर के जीवन हैं, चाहे वो दोपाया हो या चौपाया ! दोनों मिलकर पेड़ लगाते हैं । नन्हें के लिए वो पर्यावरण का संतुलन था, लेकिन वेयरवुल्फ़ के लिए उससे कहीं बढ़कर था। उसके मानस पटल पर अंकित वो भयानक अतीत उभर सा आया। उन पेड़ों के झुण्ड ने उसका बचपन छीन लिया था । नन्हें को पर्यावरण की सनक सवार हो गई। जहाँ भी ख़ाली जगह मिलती थी, दोस्त के साथ मिलकर पेड़ लगा देता था। लगे हुए पेड़ बढ़ते गये। नये पेड़ लगते गये । वो सब धीरे-धीरे जंगल का रूप लेते गये। चौपाया देख रहा था, आगे चलकर वो पेड़ एक दिन जंगल ज़रूर बनेंगे । नन्हा पेड़ लगाते-लगाते नवयुवक दोपाया बन गया । गुफा के पास जंगल ?, इस बात की कल्पना से भी वेयरवुल्फ डर जाता था-

“ इस जंगल में भी कहीं आग न लग जाय ! कहीं मैं अपनी चिता तो नहीं सजा रहा हूँ ?”

 एक रात गुफा से मीलों दूर उस जंगल में आग लग गई, जिसमें वेयरवुल्फ शिकार करने जाया करता था । जंगल राख का मंजर बन गया । उसके बाद दोपाये नवयुवक को उस गुफे में वेयरवुल्फ कभी नहीं मिला ।

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