Rajeshwar Mandal

Tragedy

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Rajeshwar Mandal

Tragedy

नागो

नागो

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बात कोई खास नहीं थी। बात चित के क्रम में यूँ ही मजाकिया लहजे में नागो (पति) ने बोल दिया कि तुम जब मेरे साथ चलती हो तो ऐसा लगता है कि भारत के साथ श्रीलंका जा रहा है। बस क्या था कि मालिनी (पत्नी) का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया । और तू -तू ,मैं-मैं से जो झगड़ा शुरू हुआ वह पराकाष्ठा का विकराल रूप धारण कर कोर्ट कचहरी तक जा पहुँचा । करवा चौठ में जिन्हें चाँद समझ कर दीदार करते थे वह अब दीगर हो चुका था । और मालिनी (पत्नी ) ने अपने कथित शुभचिंतको से परामर्श के बाद दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए नागो (पति) के विरुद्ध मुकदमा दायर कर दिया ।

इसी केस में आज तारीख है । 

पत्नी गवाही देने आई है आज । एक ओर पत्नी मन ही मन इस्कीम बना रही है कि आज इतना झूठ सच गवाही दुँगी कि इनका नानी याद आ जाएगा। 

अब बहुत हो गया। बरदाश्त करने की भी एक सीमा होती है। 

इनका घर द्वार नहीं बिकवा दिया तो मैं भी एक बाप का बेटी नहीं।पता चल जाएगा उसे आज किससे पंगा लिया है।सोच क्या लिए है अपने आपको ।हून् .........! 

दूसरी ओर नागो कोर्ट कैम्पस में किनारे बैठ कर अपने भाग्य को कोस रहा है। साथ में सिर्फ पच्चीस छब्बीस सौ रुपये है ।दो हजार रुपये पत्नी के भरण पोषण का खर्चा कोर्ट में जमा करना है और वो चार पाँच सौ रुपये वकील साहब ले लेंगे। शाम में माँ के लिए दवाई भी ले जाना है। पता नहीं नास्ता भी कर पाउंगा या नहीं। और फिर शाम को घर भी तो जाना है।

 तभी पत्नी के साथ अपने चार साल की छोटी बेटी को कोर्ट की ओर आते देखा।आंतरिक कलह से कोसो दुर अनजान बेटी पिता को देखकर मुस्कुराई। नागो का जी चाहा दौड़ कर जाऐं और उसे गोदी में उठा कर खुब प्यार करूँ। कितनी खुश होगी वह अपने पापा से मिल कर । कितना खेलती थी वो मेरे साथ।

थके हारे जब भी काम पर से लौटता था उसे देख कर सारी थकान मिट सी जाती थी। वो छोटी छोटी चप्पलें नन्हीं- नन्हीं फ्रॉक और प्लास्टिक की रंग बिरंगी खिलौने शौकियाना खरीदना।कभी हँसाना कभी रुलाना और फिर कभी चिढाना। पच्चीस पच्चास पैसे वाले टाॅफियों से खुश हो जाना। उफ्फ ऽऽऽऽऽऽ..... 

लेकिन परिस्थिति बस ऐसा कर न सका। सारी खुशियाँ न जाने कैसे एक झटके में चली गई।

 हे भगवान ये तुने क्या किया। ऐसा दिन दिखाने से पहले मुझे उठा क्यों न लिया इस दुनिया से । या मेरे मौला कुछ तो रहम कर इस दीन हीन पर । और बरबस आँखों से गंगा जमुना की अविरल धाराऐं प्रवाहित होने लगी।

 तभी कोर्ट के अर्दली ने ऊँची आवाज में पुकार लगाया - नागो हाज़िर होsss। 

किसी तरह हमसफ़र रूमाल के सहारे नागो ने अपने आप को संभालते कोर्ट में प्रवेश किया। 

नागो को पहले से पता है कि आज उनके उपर उलूल जुलूल आरोप लगाये जाएंगे। चुभती तीखे शब्दबानो से उनके मन मष्तिक को घायल किए जाएंगे । चुँकि उसके पत्नी को ये पता है कि मैं दिल का मरीज़ हूँ और जरा सी टेंसन से बी पी हाई हो जाती है। इसलिए वह ऐसी सभी ऐक्टिंग करेगी जिससे मैं परेशान और विचलित होऊं।

 खैर ! मैं मरूं या जीऊं इन्हें क्या ? जब रास्ता ही भटक गई है तो इसे किया ही क्या जा सकता है। 

गवाही शुरु होते ही शुरू हो जाती आरोपो का दौर। कठघरे में बली के बकरे की तरह असहाय चुपचाप खड़ा नागो सब कुछ चुप चाप सुनते जा रहा है । मन ही मन सोचता है ये बात तो सही है कि हम दोनों में कुछ कुछ बातों पर मनमुटाव है । लेकिन ये दहेज वाली बात जो बोल रही है की हम मोटर साईकिल और पाँच लाख रुपया माँगते है ऐसी बात तो नहीं हुई है कभी। और ये जो कह रही है कि उन दहेज वाले सामान कि पूर्ति नहीं करने के कारण मैं उसके साथ मार -पीट करता हूँ और खाने पीने में तकलीफ देता हूँ ,ऐसी भी तो बात नहीं हुई है कभी।

 पति नागो के प्रति जहर उगलने में जहाँ कहीं भी दिक्कतें आ रही थी वहाँ उनके वकील साहब भरपाई बखूबी किये जा रहे थे। वकील साहब का यह हरकत नागो को अच्छा नहीं लग रहा था । ये बात सही है कि फीस के एवज में अपने पक्षकार की मदद करना उनका धर्म है,पर खुद पक्षकार बन जाना कहाँ का न्यायोचित है। क्या उसे विद्वान अधिवक्ता की श्रेणी में रखा जा सकता है। खैर ! हम कर भी क्या सकते थे। जब अपने ही पराये हो गये तो पराये से क्या आसरा। 

लगभग आधे से ज्यादा गवाही हो चुकी थी। पर इस आधे गवाही में ही मालिनी (पत्नी) सैकड़ों किंग कोबरा से ज्यादा जहर उगलो चुकी है जो मुझे सजा दिलाने के लिए काफी था । 

इस बीच दूसरे केस के सुनवाई का नंबर आ जाता है और नागो के केस में शेष गवाही के लिए कल की तारिख मुकर्रर कर दी जाती है। 

आज घर जाना । कल सुबह फिर कचहरी आना। ठीक नहीं है। ऐसा सोचकर मालिनी (नागो की पत्नी ) शहर के होटल में ही रात्रि विश्राम का फैसला करती है। कलकता जैसे शहर में होटल बहुत महंगा है। सो दुर- दराज के एक रिश्तेदार के यहाँ मालिनी (नागो की पत्नी ) रुक जाती है। 

अतिरिक्त कमरे के अभाव में कमरे से सटे बरामदा में ही मालिनी के विश्राम के लिए बेड लगा दी जाती है। जिनके यहाँ मालिनी रुकी है इतेफाक से उनका बेटा आज ही परदेश से लगभग साल भर बाद लौटा है। मकान मालिक का बेटा और बहु उसी कमरे में सो रही है। मालिनी सोते सोते कल के गवाही के लिए मन ही मन प्लान बना रही है कि कल क्या बोलना है और कैसे केस जीतना है । रात के ग्यारह बज रहे हैं। दिन भर के थकान के कारण नींद आने ही वाली थी। तभी कमरे से कुछ गुफ्तगू की आवाज आती है। बातें स्पष्ट तो सुनाई नहीं दे रही थी परंतु सारांश व कयाश ये है कि मकान मालिक की बहू अपने पति को उलाहना दे रही है कि इतने दिन बाद क्यों आये ? कैसे बताऊं तुम मेरे क्या हो और मै तुमसे कितना प्यार करती हूँ। तुम बीन मैं कैसे दिन रात व महीने गुजारी और तुम निष्ठुर लोग साल-साल भर कोई खबर ही नहीं लेते हो। जाओ ...... मुझे बिल्कुल ही बात नहीं करनी तुमसे।

 इधर पति आर्थिक मजबूरी और जिम्मेदारियों के बहाने सफाई दे रहा है कि मजबुरी का नाम ......। जो रोना तुमको है वही रोना हमको भी है। फुर्सत हो या काम के वक्त मेरे दिलो दिमाग मे तुम्हारी ही स्मृति छायी रहती है। किसको शौक है अपनो से दुर जाना। और इसी क्रम में वह अपने हाथों से (शायद सोने की कोई हार) कुछ गहने अपने पत्नी को पहनाते है। पति का छुपा असीम प्यार देख पत्नी की आँखें नम हो जाती है और वो पति से लिपट कर फफक फफक कर रो पड़ती है।

 पति-पत्नी के बीच इस नोक झोंक,प्यार गुस्सा और रोने मुस्कुराने की अनुभूति मालिनी सारांशत: सब सुन कर एहसास कर रही थी। एकाएक आँखों से नींद गायब हो जाती है ।

रात के करीब एक बज चुके हैं। मालिनी के मन में एक अलग ही तरंगे हिलोर मारने लगती है। तकिये को अपनी ओर भिंचते हुए पति सा प्यार की अनुभूति का एहसास करना चाहती है। मन मष्तिक बरसो पहले एक साथ बिताए पलो को याद दिलाने लगती है। दार्जिलिंग की होटल,मनाली की सैर,गोवा बीच की धूप विश्राम,ट्रेन व टमटम की सवारी,रेस्तरां का रंग बिरंगी ब्यंजन और अनेकानेक साथ बिताए पल स्मृति बन तरसाने लगती है । जितनी यादें उतनी ही बातें और......!

ओह। हमें हो क्या गया है। हमने एक छोटी सी अहम् के ख़ातिर अपना ही हँसता खेलता घर ऊजार दिया। माना कि वो झुकने को तैयार नहीं थे। तो हम ही मौन हो जाते।लेकिन...... 

(प्रेम की प्रतीक तकिया जब पति पत्नी के बीच दिवार बन जाय कमरा अलग होने का प्रथम संकेत है । और कमरा अलग होते ही शुरू हो जाती है संवाद हीनता जिसका अंत होता है रिस्ते के अंत । )

अब तो अहम की लड़ाई सर से उपर जा चुकी है। संभालूं तो कैसे संभालूं। 

यू -टर्न लेना भी मुश्किल है। खैर! देखते हैं आज कचहरी में बात करके। सही या गलत खुद की ही गलती मान कर अपना घर फिर से बसाने का कोशिश करुंगी। संभव है उन्होने मजाकिया लहजे में मेरी उपमा श्रीलंका से किये हों पर किसी मिलते जुलते अपशब्द का प्रयोग तो नहीं किये। मैने ही तिल का तार बना दिया। खैर....! 

मालिनी अक्सर कचहरी समय से पहले पहुँचती थी ताकि वकील साहब से केस को ऊलझाने का दाव पेंच सीख सके। और आज भी वह जल्दी पहुँचना चाह रही है, परंतु फर्क बस इतना है कि आज वह जल्दी से जल्दी कचहरी पहुँच कर पति(नागो ) का जी भर दीदार करना चाहती है। परंतु ट्रैफिक जाम होने के कारण मालिनी को आज कचहरी आने में देर हो गई दिन के करीब बारह बज चुके है । कचहरी कैंपस में पूर्व की भांति ही चहल कदमी है। जगह जगह लोग गुट बनाकर बैठे हैं। दाव पेंच सिखाई जा रही है। 

मालिनी की आँखे बेसब्री से नागो को खोज रही है। वकील साहब से कुछ पुछते ही तब तक अर्दली की आवाज़ सुनाई दी। नागो हाज़िर होssss ।

मालिनी अपने वकील साहब के साथ न्यायालय कक्ष में प्रवेश करती है। झटके से मालिनी कोर्ट रूम में चारो ओर नजर दौड़ाती है पर नागो कहीं नहीं है। पता नहीं क्यों जिस व्यक्ति को मालिनी फूटी आँख देखना नहीं चाहती थी आज उन्हीं को ये आँखे बेसब्री से ढूंढ रही है। अन्य पक्षकार की मौजूदगी से कोर्ट रूम में अन्य दिनों की तुलना में आज काफी गहमा गहमी है परंतु पता नहीं कुछ खालीपन सा क्यूँ एहसास हो रहा है। मन में तरह तरह की उल्टी सीधी बातें आने लगी है। 

इसी बीच नागो के वकील साहब कुछ कागजात जज साहब की ओर बढाते हैं। कागजात पढ़ते ही जज साहब का चेहरा उतर सा जाता है फिर कूछ असहज भाव से मालिनी की ओर देखने लगते हैं। 

मालिनी कहने ही जा रही थी कि साहब ये केस अब मुझे नहीं लड़नी है। 

जज साहब बोल बैठे - मालिनी अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि केस खतम हो गया। मेरे निर्णयसे पहले उपर वाले ने अपना निर्णय सुना दिया। 

मालिनी- मैं समझी नहीं श्रीमान ?

जज - अस्पताल कागजात के अनुसार हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट अटैक के कारण कल रात के करीब एग्यारह बजे नागो का देहांत हो गया। और जज साहब कुर्सी से उठ गये। 

देहांत शब्द सुनते ही मालिनी नि:शब्द होकर वहीं जमीन पर बेहोस होकर गीर जाती है। 

ऐसा लगता है कि कान में कोई(शायद नागो ) कह रहा हो - मालिनी लो मैं हार गया तुम केस जीत गई , बेटी का खयाल रखना। 

मालिनी के आँखों से बहती गंगा-जमुना की जलधारा देखने कचहरी में हुजूम सा लग गया था। दाव पेंच सिखाने वाले तथाकथित शुभचिन्तक नदारद थे ।

बस कमी थी तो उस नागो का जो पूर्व की भांति बाँह पकड़ कर उन्हें उठाते और बोलते रो मत पगली मैं हूँ न।


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