ना ... नहीं
ना ... नहीं
शुक्रवार की शाम थी, में किचन में डिनर बना रही थी,
अपने पति के इंतजार करके चाय का प्याला रखा ही था, की फोन की घंटी बजी .. कोई और नही ..ये ही थे...
"यार कल तो वीकेंड है, तो मैं आज थोड़ा देर से आऊंगा..
हम लोग बिंज मैं बैठे हैं.. तुम लोग खाना खा लेना ..
रात को मिलते है".. फोन बंद
ठीक है भई... मैंने और बच्चों ने डिनर लिया, बच्चे अपने कमरे में चले गए, मैं थोड़ा TV देखने लगी.. फिर जाने कब आंख लग गई। बीच में आंख खुली टाइम देखा तो 11:40 हो रहे थे, मैने सोचा की इनसे पुछु इतना लेट हो गए, kb तक आओगे, " बस डार्लिंग निकल ही रहा हूं, " ...
मैं फिर से दो गई...
ये आज की बात नही.. बल्कि तकरीबन हर वीकेंड ऐसा ही चल रहा था... मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता था..
क्योंकि अगले दो दिनों तक इनका हैंगओवर ही रहता था।
ना बच्चों से कोई बात , ना घर की कोई सुध।
खैर.. साहेब जी 1:00 बजे रात में आए, मैने दरवाजा खोला फिर वापस सो गई,। चेंज करके ये भी आ गए .. ओहो मुंह से जबरदस्त शराब की बू आ रही थी..
में उधर मुंह फेर के सो गई... मगर इन जनाब की नींद गायब थी..
इरादे साफ थे... मैने भांप लिया... लेकीन मेरा बिल्कुल मन नहीं था, मगर मेरी परवाह किसे है... पति तो जब चाहे ... पत्नी के साथ .... कर सकता है, उसे जैसे विशेषाधिकार मिला हुआ है।
उन्होंने मुझे अपनी तरफ खींचा , मेरे गालों को चूमने लगे, धीरे धीरे हर जगह, मैने कहा , की आज नहीं ,। मेरा मन नहीं है. . मगर जैसे सुना ही ना हो... फिर मेरी नाइटी खोली, और सब कुछ जैसे शुरू हो गया.. लगभग एक घंटे तक ये सब किया.... फिर बस सो गए।
अब ये पीड़ा, ये जबरदस्ती एक औरत किसे बताए, और कोई सुने भी क्यू... उल्टा यही कहेंगे की पति नहीं करेगा तो और कौन ?? उसे ये सब करने के लिए अपनी पत्नी से भी क्यूं पूछना चाहिए।? हमारे समाज में ब्याहता को ये सब करना ही है... चाहे कभी उसका मन हो या ना हो, पर उसे " "ना" कहने का कोई अधिकार नहीं।
पति प्यार से बात करे या ना करे उससे, पर उसे संभोग जिसे वो प्यार ही कहता है , वो ज़रूर होना चाहिए।
मुझे नहीं समझ आता कुछ भी, ये मेरी ही आपबीती है या की और भी कई स्त्रीयों की ।
मगर ये प्रश्न उतना ही जरूरी है कि जब कभी औरत का मन ना हों तो फिर आदमी को भी उसकी इच्छा का सम्मान करना चाहिए, चाहे वो उसकी पत्नी हो... या कोई और...