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Arya Jha

Romance

3  

Arya Jha

Romance

मुक्ति

मुक्ति

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"पेन शुड नाॅट गो इन वेन। समझ रही हो ना! तुम नहीं मिली तो टूट जाऊँगा मैं!"

"मैं पूरी कोशिश करूँगी।"

सहपाठी आदित्य की बातें मौसमी के होश उड़ाती थीं। उन आँखों में अपने लिये अथाह प्रेम के सागर को देख कर झूम जाती। क्या कोई किसी को इतना प्यार कर सकता है? अपने भाग्य पर इठलाती। नादान लड़की ये भी नहीं जानती थी कि वह और उसकी चाहत दोनों ही का आदित्य के सिवा किसी के नजर में कोई अस्तित्व नहीं!

आदित्य प्रखर था, उसके चेहरे पर एक आभा हर समय विद्यमान रहती। मौसमी बस सूरजमुखी के फूल सी अपने आदित्य के सामने खिलती और बाद में मुरझा जाती। आखिरकार वही हुआ जिसका डर था। आदित्य का प्रेम ही मौसमी का विश्वास था। उससे दूर कर दी गई तो मुरझा गई।आदित्य प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठ रहा था और मौसमी के माता-पिता को उसके शादी की जल्दी थी। उसने घरवालों से दो वर्षों का समय मांगा पर उन्हें तो जैसे विजातीय आदित्य फूटी आँख नहीं भा रहा था, दोनों के बीच दीवार बन बैठे। अपनी ही जान-पहचान के लड़के से मौसमी का विवाह करने की ठान चुके थे।

कहते हैं ना कि लोहा लोहे को काटता है। यही अपना कर उसके माता-पिता व भाई-बहन प्यार लुटाने लगे। उद्देश्य उसके आदित्य के प्रति प्रेम को कमज़ोर कर, परिवार प्रेम को मजबूत बनाना था। अति प्रेम दर्शाते हुए उसे भावुक करने की कोशिश की जा रही थी। एक ओर आदित्य था दूसरी ओर पूरा परिवार, सबने उसकी भावनाओं से खेला। आखिरकार वह झुक गई, कमज़ोर हृदय पर परिवार हित ने विजय प्राप्त कर ली। उसकी खुशियों की आहुति दे दी गई। खुशियों के परित्याग तक तो ठीक था पर आदित्य के प्रति अपराधबोध उसे तोड़ रहा था। जिसके होने मात्र से वह जी उठती थी, जाने वह कैसा होगा। यह ख्याल आते ही वर्तमान से कटकर वह अतीत की खुबसूरत गलियों में भटकने लगती।

एक तरफ एक निर्दोष प्रीत नजर आता तो दूसरी ओर एक बेवफा प्रेमिका, अजीब अंतर्वेदना थी। हृदय को छलनी किये जाती थी। सौभाग्य से जीवनसाथी के रूप में सच्चा मित्र मिला था। उसके रंग बदलते चेहरे को पढकर सब समझ गया।

"तुम उदास रहती हो, हमारी शादी से खुश नहीं हो?"

"आप खुश हैं?"

"हाँ बिल्कुल!"

"मगर मैं अपने-आप में बेहद परेशान हूँ। मेरे द्वारा किसी के प्रति अपराध हुआ है, आपको कुछ नहीं पता।" कहकर सुबकते हुए उसने अपने सारे दर्द उड़ेल दिये।

"कोई अपराध नहीं किया तुमने, बल्कि तुम्हारी खुशियों का गला घोटा गया है। तुम जो कर सकती थी तुमने किया। अब जिंदगी खुल कर जियो।"

"कैसे जियूँ?"

"बाहर जाओ, दोस्त बनाओ। बिल्कुल वैसे ही जैसे पहले करती थी। इससे तुम्हें आजादी का अहसास होगा कैद का नहीं। मैं हूँ ना! बाकी सब मुझ पर छोड़ दो। तुम्हें कभी अकेलापन महसूस नहीं होने दूँगा।"

"पर पता नहीं आदित्य मुझे माफ कर सकेगा या नहीं?"

"उसने पहले ही माफ कर दिया है तुम्हें। अरे पगली! प्यार और क्षमा तो साथ-साथ चलते हैं। किसी रिश्ते की कामयाबी या नाकामी का सेहरा किसी एक के सिर कैसे बंध सकता है? इससे पहले कि कोई और भड़काता उसने स्वयं ही मुझसे सारी सच्चाई बताई।"

"अच्छा! आप कब और कैसे मिले? क्या कहा उसने?"

"तुम्हारी सहेली रिंकी ने सगाई के बाद मिलाया। पहले तो मैं टाल रहा था। शादी के पहले के रिश्तों में भला क्यों दिलचस्पी लेता? मगर उसके आग्रह को ठुकरा नहीं पाया। उसने कहा कि हर चाहत मोहब्बत में और हर मोहब्बत शादी में तब्दील हो ये जरूरी तो नहीं। वह सही समय पर अपने पैरों पर खड़ा ना हो सका। चूक उससे भी हुई है, इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। बातचीत के दौरान मैं भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। उसे यक़ीन दिलाया कि तुम्हारा पूरी तरह से ख्याल रखूँगा।"

"ओह! तो आदित्य ने मेरी बिगड़ी बात बनाने की कोशिश की। उसने प्रेम में दर्द नहीं सुकून दिया। इंसानी फितरत, क्रोध, बदले की भावना से दूर वह वास्तव मे वैलेंटाइन था। यह ख्याल आते ही उसकी आँखें भर आईं। उसके जीवन में आदित्य का अभाव अवश्य था, मगर अपराधबोध से मुक्ति मिल गई थी। खुश थी कि अब वह किसी की अपराधिनी नहीं बल्कि अपने पति के हृदय की मल्लिका है। उसका इश्क नाकाम सही पर सही सोच व अच्छे जीवनसाथी के साथ जिंदगी पूूरी तरह से कामयाब है!


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