मुक्कमल प्यार की दास्ताँ
मुक्कमल प्यार की दास्ताँ
लरज उठा था उसका मन जब बारिश की बूँदों ने पलकों को छुआ तो। बारिश आज भी बरसी तो जोया के अहसास भी नम हो उठे। इक मीठी सी मुस्कान होठों पर अठखेलियाँ करने लगी, लाज -शर्म की लाली आँखों में सजने लगी जैसे किसी ने आगे बढ़ कर जोया को छू लिया हो कि उसका पूरा बदन लरज उठा इक अहसास से। जो सीप की मानिंद अपने प्यार को मोती की तरहा खुद में महफूज़ किये हुऐ है।
आकाश से बरसती बूँदें जगा रही थी उन दो दिलो में दबी हुई सी कोई प्यास। गुनगुना रहे थे बादल, बिजली की खनक रह रह कर गूँज रही थी। मेघ बरस कर राह रोक रहे थे उसकी कि कुछ पल ठहर जाये वही जोया। शायद किसी दिल की आस थी यह।
बारिश को एन्जॉय करती है हॉस्टल की तरफ़ चलती जा रही थी वह धीरे धीरे मुस्कुरा रही थी और वो भी उसे देख मुस्कुरा रहा था ये जोया को महसूस हुआ। अनजान दो शख़्स मिले कुछ ख़ास बात नहीं हुई सिवाय पढ़ाई और नोट्स को लेकर। बस आँखों ही आँखों में चाहत पलने लगी। शायद दोनो तरफ़, अक्सर उसको जोया की हर बात की ख़बर रहती लेकिन जोया बस उसके अहसास भर से ही ख़ुश थी। जब -२ नज़रें मिलना फिर शर्मा कर चुरा लेना और होठों पर इक अपनी और खींचती सी मुस्कुराहट जोया को और हसीन बना देती थी।
“ तुम ज़रूर आओगी - नहीं मैं नहीं आऊँगी कभी नहीं आऊँगी, नहीं तुम ज़रूर आओगी मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा तुम्हें आना होगा।।
तुम चाहे कितना भी इंतज़ार कर लो मैं नहीं जाऊँगी कभी नहीं।
मैं कल शाम 4 बजे तक तुम्हारा इंतज़ार करूँगा तुम ज़रूर आओगी - ये मेरा तुमसे “ वादा “ है - यह कहकर सुधीर चल दिया।
जोया की कशिश सुधीर को उसके हॉस्टल खींच लाई और वो उसको मिलने हॉस्टल में आया था उससे मिलना चाहता था । लेकिन जोया ने उससे मिलने से इनकार कर दिया तो तो सुधीर ने दीवार के उस पार से ही चिल्लाकर जोया को मैसेज दिया कि वे कल उसका 4 बजे तक इंतज़ार करेगा उसे आना पड़ेगा और वे ज़रूर आएगी। ये कहकर वह चल दिया। सारी रात कश्मकश में बीती। सहेली के बहुत कहने पर कि वो उससे बहुत प्यार करता है और हर रोज़ तुम्हारे बारे में बात कर मुझसे मिन्नत करता है एक बार मैं तुम्हें उससे मिलवा दूँ।
प्यार की बात सुन जोया की धड़कन जैसे रूक गई। सहेली की आवाज़ अब सुनाई नही दे रही थी जैसे कोई और दुनिया में आ गई हो जोया, प्यार का पहला पहला अहसास , शर्म से उसकी आँखें झुक गई। उसकी सहेली उसे छेड़ने लगी और फिर दोनो सुधीर से मिलने उस जगह गये जहाँ वो इंतज़ार कर रहा था।
लेकिन ...उनको पहुँचने में 10 मिनट लेट हो गया।
सुधीर बहुत देर तक उनके इंतज़ार करता रहा। और जोया तुम नहीं आई। और उसे अब जाना पड़ा एक एमरजेन्सीं हो गई। वो जाते हुए एक मेसेज दे गया था - कि उसके दोस्त का एक्सीडेंट हो गया है और वह वहाँ जा रहा है उसने बहुत देर तक इंतज़ार किया लेकिन तुम नहीं आई। बाद में मिलता हूँ यह लिखकर सुधीर चला गया। जोया हाथ में नोट पकड़कर सुन्न खड़ी रही “वो 10 मिनट “। उन दस मिनटों ने जोया की जिन्दगी को बदल दिया। सपनों को चूर-चूर कर दिया। यूँ ही साल बीत गया वक़्त की आँख-मिचौली में। पेपर भी ख़त्म हुऐ। लेकिन “मिलने का वो वादा “ वो उसकी इंतज़ार में आज भी वो है वो आज भी ज़िन्दा है ख़त्म नहीं हुआ। कहाँ है वो नहीं पता। उसे जोया याद भी है ? फिर भी उसे यकीं है। सिर्फ़ उसे इक झलक चाहिये उसकी ख़ातिर, वो जरूर आयेगा .. जाने कब, कहाँ, किस मोड़ पर नहीं पता। ऐसा प्यार जो साथ नहीं है। पता भी नहीं कहाँ है। लेकिन फिर भी वो आज भी दिल के बहुत क़रीब है। एक शख़्स को ख़यालों में बसा कर बस उसके होने भर के अहसास से प्यार ... होना सम्भव है ?
कब तक रहेगा ये प्यार , कुछ रोज़, कुछ दिन .. कुछ लम्हे, या कुछ साल ... क्या ?
आज भी .... प्यार है ?
हर रोज़ लिखती हूँ ढेरों कविताएँ ,
हज़ारों अहसास उड़ेलती हूँ
लाखों शब्द सजाकर कागज़ के सीने पर
असंख्य आरज़ूएँ कहती हूँ.!
विषय अनेक, किस्से लाजवाब
उसको चुराकर उसे ही लिखती हूँ .!
हाँ ... आज भी जोया को उससे प्यार है। एक लम्बा अर्सा बीत गया ... जीवन के परिपक्व मोड़ पर ले आई है ज़िन्दगी, लेकिन अब भी दिमाग़ में जब नाम उसका, ख़्याल उसका आता है तो दिल ... वैसे ही धड़क उठता है जब पहली बार देखने पर धड़का था। वही हल्का मीठा दर्द, वही शर्मो -हया की लरज , बदन का हल्का सा कपँकपाना सा जाना ... पलकों का प्यार के अहसास से झुक -झुक जाना।
आज भी दिल में कुछ-कुछ होता है ख्याल तुम्हारे जब सरगोशी करते है कानों में। दिल के एक कोने में महफूज़ हो, महफूज़ हो यादों में ऐसे कि जैसे क़ुरान , बाईबल या गीता मखमली कपड़े में लिपटी होती है। जो रौशन करती है जिया के तन -मन के अपने होने के अहसास की रोशनाई से।
प्यार के लिये बस प्यार का होना ज़रूरी है “उस शख़्स के बिना भी हम उसकी इबादत का असर रखते है। “
मुक्कमल है उसका प्यार, वो तो आज भी उसी तरह प्यार करती है जैसे बारिश की बूँदे, बूँदों को जैसे धरती खुद में ही जज़्ब कर एक हो जाती है।
“मेरी पहली सी खामोश,नादान ,अल्हड़ सी चाहत की मल्कीयत के तुम हो इकलौते वारिस"
और ...तुम्हें शायद “अब “इस बात का इल्म है कि नहीं, कोई दुख: नहीं, बहुत ख़ुश हूँ मेरी मोहब्बत के वो जज़्बात आज भी मेरे पास है।"