Mukul Kumar Singh

Inspirational

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Mukul Kumar Singh

Inspirational

मुझे याद है -२

मुझे याद है -२

20 mins
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कुछ ऐसे घटनाएं जीवन में घट जाती है जिसे भूला नहीं जा सकता है। एक अपमान जो मक्खनबाजी के कारण सहना पड़ा हालांकि मैंने लड़ाई की थी परन्तु सफलता हाथ न आई और गरल पीना पड़ा। मैंने जलते हुए तेल की बाती की भांति आंधी का सामना किया और सफलतापूर्वक सम्मानित हुआ।

मैं ग्रेजुएशन फर्स्ट ईयर का छात्र था तथा एन.सी.सी. सी सर्टिफिकेट परीक्षा पास कर चुका था। मेरे कालेज के आफिसर मेजर भट्टाचार्य ने मुझे बुलाया और कहा कि अप्रैल के लास्ट वीक में ग्रुप बेस्ट कैडेट कम्पटीशन है जिसमें तुम्हारे कालेज के दो कैडेट हिस्सा ले रहे हैं। "तुम उन्हें साथ लेकर जाओ", मैंने बड़ी प्रसन्नता से हामी भर दी। लेकिन समस्या खड़ी हो गई उस समय जब कालेज सन्निकट स्टेशन नैहाटी पर एक कैडेट हीं आया दूसरे का अता-पता नहीं था। खैर जो भी हो एक कैडेट को लेकर कम्पटिशन स्थल कृष्णनगर पहुंचा और रिपोर्ट किया जे सी ओ को तो उसने दूसरे कैडेट के बारे में जानना चाहा। मैंने उसे दूसरे की अनुपस्थिति का कारण बता दिया। चुंकी ट्रेन में चेकर टिकट न मांगे इसलिए मैं भी यूनिफॉर्म में ही था। वहां ब्रेकफास्ट की व्यवस्था हो गई पर हाथ-पैर फूलने वाली स्थिति भी मिली। मुझे बताया गया कि दूसरे अनुपस्थित कैडेट के स्थान पर मेरा नाम इनरोल्ड कर दिया गया है। अब आप सोच हीं सकते हैं कि बीना तैयारी के कम्पटिशन लड़ी जा सकती है क्या। वैसे मैं हर परिस्थिति में किसी भी प्रकार की लड़ाई के लिए तैयार रहता था। कम्पटिशन में ड्रील,कई प्रकार के सायकोलॉजी टेस्ट, ग्रुप डिस्कशन,स्पीच,क्रास कंट्री एवं शुटिंग शामिल था और सबसे अंत में इन्टरव्यू। एक मजेदार बात कहने जा रहा हूं वह जो आज चीफ जज था वो मेरे हीं यूनिट के नये कमांडिंग ऑफिसर थे जिन्हें मैं नहीं पहचानता था कारण सी सर्टिफिकेट पास कर जाने के बाद मैंने वीकली परेड जाना छोड़ दिया था। उसने इन्टरव्यु में मुझसे पूछा - तुम्हारे सी. ओ. का क्या नाम है? मैंने बड़े विश्वास के साथ उत्तर दिया था,"सर मेजर एस एस सिन्हा।" उन्होंने मुस्काते हुए कहा था - वो तो ट्रांसफर होकर 45 बेंगाल बटालियन जा चुके हैं"

"सारी सर, आय डोंट नो"

कम्पटिशन समाप्त होने के पश्चात मेरा नाम इनरोल्ड करने वाले जे सी ओ ने बताया कि मेरा सब कुछ ठीक-ठाक है और इन्टरव्यूह लेने वाला हीं मेरे बटालियन का नया सी ओ है। कुछ सेकेंड के लिए घबड़ाया पर बहुत जल्द हीं सहज हो गया। हम सभी प्रतिभागियों में 9 बंगाल का एक और अन्डर ऑफिसर था जिसकी पर्सनलिटी बड़ी अच्छी थी और उसे हीं आज का बेस्ट कैडेट हम लोग मान रहे थे। वैसे तो प्राय: मुझे साथ लेकर चार जन थे जो अपने को उस मेरिट लिस्ट से बाद फैसला कर लिया था। मैं अकपट होकर कह सकता हूं कि बीना तैयारी के कम्पटिशन क्वालिफाई नहीं किया जा सकता है पर लड़ाई न लड़ कर पराजय स्वीकार करने वाला नहीं था। अतः बाकियों की हृदय की धड़कन बढ़ती जा रही थी क्योंकि परिणाम घोषित होने वाली थी। अप्रैल का सूर्य पश्चिम क्षितिज की ओर क्रमशः कदम बढ़ा रहा था और मौसम जैसे हम सब पर शायद क्रोधित था तापमान सातवें आसमान पर। यद्यपि बड़े-बड़े पेड़ थे पर उनके तरु पल्लवों को जैसे किसी ने हिलने से मना कर दिया था। चारों ओर निरवता छा गई थी यहां तक कि पक्षियों की चहचहाहट तक थम गया था और हम सभी पसीने से लथपथ थे। सर से लेकर पैर तक चिपचिपाहट। समय पर परिणाम घोषित हुआ। विजय श्री ने मेरा वरण किया तथा 9 व 14 बंगाल के सेकेंड और थर्ड बेस्ट कैडेट घोषित किए गए। बाधाओं से लड़ने से मनुष्य के कठोर परिश्रम, धैर्य और साहस, निष्ठा एवं सूझबूझ की परीक्षा होती रहती है और इसमें जो उत्तीर्ण होकर सफलता की सीढ़ी पर कदम रखने वाले होते हैं उनके आनन्द को वही अनुभव कर सकता है जो जीवन में किसी न किसी युद्ध में भाग लिया हो।

हर खुशी के साथ दु:ख का गहरा संबंध है इसकी घंटी यहीं पर मेरे लिए बज गई। जब परिणाम घोषित हुआ उसी समय हम सबको कहा गया कि मई के फर्स्ट वीक में हम घोषित विजेताओं को स्पेशल ट्रेनिंग दी जाएगी जो ग्रूप हेडक्वार्टर में होगी। अतः सभी को समय व स्थान बता दिया गया । उसके बाद नैहाटी वापसी के लिए प्रस्थान किया। जिस दिन रिपोर्टिंग थी मैं दो लोकल ट्रेन का समय हाथ में लेकर घर से रवाना हुआ और नैहाटी स्टेशन पहुंच गया पर आश्चर्यचकित कारण छात्रों ने ट्रेनों की आवाजाही पर रोक लगा दी थी। रेलवे प्रशासन छात्रों को समझाने का प्रयास कर रही थी। आज की तरह मोबाइल फोन अभी बाजार में नहीं आई थी जो अपनी पोजीशन को अधिकारियों को सूचित कर सकूं। धूप की प्रखरता के साथ मेरे ललाट पर सिलवटें गहरी होती जा रही थी। फिर भी मैं निराशावादी नहीं। प्रात: साढ़े आठ से बैठे हुए दस बजने को आया और स्टेशन पर घोषित हुआ कि आप कल्याणी लोकल तीन नम्बर प्लेटफॉर्म से छुटेगी तथा ट्रेन की भोंपू बजी एवं ट्रेन धड़धड़ करने लगी। पन्द्रह मिनट लगें और मैं घोषपाड़ा स्टेशन से अपने यूनिट की ओर ग्यारह नम्बर की कार से दस मिनट में हीं पहुंच गया। चारों तरफ बड़े-बड़े पेड़ों के घेरे में शीतलता का स्पर्श पाकर कई बार गहरी सांस को फेफड़े में डाला। उसके बाद सी. ओ. को रिपोर्ट करने के लिए उसके समक्ष अनुमति लेकर खड़ा हुआ। सैल्यूट किया। विनिमय में मुझे उसने अपनी घड़ी दिखाई और कहा - "यंगमैन यू आर टू लेट"

"सारी सर। नैहाटी स्टेशन पर छात्र विक्षोभ के द्वारा ट्रेन आवाजाही रुकी हुई थी। इसलिए देर हुई"

"ह्वाट सारी-ह्वाट छात्र विक्षोभ"

"आप मेरा विश्वास करो सर"

"किस बात का विश्वास। यू डोंट नो डिसीप्लीन एण्ड यू मस्ट रिपोर्ट अर्ली इन द मार्निंग विदिन 8.30 आवर्स"

"बट वी आर इनफार्म्ड बाय यू दैट रिपोर्ट विदिन 11.00 सो आय एम नॉट लेट"

बस इतना हीं काफी था। वह मेरे उपर एटम बम्ब की भांति फट पड़ा। मुझे कुछ कहने का अवसर हीं नहीं दिया और इडियट,ब्लडी,बास्टर्ड रास्कल ऐसे सम्बोधनों का हार पहना दिया। उसके शब्दों ने मेरे अन्दर दावानल को पैदा कर दिया और मैंने भी प्रहार कर हीं दिया………

"आफिसर माइंड योर लांग्वेज।आय एम नॉट योर लस्कर हूम यू यूज टू पालिश योर शूज एण्ड आय नो वेल दैट यू आफिसर्स कम वीथ स्टुडेंट टू गेट ट्रेनिंग हाउ टू डील सिविलियन आयदर यूं हैव गाट पनिशमेंट एंड पोस्टेड इन एन सी सी।"

"शट अप एंड गेट लस्ट" वह मुझ पर झल्ला उठा।

"यू शट अप और चिल्ला क्यों रहे हो मुझे किसी की बटरिंग नहीं करना है।" और ठीक उसी समय एक पी आई स्टाफ आ गया तथा उस मेजर को सैल्यूट कर कहा - "साब जी, नैहाटी कालेज के उस कैडेट ने ज्वाईन कर लिया" यह सुनकर मैं बहुत कुछ समझ गया और कुछ न समझ पाया। मैं बाहर निकल आया तो देखा कि सुबेदार मेजर मेरे प्रति सहानुभूति दृष्टि से मुझे देख रहा है और कहा कि मजुमदार बाबु से मिल कर जाना और मेरी पीठ थपथपाई। अब मेरी इच्छा नहीं कर रही थी कि वहां ठहरूं। पर मजुमदार बाबु मुझसे स्नेह रखते थे इसी का ध्यान रख उनसे मिला। उनके नेत्र सजल थे। कहा कि पश्चाताप मत करना, तुम अपने जगह पर सही थे और मैं तुम्हारे साहस की प्रशंसा करता हूं। ये ओजी वर्दीधारी आफिसर सिविलियन को मनुष्य नहीं समझते हैं। मैंने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न की और अपमान का तरल घुंट पीकर वापिस लौट आया। अपनी क्लोदिंगस कालेज के कंपनी कमांडर मेजर भट्टाचार्य को रिटर्न कर दिया। वे मुझसे पुछते रह गए कि मेरे साथ क्या हुआ पर मैंने चुप्पी साध ली।

दो-तीन दिन तक ठीक से सो नहीं पाया। रह-रह कर उस मेजर के शब्दों ने  मेरे अन्तर्मन को यंत्रणा प्रदान किया और विचलित हो उठता था। बार-बार एक हीं भाव उठता था कि यदि उसको मुझे रीजेक्ट करना था पहले ही कह देता मैं तो परेड छोड़ दिया था और न ही एन सी सी के प्रति मेरी कोई रुचि थी। मैं स्वयं तो बेस्ट कैडेट कम्पटिशन में हिस्सा लेने नहीं गया था फिर मुझे अपमानित क्यों किया। लाख प्रयास करने के बाद भी उत्तर ढूंढ नहीं पाया। परन्तु ठीक इसके विपरीत शत्रु को छोड़ूंगा नहीं वाली जन्मजात प्रवृत्ति बलवती होने लगी। ऋतु परिवर्तन हो चुका था। धरती की तृष्णा को शांत करने के लिए बौछारें लगातार हो रही थी। पर मेरी मृगतृष्णा शांत होने का नाम नहीं ले रही थी। मैंने अपना मन फर्स्ट ईयर की तैयारी में प्रवृत्त  तथा बेकारत्व को मिटाने पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन वर्तमान समय में कर्म संस्थानों की कमी नहीं है पर आप वहां कैसे पहुंचोगे। वहां जाने के लिए आपको कार्य ज्ञान, अनुभव, प्रमाणपत्र होना चाहिए साथ में सिफारिश व्यक्तिगत संपर्क, राजनैतिक जोर भी रखना होगा। उपर से यदि परिवार के साथ विरोध हुआ तो रही-सही कसर भी पूरी हो जाएगी और परिणाम भूखे पेट लड़ने की नौबत आ जाती है। अतः आप का उद्देश्य आप को चिढ़ाने लगेगा। मैं प्रतिदिन सुबह जागता तो सोचता कि आज शायद कोई व्यवस्था हो जाएगी पर मन मसोस कर रह जाता था। मेरे मित्रों में से कुछ ऐसे थे जो कुछ जुगाड़ू की व्यवस्था कर आय करने लगे थे। उन लोगों के साथ समय देना शुरू किया ताकि हाथ का कोई काम सिखा जा सकता है और इसमें सफलता मिली एवं हाथ खर्च की व्यवस्था हो गई। चुंकी मैं कोई नशा नहीं करता था इसलिए उन पैसों से कम से कम एक वक्त का भोजन व कभी-कभार चाय-बिस्कूट की लड़ाई जीता। इंग्लिश पढ़ने के लिए कोचिंग मुझे फ्री आफ कास्ट मिल रही थी। विनिमय में वे मुझसे एन सी सी का लेटर या कोई अन्य पेपर वर्क या किसी कैडेट को उनके बताए स्थान पर पहुंचा दिया करता था। एक दिन उन्होंने कहा कि "तुम्हें मेरा एक महत्वपूर्ण कार्य का दायित्व लेना होगा क्योंकि वह मेरे सम्मान की रक्षा का प्रश्न है"। मैंने हामी भर दी। परन्तु उस समय मेरे पैरों की नीचे की मिट्टी खिसकती सी लगी। मुझे बताया गया कि हमारे कालेज में एक और एन सी सी की यूनिट आ रही है और इसका ऑफिस-इन-चार्ज का दायित्व मैं लूं तथा अगले दिन से नये कैडेटों का इनरोलमेंट शुरू कर दूं। मैंने भट्टचार्य सर के सामने एक शर्त रख दी " ठीक है सर, मैं आपके आदेश का पालन करूंगा पर यूनिफॉर्म नहीं पहनूंगा।

" यह तो परिस्थितियों पर निर्भर करेगा और हो सकता है तुम्हें कुछ मन की आग बुझाने का अवसर प्रदान कर दे।" इस कथन ने वास्तव में फिर से एक बार अप्रैल माह की अपमान की ज्वाला में घी डाल दिया। जो भी हो मैंने अपना कार्य भार संभाल लिया। चूंकि कालेज में फर्स्ट ईयर के लिए छात्रों की भर्ती चल रही थी। सो मेरी N C C यूनिट 6/49 Bengal Bn के दो माह पूरे होने को था। हेड क्वार्टर से एक लेटर आई जिसमें ग्रुप हेडक्वार्टर के सी ओ साब कालेज इन्सपेक्सन पर आ रहा है। अतः मेजर भट्टाचार्य ने सारी तैयारियां  कर ली। जिस दिन ग्रुप हेडक्वार्टर के सी ओ आने वाले थे मुझे पूर्व सूचना मिल चुकी थी कि कर्नल एम एम बर्मन छुट्टी पर है और उनके स्थान पर मेरे यूनीट के सी ओ को चार्ज मिला है। अतः मैंने सोच लिया था कि मुझे क्या करना है। इन्सपेक्सन की तैयारी में मैंने कोई कमी नहीं रखी। निर्धारित समय पर ग्रुप हेडक्वार्टर की गाड़ी आई बीना कैप पहने हीं आगवानी मैंने किया तथा कालेज की ओर से सैल्यूट दिलवाया उसी कैडेट के नेतृत्व में जिसको ट्रेंड करने के लिए मुझे रिजेक्ट किया गया था। जिस समय वह ग्राउंड से थर्ड फ्लोर की ओर जा रहा था पता नहीं क्या सोच मुझसे बड़े प्यार से पूछा "कुमार बेटे, ह्वेयर आज योर कैंप?"

" सर,आप हीं ने तो पिछली बार मुझे ईडियट,ब्लडी बास्टर्ड - रास्कल कहा था" एक पल भी विलंब न करते हुए ज़बाब दिया। एक सेकेंड के लिए ठहर गया और मेरे चेहरे को देखा जबकि मैं मुस्कुराया। अब हम दोनों को नीरवता ने कैद कर लिया और मेजर भट्टाचार्य के आफिस तक पहुंचा मैं अपनी यनीट के रूम में दो महीने के सारे पेपर्स वर्क एवं

फाईलें टेबल पर रख दी। सब कुछ देख कर शायद वह खुश था। मेजर भट्टाचार्य भी साथ में थे। उन्होंने मेरे सामने हीं मेरी प्रशंसा कर दी "आज आपने जो कुछ देखा वह सब इसी का नेतृत्व में हुआ है"

" यू आर राइट,आय वान्ट हीम इन स्पेशल ट्रेनिंग कैंप बीफोर पी आर डी - 1"

" कुमार,कम टू मी ऐट स्पेशल कैंप"

वह जाते - जाते कहा पर मैंने चुप्पी साध ली। इन्सपेक्सन, समाप्त होने के पश्चात भट्टचार्य सर ने मुझे बताया आखिर तुमने सबके सामने उसे सैल्यूट नहीं देकर ट्रीट पर टैट दिखा दिया।

समय न जाने कैसा खेल खेलता है, मनुष्य उसकी कल्पना तक नहीं करता है। दोस्तों के साथ रह कर जो दो रुपए की व्यवस्था हुई थी लगातार बारिश ने उसे बहा दिया और मेरे सामने पुनः पेट की आग दबाव बनाने लगी और मुझे अंतिम विकल्प के रूप में एन सी सी कैंप ज्वाइन कर लेना उचित लगा। और मैंने किया भी यही। अगस्त के बरसात एवं गर्मी की तपिश की तुलना करना बड़ा हीं कठीन कार्य है। मिनटों में ऐसी झमझम जैसे पल भर में प्रलय हो जाएगी पर बारिश थमते देर नहीं की आप पसीने से भीग कर लथपथ। गगन से रवि आंख-मिचौली खेलेगा और उसका सहयोगी बादल सबको मूर्ख बनाता रहता है। न चाहते हुए भी कैंप में शामिल हो गया। हमारा कैंप स्थल कोई ज्यादा दूर नहीं बल्कि कल्यानी एन भी एफ ट्रेनिंग सेन्टर जो बड़े-बड़े पेड़ों से घिरा हुआ, एकदम शांत। सदैव पक्षियों का कलरव व हरियाली की प्राचीर से न जाने क्या-क्या अपने अन्दर छिपाते हुए हम कैडेटों को स्पेशल ट्रेनिंग लेने में अपनी भागीदारी रखी। दस दिन की ट्रेनिंग समाप्त होने के दो दिन बाद ही पी आर डी-1शुरु हो जाएगी। अतः घरवालों से मिलने के लिए मात्र एक दिन का अवकाश मिला। परन्तु सबके लिए घर जाना संभव नहीं था। इसका कारण था गत दस दिनों की जो कैंप थी वह कल्यानी ग्रूप के सीलेक्शन हेतु इन्टर बटालियन कम्पटिशन जिसमें योग्यता के आधार पर इन्टर ग्रूप कम्पटिशन के लिए सीलेक्ट करना था। ज्यादतर कैडेटों का घर एन भी एफ ट्रेनिंग सेंटर बहुत दूर। उस बरसात के प्रहार के कारण मेरी दो रुपए की आय के चक्कें में ब्रेक लग कर चों-चां की ध्वनि ने मुझे परेशान कर रखा था। जीवन की परिस्थितियों से लड़नेवाला मैं अगले पड़ाव पर चयनित कर लिया गया था। इसलिए प्रसन्नचित हृदय के साथ घर आया लेकिन भोजन मिलना तो दूर किसी ने मेरी ओर देखा भी नहीं और मुझे लगा कि इन लोगों के लिए एक अपरिचित हूं। सो भारी कदमों से अपने पाड़ा के बाल्य-बंधुओं से मिलने निकल पड़ा।‌ जिन मित्रों के साथ रह कर काम करता था उनसे मिला मुझे बताया कि पूजा के बाद फिर से तुम्हारा रोजगार होगा तथा मेरे बारे में जानना चाहा। जब मैंने उन लोगों को अपने दिल्ली चलो की पहली पड़ाव पार कर ली के विषय में बताया तो मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए आनन्द से झूम उठे और रीपब्लिक डे कैंप अटैण्ड शुभकामनाएं दी। वैसे मेरे मित्र सभी जानते थे कि मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। एक ने उसके घर पर भोजन करने को कहा जिसे सहर्ष स्वीकारा। शाम को वापस कैंप में लौट आया। रोल काल के समय रिपोर्ट हो गई। कैडेट साथियों के बीच सदैव खुश रहता था परन्तु मन के किसी कोने में कांटा चुभता रहता था, कैंप के बाद मेरा क्या होगा। किसी से अपने हृदय की धड़कन को बांट नहीं सकता था। अपने जीवन युद्ध में मेरे उपर चारों से आक्रमण हो रही थी लेकिन मैंने पराजय स्वीकार नहीं किया। लड़ते-लड़ते बाधाओं को पार करता हुआ पी आर डी-3 और 4 के लिए भी चयनित हो गया। इन दोनों कैंपस की ट्रेनिंग कलकत्ता फोर्टविलियम में होनी थी। उससे पूर्व हीं मेरे पाड़ा के एवं कालेज के क्लासमेट मूझसे मिलने आए तथा मेरा उत्साह बढ़ाने का कार्य किया। जब वे मुझसे विदा लेकर जाने लगे तो कहा कि तुम्हारे उपर हम सभी गर्वित हैं।

इस कैंप का हिस्सा मेजर पुरी( मेरे यूनीट का सी ओ ) नहीं था। परन्तु मेरे विषय में सभी जानकारी एवं विश्वास रखता था। जिस दिन फ्लैग एरिया के लिए चेरी ब्लॉसम ट्रॉफी कलकत्ता डी जी को दी जाने वाली थी उस दिन आडिटोरियम में भी आई पी गैलरी में वह भी उपस्थित था जब भी आई पी के हाथों से मैंने ट्राफी ग्रहण की तालियों की गड़गड़ाहट में दो हथेलियां मेजर पुरी का भी था एवं सम्मान समारोह के पश्चात सबसे पहले उन्होंने हीं मुझे शाबाशी एवं बधाई दी -" आय एम प्राउड ऑफ यू कुमार "

इस कैंप से जुड़ी दो अन्य छोटी घटनाओं का उल्लेख न करना मेरी बहुत बड़ी भूल होगी कारण मेरी योग्यता का आकलन करने वाले दो जोड़ी चक्षु भी थे। इनमें से एक थे लेफ्टिनेंट कर्नल एस एस सिन्हा जो पी आर डी के चीफ सिलेक्टर ( मेजर पुरी से पहले मेरे यूनीट के सी ओ ) और दूसरी पर्सनलिटी कर्नल एम एम बर्मन ( कल्यानी ग्रुप के सी ओ एवं कलकत्ता डायरेक्टोरेट के पी आर डी  कोआर्डिनेटर)। इनमें पहले मैं सिन्हा साब के उस व्यवहार के विषय में लिख रहा हूं - पी आर डी - 2 में एक दिन सुबह साढ़े आठ बजे से ड्रील प्रेक्टिस शुरू हो गई थी एक घंटे में सारे कैडेटों की बत्ती बुझ जाती है। इसके पश्चात रायफल ड्रील होगी। सारे कैडेट्स रायफल लेने के लिए आए थे पर थोड़ा ज्यादा रीलेक्स का अवसर लेने के लिए पहले हीं हम पहुंच गए,हम कहने क अर्थ समय कटाने के लिए किसी गर्लस् के साथ जोड़ीहीन कैडेट्स।  एम्यूनिशन - इन - चार्ज अभी नहीं आया था, सो हमलोग कोत के निकट हीं बुढ़े दरख़्त के छाए में घास पर पसर कर पी आई स्टाफ को गाली देने की प्रतियोगिता कर रहे थे। क्रमशः अन्य ब्वायज एण्ड गर्ल्स कैडेट भी आ गए और वे हमसे दूरियां बना कर रेस्ट करने लगे क्योंकी उन्हें पता था कि हमलोग छंटे हुए थे। कभी अचानक धमाकेदार गर्मी एवं अचानक मेघों की गड़गड़ाहट के साथ उसके मशीन गनों की गोलियां भागकर किसी शेड के तले आश्रय लेने का मौका भी नहीं देती है। इन दोनों के बीच पी आई स्टाफ मार्निंग ब्रेकफास्ट का कचूमर निकाल देता है। ऐसे में स्वाभाविक ही क्रोध से कुछ कैडेट्स मुंह पर हीं गालियां तो कुछ मुंह पीछे दिया करते थे। परन्तु हमें ड्रील प्रेक्टिस कराने वाले स्टाफों की असीम धैर्य प्रशंसा के योग्य हैं क्योंकि वे लोग सब सुनकर हंसते हुए अपने कर्तव्य का पालन कर रहे थे। हममें से कई कैडेट्स जमीन पर चारों ओर हाथ-पैर फैलाए लेटे हुए थे। अचानक सारे कैडेटों में फिसफिस व हड़बड़ी मच गई " सिन्हा साब आ रहें हैं - सिन्हा साब " और साधारण तेज कदमों से चलता हुआ हमारे निकट आ पहुंचा साथ में मेजर पुरी भी था। सिन्हा साब लगभग छः फीट चार इंच तथा साथ में पांच फीट दस इंच का व्यक्तित्व। कैडेटों में गूड मार्निंग कहने की धुम मच गई। लेटे हुए कैडेटों में मुझे उठने में थोड़ी देर हो गई थी और मैं सबसे पीछे खड़ा भी था इसलिए मैंने फार्मलिटी दिखाना आवश्यक नहीं समझा। लेकिन कहा जाता है बूढ़ा बगुला को मछली बड़ी जल्दी दिखाई देती है तभी उसकी दृष्टि मुझ पर पड़ ही गई और " हैलो कुमार, हाउ आर यू " कहता हुआ एकदम मेरे सामने खंभे की भांति आ खड़ा हुआ और मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा। प्रत्युत्तर में मैंने एड़ी बजाकर सैल्यूट किया " जय हिन्द सर" पर मैं भूल गया था कि मेरा कैप मेरे सर पर नहीं है। फौरन हीं उन्होंने मेरे दूसरे हाथ से कैंप लेकर मुझे पहनाकर " नाउ यू आर लूकिंग सो टचवूड " उधर मेजर पुरी की दृष्टि पैनी नजर मुझे देख रही थी। लेकिन जो भी होता है अच्छा हीं होता है। सिन्हा साब ने मेजर पुरी को कहा मेजर पुरी ही इज योर पैंथर,इम्पासिबल को पासीबल बना देता है।" मेजर पुरी के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई। परन्तु मैं झेंप गया तथा मेरे साथी कैडेट्स के थमती धड़कन नार्मल हो गई उसके बाद सिन्हा साब ने सारे कैडेटों को " भेरी गूड। यू आल आर एनरगेटिक एण्ड भी पैशेन्सफुल। दिल्ली अभी दूर है। सो केयरफुल। ओ के कैरीआन" कहकर दोनों आफिसर वहां से मूव कर गए। उनके जाने के पश्चात मेरे साथियों ने मुझे कांग्रेचुलेशन देने का होड़ लगा दिया। मेरी पीठ थपथपाई। उस दिन बहुत ज्यादा रोमांचित था मैं। इतना कि शब्दों में वर्णन नहीं कर सकता हूं। मेरे साथी कैडेट्स के धड़कने बढ़ने का कारण था मेरे द्वारा डोंट केयर वाला स्वभाव जिसका प्रमाण था ट्रेनिंग के दौरान कई पी आई स्टाफ एवं अन्य आफिसर्स से मैं उलझ पड़ा था और वो लोग मुझे क्या मूवमेंट आर्डर देंगे मैं हीं धमकी दे दिया था मूझे मूवमेंट आर्डर चाहिए मेरे को दिल्ली नहीं जाना है।

दूसरी घटना है कर्नल एम एम बर्मन का जो कुछ इस प्रकार घटी:- दिल्ली आर डी कैंप एन सी सी कैंप ना हो कर मिनि इण्डिया का जीवंत प्रतिमूर्ति बन जाती है जहां इण्डिया के सभी प्रांतों से कैडेटों का मिलन जैसे नदियों का संगम स्थल हो किसी का कोई व्यक्तिगत पहचान नहीं रहता है उस महासागर का अद्भूत सौंदर्य ने सबको अपने में समाहित कर लिया है जहां सबका एक ही परिचय " हम सब भारतीय हैं अपनी मंजिल एक है "। तो ऐसे सागर का एक बिंदु मैं भी था यह लिखते समय स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। जनवरी महीने में दिल्ली का मौसम अन्य अंचलों की अपेक्षा अनन्य होता है। मेरे प्रांत की राजधानी कलकत्ता में ठंड से कष्टमुक्त रहता है जबकि दिल्ली ठंडी कुहासे में दुल्हन की भांति घूंघट ओढ़े रहती है और दिनकर छिपकर शायद उस नवेली वधु को देखने के लिए व्याकुल हो जाता है। ऐसे मौसम में फ्लैग एरिया कम्पटिशन के लिए रात को भी जागकर मिट्टी, पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े, रंग,काष्ठचूर्ण, भूसा आदि से खेलता पश्चिम बंगाल, सिक्किम,अन्दमान का भौगौलिक चरित्र को उकेरने का प्रयास करता था। ठंडी हवा एवं कुहासे ने मुझसे प्रेमालिंगन कर उपहार में सर्दी-खांसी दे दिया था। ठंड के कारण पैदल चलते समय पैर के तलवे दर्द करते थे। सुबह है या दोपहर का पता नहीं चलता था। यदि ड्रील में जाने की आवश्यकता होती तो यूनिफॉर्म इन विंटर क्लोदिंग्स डाल लिया नहीं तो ज्यादातर समय उलेन गारमेंट्स के ऊपर ओजी कलर का डंगरी डाले रहता था। इस कैंप के कैडेटों के विषय में ज्यादा कुछ लिखना नहीं चाहता हूं। बस इतना हीं की जो यहां केवल मस्ती करने आते हैं वे मस्ती करने के उपायों को ढूंढ़ कर कैंप एरिया से बाहर निकल जाते हैं और जो सोचते हैं कि अपनी कंटिजेंट को अच्छी पोजीशन पर पहुंचाऊंगा/पहुंचाऊंगी तो परिश्रम करते-करते अपने बारे में सोचने का अवसर हीं नहीं मिलता है। इन्ही परिस्थितियों में क्रास कंट्री कम्पटिशन की सूचना आई आफ्टर लंच लगभग तीन बजे आरंभ होगी। अतः ब्वायज एण्ड गर्ल्स कैडेट अपनी-अपनी स्टार्टिंग प्वाइंट पर रिपोर्ट करें। मैं खांसते-खांस्ते बेहाल था। एम आई रूम से मेडिसिन ली पर वह प्रेम-संबंध को तोड़ना ही नहीं चाहती थी। लंच के बाद क्रासकंट्री! बड़ा क्रोध आया मैनेजमेंट करने वालों पर लेकिन कोई उपाय भी तो न था कुहासे का भिजीबिलिटी रूप देखकर ही तो ऐसा निर्णय लिया गया। फलत: कैडेटों को छ: कि. मी.की दौड़ लगानी हीं होगी। मैं अपने कंटिजेंट का थर्ड रनर था सो अन्य कंटिजेंटों की भांति हम तीन रनरों पर हमारे अफसरों को अपेक्षाएं थी। वैसे हम तीनों की टाइमिंग भी अच्छी थी जहां राष्ट्रीय स्तर पर व्यक्तिगत कोई स्टैंड कर सकता है। सभी स्टार्टिंग प्वाइंट पर रिपोर्ट कर चुके थे। सभी सोलह कंटिजेंट के अफसर अपने कैडेटों का उत्साहवर्धन करने के लिए उपस्थित थे। प्रतियोगिता की ह्विसल बजने व फ्लैग दिखाने में देर थी और हमारे कंटिजेंट कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल की कपुर एवं कोऑर्डिनेटर कर्नल एम एम बर्मन वहां पहुंच कर कैडेटों का उत्साहवर्धन किया अचानक मेरी खोज की। मैं उनके सामने खांसता हुआ उपस्थित, मुझे देख उन्होंने मुझसे कहा " कुमार बेटे डोंट ट्राय फार इन्डिभिजुअल बट ट्राय टू लीड योर कंटिजेंट इन ए गूड पोजीशन।"

" बट सर,हाउ आय……." मैं खांसने लगा।

" कुमार आय नो इट्स वेल बट इट इज यू कैन डू दिस जाब"

" ओ.के. सर। आय शैल ट्राय ………" और दौड़ की शुरुआत के लिए फ्लैग दिखाया जा चुका था। दौड़ की शुरुआत हुई गाय-भैंस की झुंड की तरह जिसमें सभी आगे की ओर भाग रहे थे यदि कोई गिर पड़ा तो उसके उपर से छलांग लगा या शायद रौंद कर निकल जाना चाहते हो। बस भागो-भागो, और तेज-और तेज। धीरे-धीरे दूरियां बढ़ने लगी तो गिरने की संभावना कम हुई पर जान-बूझकर गिरा देने वालों की संख्या कम न थी। मैं भी भाग रहा था पर मैंने अपनी स्पीड को नियंत्रित कर अन्य साथियों को उत्साहित करने लगा। किसी का हाथ थाम कुछ दूर तक खिंचा तो किसी को गालियां देकर तो किसी के गर्लफ्रेंड के ऊपर कमेंट्स कर दौड़ने में सहायता की। मेरी खांसी ने भी साथ दिया कारण था खांसने की जो खुश खुशी गले में खराश पैदा की थी दौड़ के पहले चरण में उसमें कमी आ गई थी। दौड़ते-दौड़ते जब मुझे लगा कि अब मेरे साथी कैडेट्स अच्छी ग्रुप पोजीशन पर आ चुके हैं तब मैंने अपनी स्पीड बढ़ाई और उन्चालिसवां स्थान पाकर फिनिशिंग प्वाइंट पार कर गिर पड़ा। एवं जिन हाथों ने मुझे सहारा देकर खड़ा किया वह कर्नल बर्मन का था। उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई तथा उनके साथ अन्य आफिसर्स जिन्हें मैं नहीं पहचानता था " भेरी गूड ब्वाय एण्ड गुड लीडर" कहकर मेरे सर को सहलाया। शाम को जब हमलोग सी एस डी कैंटीन में इकट्ठे हो गप्पे मार रहे थे प्राय: सबने मेरे सहयोग के लिए थैंक्स कहा तो मेरा हर्ट फुलकर फुटबॉल हो गया था और खुलकर मेरे प्रति अपनी ईर्ष्या व्यक्त की सारे आफिसर्स तुम्हें लीडर मानते हैं और हमें विश्वास ही नहीं होता है कि ये आफिसर्स इतने सफ्ट हर्टेड होते हैं जबकि हम लोगों को लगता है कि कैडेटों के प्रति कठोर होते हैं। परन्तु मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई, चुप्पी लगाए ठहाके का साथ दिया।



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