लें जनरल सगत सिंह
लें जनरल सगत सिंह
भारतीय सैनिकों के विषय में कहा जाता है कि ग्रीक आक्रांता अलक्षेन्द्र अर्थात अलेक्जेंडर ने कहा था भारतीय सैनिक आंधी-तूफान होते हैं जिन्हें कोई रोक नही पाया है। इस बात का प्रमाण समय-समय पर विश्व के सामने स्वयं ही घटित हुई है। कारण भारत वर्ष का आदर्श है दूसरे की भूमि का लालच नही पर अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए लिए, कर्तव्य पालन हेतु अपना सर्वस्व त्याग देंगे। ईसा मसीह के जन्म से पूर्व से अबतक अनगिनत भारतीय सैनिकों ने ऐसी गाथा अपने रक्त से लिखा है।
लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह का जन्म 14 जुलाई 1919 को एक राजपूत सैनिक परिवार में हुआ था। इनके पिता बृजलाल सिंह ब्रिटिश शासनाधिन भारतीय सैनिक थे और माता नादौ कंवर। सगत सिंह नौ भाई-बहन में माता-पिता के प्रथम संतान थे। 1936 में इनकी स्कूली शिक्षा वाल्टर नावेल हाई स्कूल, बिकानेर में पुरी हुई तथा इन्टरमीडिएट दुंगर कालेज, बिकानेर में ही उत्तीर्ण रहे। तत्पश्चात बिकानेर गंगा रिसाला में 'नायक' पद पर सेना में भर्ती हो गए और और अनुशासन एवं कर्तव्य पालन करने का फल प्रोमोशन पाकर 'जमादार' (वर्तमान में नायब सूबेदार) बनकर प्लाटून कमांडर पद की शोभा बढ़ाई। आगे चलकर लेफ्टिनेंट के रूप ब्रिटिश भारतीय सेना में कमिशन मिली 1941 में सगत सिंह के युनिट को सिंध के हूर विद्रोहियों का दमन करने के भेजा दिया गया तथा बाद में उस स्थान पर सार्दुल लाइट इन्फैंट्री को डिटेल कर गंगा रिसाला को इराक के बसरा में स्थानांतरित किया जहां इराकी फोर्स का नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल एडवर्ड क्युनन कर रहा था। इसके बाद सगत सिंह को मिल्ट्री ट्रांसपोर्ट कोर्स में इन्सट्रक्टर ग्रेडिंग में ट्रेनिंग लेनी पड़ी। मिल्ट्री ट्रांसपोर्ट अधिकारी के पद पर सेवाएं दी और फिर इन्हें एडजुटेंट बना कम्पनी कमांडर का दायित्व दी गई। अब इराक से ईरान में सगत का ट्रांसफर हुआ तथा हैफा मिडिल ईस्ट स्टाफ कालेज में चुने जाने वाले एक मात्र स्टेट फोर्स आफिसर की ट्रेनिंग लिए और सगत सिंह को 40वीं इण्डियन इन्फैंट्री ब्रिगेड में जनरल स्टाफ आफिसर ग्रेड 3 में तैनाती कर दी गई।
1944 ई. में सगत का ट्रांसफर क्वेटा हुआ और अपनी ही बटालियन में एडजुटेंट के रूप में नियुक्त हुए तथा 12वीं वार स्टाफ कोर्स किया। 1945 में ब्रिगेड मेजर बन कर कमांडर-इन-चीफ का दायित्व पालन किया। अब तक पराधीन भारत में एक भारतीय सेनाधिकारी तथा ब्रिटिश सेनाधिकारी की भेदभाव वाली सैन्य सेवा करते कड़वा अनुभव भी अर्जित करना पड़ा। मन में मातृभूमि की दुर्दशा को देख दुखी रहते थे और सोचते थे कम से कम एक बार भी स्वाधीन भारतीय सैनिक बन भारत माता की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त होता तो जीवन धन्य हो जाता। वह सुअवसर सगत को आखिर प्राप्त हुआ। 1947 में भारतवर्ष ब्रिटिश दासता से मुक्त हो गया एवं स्वाधीन भारत के सेनाधिकारी के रूप में दिल्ली हेडक्वार्टर एरिया में थर्ड गोरखा राइफल्स में नियुक्ति मिली साथ ही साथ जनरल स्टाफ आफिसर ग्रेड-।। पर प्रमोशन और 1950 में ब्रिगेड मेजर के पद पर रहते हुए 168वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड साम्बा तैनाती कर दी गई। यहां माउंटेन वारफेयर कोर्स अटेंड करने के पश्चात प्रेसिडेंट गार्ड की कमान संभाली। 3वर्ष ब्रिगेड मेजर रहने के बाद 1953 में सगत सिंह की पोस्टिंग 3/3 गोरखा राइफल्स के कंपनी कमांडर बन कर भरतपुर तथा धर्मशाला में ड्यूटी दी। 1955 में प्रोमोशन पाकर ले.कर्नल एवं 2/3 गोरखा राइफल्स बटालियन के कमान्ड-इन-चीफ के रूप में फिरोजपुर तैनात हुए तथा जम्मू-कश्मीर के फिल्ड एरिया में सिनियर आफिसर्स कोर्स अटेंड किया।1957 में अपनी बटालियन के साथ पुंछ एवं माहौल इन्फैंट्री स्कूल में पोस्टिंग हुई।1960 में कर्नल बनकर आर्मी हेडक्वार्टर में डेपुटी डायरेक्टर पर्सनल सर्विस में नियुक्त हुए। संग ही संग1961मे ब्रिगेडियर बन पैराशूट ब्रिगेड का कमान संभाली।
एक सैनिक के रूप में अपनी मातृभूमि की सेवा करने का सुअवसर 1961में सगत सिंह को मिला। मिलिट्री आपरेशन डायरेक्टर द्वारा आर्मी हेडक्वार्टर में सगत सिंह को नवंबर के अंत में बुलाया गया तथा गोवा मुक्त करने की योजना बनाई गई गई, जिसका नेतृत्व मेजर जनरल के.पी.कैन्डेथ के हाथों सौंपी गई। योजना इस तरह से तैयार की गई--17वीं इन्फैंट्री डिविजन की अगुवाई में सेना पूर्व की ओर से गोवा में प्रवेश करेगी और 50वीं पैराशूट ब्रिगेड उत्तर की ओर से आक्रमण करेगी। अब टार्गेट को पूरा करने के लिए 50 पैराशूट ब्रिगेड की दो बटालियन 1 और 2 आगरा से बेगमपेट एअरफोर्स स्टेशन 6 दिसम्बर को बेलगम पहुंच कर ब्रि.सगत सिंह ने ब्रिगेड हेडक्वार्टर स्थापित किया। प्लानिंग के तहत सेकेंड सिख लाई मद्रास में एलाटमेंट हुई।ब्रि.सगत सिंह के प्लानिंग के अनुसार सशस्त्र सैनिकों की 7 वीं लाइट कैवेलरी का एक स्कवार्डन ए एम एक्स-13 टैंकों का जत्था आ मिला।
गोवा मुक्ति आपरेशन प्रातः 9 बजकर 45 मिनट पर 17-12-61को शुरू हो गई। भारतीय सैनिकों की दु: साहसिक आक्रमण ने पुर्तगाली सैनिकों को खड़ा होने का मौका न देते हुए मुलीनगम शहर को दखल कर लिया।18-12-61को पैरा ब्रिगेड की तीन कालम को कूच करवाया जिसमें एक कालम पूर्वी दिशा से पण्डा एवं उसगाव पर, दूसरी कालम पन्जी और बनसतारी तथा तीसरी कालम(सेकेंड सिखलाई) को पश्चिम की ओर अंधाधुंध फायरिंग करने का आदेश दिया। अंततः गोवा पुर्तगाली शासन से मुक्त हो गया। इस प्रकार से सगत सिंह ने एक योग्य सेनापतित्व का प्रमाण दिया।
1965 में मेजर जनरल रैंक पर प्रमोशन पाकर 17 वीं माउन्टेन डिविजन के जी-ओ-सी बने। इस डिविजन को इण्डो-चीन बार्डर पर सिक्किम में ट्रांसफर किया गया। जहां चीन की सेना अपनी स्वभावानुसार बार बार सिमा का अतिक्रमण करती रहती है एवं उसकी भेड़िया चाल को 62 के युद्ध की परिणति देखकर सगत सिंह समझ चुका था चीन को एक पड़ोसी के रूप में विश्वास नही किया जाना चाहिए। उसके मन में 62 की अपमान की ज्वाला धधकती रहती थी। इन्हीं परिस्थितियों में सगत सिंह को भी उलझना पड़ा। 1967 में यही पर सगत सिंह चट्टान की भांति अड़ गया। परिणति दोनों देश की सेना आंख में आंख डालकर डट गया। चीन को 62 में मधुमक्खियों की भांति भारतीय सैनिकों को डंक मारने का चस्का लग चुका था लेकिन उन लोगों को पता नहीं था कि मधुमक्खी के छत्ते के नीचे आग जला देने मात्र से ही डंक मारना तो दूर पुरा छत्ता ही जलकर राख हो जाता है। भारतीय राजनैतिक नेतृत्व के साथ बातचीत के माध्यम से सिमा विवाद सुलझाने का आदर्श दिखना और अगले ही क्षण भारतीय सिमा का अतिक्रमण होना आम बात हो गई है। अतः देश के इस राजपूत संतान एवं गोरखा राइफल्स का खतरनाक सेनाधिकारी ने कुछ और ही करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। नाथू-ला और चो-ला सिमा पर से दोनों ही सेनाओं को वापस लौट आने का निर्णय लेना पड़ा। इस कदम से सगत सिंह संतुष्ट नहीं हुआ और वापसी के व्यूह रचना में थोड़ा सा परिवर्तन कर दिया जिसका परिणाम रात के अंधेरे में शत्रु सेना के द्वारा सीमा पार कर चौकी बनाने का सपना बालू की तरह ढह गई और कई मिनट में लगभग तीन सौ से अधिक चीनी सैनिक की बलि चढ़ गई और दुबारा अतिक्रमण की घटना नहीं घटी। और 62 की हार का प्रतिशोध लिया। यहां स्मरण योग्य है हमारे देश में देश भक्त वीरों की एक लंबी श्रृंखला वह इतिहास है परन्तु देश के शासन तंत्र की अदूरदर्शिता ही कही जाएगी छात्रों को इन वीरों की वीरोचित गाथा पढ़ने नहीं दिया जाता है।
1967 के दिसम्बर में शिलांग 101 कम्यूनिकेशन जोन के जी-ओ-सी बन मिजो हिल्स के कई आपरेशनों को अंजाम पहुंचाया। 1970 में भारत सरकार ने सगत सिंह को पी.वी.एस.एम देकर सम्मानित किया तथा लेफ्टिनेंट जनरल रैंक पर प्रमोशन दिया। अगले ही वर्ष 1971 के बंगलादेश मुक्ति युद्ध में जनरल मानेकशॉ के नेतृत्व में अपना सहयोग देते हुए मेघना नदी के पुल पर भारतीय सेना की विजय गाथा लिखकर विश्व विख्यात सेना नायकों के सूची में अपना नाम दर्ज करवाया। 1971में भारत सरकार ने लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह को पद्मभूषण प्रदान कर सम्मानित किया। यह सम्मान पाने वाले कार्पस कमांडरों जैसे जनरल टी.एन.रैना, लेफ्टिनेंट जनरल सरताज सिंह के बाद तृतीय सैन्य अधिकारी सगत सिंह मात्र है।
इस देश के महान सपूत ने 26-09-2001को दिल्ली के आर्मी हस्पिटल रीसर्च एण्ड रेफरल में अपनी मातृभूमि को अंतिम बार सैल्यूट किया।
जयहिंद
