Mukul Kumar Singh

Tragedy

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Mukul Kumar Singh

Tragedy

मजाक

मजाक

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दोनों कालेज के सहपाठी हैं। आज कई वर्ष पश्चात दोनों की भेंट लोकल ट्रेन में हो गई। अमर और अरविन्द कांचरापाड़ा कालेज से ग्रेजुएशन पुरी किये तथा एम एस सी के लिए एक ने कोलकाता यूनिवर्सिटी एवं अरविन्द कल्यानी यूनिवर्सिटी को चुना। भविष्य के सपनों को हृदय में संजोए हुए पोस्ट ग्रेजुएशन करने के पश्चात सुखी जीवन के नींव को मजबूत करने के प्रयास में दोनों हीं दोस्त अलग-अलग मार्ग पर चल पड़े। फिर कभी मुलाकात होगी ऐसा शायद सोचा भी नहीं था। ट्रेन नैहाटी जंक्शन के प्लेटफॉर्म को स्पर्श कर रही थी। अमर बोगी के दरवाजे के रड पकड़ कर खड़ा था तथा अरविन्द उसके पीछे आ खड़ा होता है तथा चौंक गया और अमर को टोका - अरे अमर, कैसे हो! पीछे मुड़कर अमर अरविन्द को देखा -

"अरे अरविन्द तू कैसा है?" तब तक ट्रेन रुक गई और यात्रियों की भीड़ एवं शोरगुल के दबाव ने दोनों को प्लेटफार्म पर उतार दिया। वर्षों के बाद एक दूसरे को देख बड़े खुश होते हैं। प्लेटफार्म पर काफ़ी की दुकान से हट ड्रिंक्स लेकर शीप लेते - लेते कौन क्या कर रहा है पूछता है। अमर ने कहा - "मैं तो सिलीगुड़ी के एक प्राइवेट स्कूल में टीचिंग कर रहा था परन्तु इस समय अपने लोकल में हीं एक प्राइवेट स्कूल में टीचिंग कर रहा हूं। अच्छा तू, मैंने तो सुना था कि किसी गवर्नमेंट लैब में टेक्निकल एसिस्टेंट हो।" 

"तुमने ठीक हीं सुना है परन्तु इस समय बेकार हो चुका हूं।"

"क्यों?"

"मैं टेक्निकल एसिस्टेंट था पर कन्ट्रैक्चुअल। प्रोजेक्ट पुरा हो गया तो जाबलेस हो गया और अभी जाब ढूंढ रहा हूं। सहपाठी के साथ मुलाकात होने पर जो खुशी चेहरे पर छाई थी वह पल भर में अदृश्य हो मुरझाए फूल की भांति हो गई।" अमर इस अन्तर्मन् की वेदना कि बराबर का अनुभवी था। अतः दोस्त के निराशा को पास फटकने नहीं दिया एवं कहा - 

"टीचिंग करोगे?"

"क्यों नहीं पर मिले तब न।"

"तो सुनो मैं जिस स्कूल में टीचिंग कर रहा था वहां केमिस्ट्री टीचर की आवश्यकता है। बस असुविधा है वह स्कूल रेसिडेंशियल है। बीस से बाईस की सैलेरी तथा फूडिंग - लजिंग फ्री। एप्लाइ करो।" अंधे को और क्या चाहिए मात्र आंख हीं न, हृदय के तारों में खुशी की तरंगें दौड़ गई फिर भी गगन में पुर्ण निलीमा कहां रहती है कहीं न कहीं काले बादल छाए रहेंगे। बिल्कुल ऐसा हीं अरविन्द के मानसपटल पर भी उभरी।

"परन्तु अमर टीचिंग के लिए बी एड तो मैंडेटरी है जो मेरे पास नहीं है।"

"अरे तू पहले एप्लाई तो कर। ये कोई सरकारी स्कूल थोड़े हीं है। यदि बुलाया तो जाना नहीं बुलाया तो नहीं।"

"ठीक है आज हीं एप्लीकेशन आन लाइन भेजूंगा।"

दोनों मित्र एक दूसरे की पीठ थपथपाई और साथ ही साथ प्लेटफार्म से प्रस्थान। इनके साथ कदम मिलाते हुए लोकल ट्रेन अप प्लेटफार्म से भोंपू बजाते हुए प्रस्थान किया। भीड़ एवं शोरगुल के बीच से रास्ता बनाते हुए दोनों मित्र अपना रास्ता बनाते हुए जंक्शन से बाहर निकल आए। घर आकर अरविन्द रात को भोजन के पश्चात लैपटाप लेकर शयनखाट पर बैठ अमर द्वारा दिए गए वेवसाइट पर सर्च किया तो वाकई में उस स्कूल में टीचर की आवश्यकता थी और झटपट अरविन्द ने आनलाइन आवेदन जमा कर दिए वो अपना सी भी एटैच्ड किया। कई दिनों तक कोई रेस्पॉन्स नहीं था और अंत में एक दिन अरविन्द के ईमेल पर मैसेज आई इन्टरव्यू के लिए तो सामने समस्या थी आने-जाने में तो अच्छी खासी रुपए खर्च होंगे, आएगा कहां से? अभिभावक तो मां है जो कि प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने का कार्य करती है। पिता नाम मात्र का है जिसे घर - परिवार की कोई परवाह नहीं है। अपनी दुनिया में खोया रहता है। बाहरी जगत में लोकप्रिय है पर घर पर मुंह काला तथा जुवां पर ताला। इसलिए स्कूल आथोरिटी से अनुरोध किया भर्विली इन्टरव्यू के लिए एवं स्कूल आथोरिटी ने अपनी स्वीकृति दे दी।

तीन-चार दिनों के बाद इन्टरव्यू के डेट व टाइम बता दी। निर्धारित समय पर स्कूल आथोरिटी के डायरेक्टर ने इन्टरव्यू लिया और वह क्वालीफाई कर लिया। उसके बाद डायरेक्टर ने सैलेरी एवं अन्य शर्तों को बता दिया साथ हीं यह भी कहा कहा कि मैनेजिंग कमिटी आपको बुला लेगा। मन बड़ा प्रफुल्लित था और अब अपेक्षा थी बुलावे की। हृदय में एक अस्थिरता उत्पन्न हो गई कि चलो यदि नियुक्ति हो गई तो मां को अब ट्यूशन नहीं करने देगा। देखते देखते दस दिन बीत गए परन्तु बुलावा न आया। सागर में उफ़ान भी शांत हो मंद मंद तट पर अटखेलियां करने लगा। निराशा अपना साम्राज्य का विस्तार करता जा रहा था। दो सप्ताह बाद अमर फोन किया - "क्या अरविन्द कब ज्वाइन करोगे?"

"अभी तक कोई मैसेज भेजा हीं नहीं और तुम कहते हो ज्वाइनिंग!

पता नहीं कब अवसर मिलेगा ताकि कुछ कमा सकूं। कितने बार नौकरी के लिए परीक्षाएं दी है परन्तु कुछ परीक्षाएं स्थगित कर दी गई या रिजल्ट घोषित हीं नहीं हुआ। न तो राज्य के और न केन्द्र सरकार को शिक्षित बेरोजगारों की चिंता है। उन्हें तो केवल वोट की चिंता है। राजनैतिक दलों के नेताओं को एक-दूसरे का विरोध तथा सत्ता को कैसे पकड़ कर रखेंगे बस इतना हीं ध्यान -ज्ञान है। अमर भी वर्तमान परिस्थितियों से अवगत था क्योंकि वह भी तो इस निष्ठूर व्यवस्था का शिकार था। अन्तर इतना हीं था कि उसे जाब तो मिल जाती है लेकिन स्थायी नहीं हो पा रहा था। किसी भी कर्मक्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा चार महीने से अधिक नहीं टिक पाया। इसलिए वह अरविन्द को किसी भी कर्मक्षेत्र में नियुक्त कर सके ऐसा प्रयास कर रहा था।"

दोनों बंधु फोन पर बातें करके मन को हल्का करने का कोशिश कर रहे थे। बातों के अंत मे अमर कल्यानी स्थित सी बी एस ई बोर्ड के अधीन कोई नारायणा स्कूल का पता एवं कान्टैक्ट नम्बर दिया और टीचिंग के लिए एप्लाई करने को कहा। अरविन्द आनन-फानन में स्कूल से कान्टैक्ट किया। स्कूल से भी पाज़िटिव रेस्पॉन्स मिला जिसमें उसे नेक्स्ट डे दस बजे सी भी एवं सारे डाक्यूमेंटस् लेकर रिपोर्ट करने को कहा। अगले दिन अरविन्द पौने दस बजे स्कूल के आफिस में रिपोर्ट किया। आफिस के बाहर बैठने को कहा गया। ठीक जब दस बजे और प्यून ने अन्दर जाने को कहा। अन्दर जाकर अरविन्द अपने को अपमानित पाया कारण उसके सामने बैठा स्टाफ बताया कि "आय एम वेरी सॉरी आपसे पहले एक कैन्डिडेट नौ बजे आया और हमलोगों ने उसे बुला कर उसका इन्टरव्यू लिया जिसमें वह ही इज सटिसफाईड टू अस एण्ड वी सेलेक्टेड हिम।" 

अरविन्द ने कहा, "लेकिन आपने तो मुझे दस बजे बुलाया फिर आपलोग एक घंटा पहले कैसे इन्टरव्यू ले लिया।" 

"वो यंगमैन डोन्ट वरी एबाउट इन्टरव्यू। वी विल एगेन काल यू इन नवम्बर।"

अरविन्द की आत्मा बुरी तरह से आहत हो गई और वह आफिस से बाहर निकल आया तथा अमर को फोन पर सारी बातें बताई। अमर ने उसे दिलासा दी, चिंता मत करो कहीं न कहीं तुझे अवश्य जगह दिलाऊंगा। आज अरविन्द को पुनः रोजगार ने धत्ता बता कर निकाल दिया और बोझिल क़दमों से घर लौट आया। इसके बाद लगभग एक सप्ताह पश्चात सिलिगुड़ी के स्कूल से मैसेज आई कि आप टीचिंग के फाइनलाइज के लिए नेक्स्ट मन्डे बीफार वन पी एम रिपोर्ट करो। ज्यादा समय भी नहीं है। ट्रेन में सीट मिलेगी या नहीं। सर्च करके देखा तो किसी भी ट्रेन में सीट नहीं थी। केवल एक ट्रेन में में मिलेगी पर उसका फेयर अधिक है जो इस वक्त उसके पास नहीं है। घर पर मां -पिताजी से बात करता है। मां कहती है कि ठीक है व्यवस्था कर दूंगी। पर उसे तो टिकट अभी बूक करनी होगी। बाद में सीट नहीं मिलेगी। आखिर एक मित्र ने रुपए की व्यवस्था कर दी। टिकट बुकिंग हो गई तथा निर्धारित जर्नी डेट पर कोलकाता स्टेशन पहुंचा। ट्रेन तक छोड़ने के लिए मां एवं उसके पिताजी के दो छात्र आए थे। अवधारित समय पर वह स्पेशल ट्रेन कोलकाता स्टेशन के प्लेटफॉर्म को टाटा-बाय-बाय कर गंतव्य स्थल की ओर पटरियों पर दौड़ने लगी। ए सी बोगी में सवार गर्मी का कोई अहसास नहीं होता है। अगले दिन सिलिगुड़ी प्रातः आठ बजे पहुंच गया। रिपोर्टिंग आवर्स एक बजे है। वेटिंग रूम में जाकर फ्रेश अप हुआ और फिर वहां से सिलिगुड़ी बस टर्मिनल की ओर प्रस्थान किया। बस पर अपने लिए सीट बूक करवा सवार हो गया। मन में आनन्द तरंगायित थी चलो आज के बाद बेकार नहीं रहेगा। न जाने कितने कल्पनाओं को वास्तविक रूप में रुपायित होते हुए देख रहा था पर उसे क्या पता था कि यहां भी उसका मजाक उड़ाया जाएगा। बस टर्मिनल से स्कूल पहुंचने में डेढ़ घंटे लगेंगे। परन्तु बस तो इतनी स्पेशल निकली कि साढ़े तीन घंटे खा गई। शरीर का कबाड़ा निकाल कर रख दी। खैरियत इतनी हीं थी बस एकदम स्कूल गेट पर आकर रुकती है। इसलिए ट्राली लेकर ज्यादा ग्यारह नम्बर की बस नहीं पकड़नी पड़ती। बाहर से हीं स्कूल की विशाल अट्रेक्टिव बिल्डिंग देख काफी प्रभावित हुआ। कई एकड़ जमीन पर स्कूल बनाई गई थी,देख कर यह साबित हो गया ऐसा स्कूल स्टुडेंट हास्टल एवं रेसिडेंशियल टीचर के लिए वेल डेकोरेटेड है। जब अरविन्द अन्दर प्रवेश किया तो जिसे भी देखा वह उसके प्रति अच्छी रेस्पेक्टिव दृष्टि एवं व्यवहार के साथ ट्रीट किया। आफिस के प्यून ने बताया कि सर, आप अन्दर जाकर बैठो। टीचर इन्चार्ज आप से बात करेंगे।

ठीक है। थैंक्स। लगभग आधे घंटे बाद टीचर इन्चार्ज का आगमन हुआ। अरविन्द एवं टीचर इन्चार्ज के मध्य अभिवादन शिष्टाचार पुरी हुई तत्पश्चात टीचर इन्चार्ज अरविन्द की सारे डाक्यूमेंटस् एवं सी भी चेक किया। उसके बाद अरविन्द के चेहरे को पढ़ने का प्रयास किया जिसकी शुरुआत होती है - "आपका सारा परफॉर्मेंस इम्प्रेसिव है परन्तु आपने तो बी एड नहीं किया है।"

"जी आप सही कह रहे हो परन्तु मैंने अपनी सी भी में पहले हीं मेन्सन्ड कर दिया था आय एम पी एच डी होल्डर एण्ड हैवेन्ट बी एड और मेरी सी भी देखकर हीं मेरा आनलाईन इन्टरव्यू लिया गया था। इसके बाद हीं आज आपके सामने रिपोर्ट करने का इ-मेल पर मैसेज मिली और मैं आया। यदि ऐसी बी एड मैंडेटरी है तो मुझे बुलाया क्यों गया? नहीं बुलाना चाहिए था।

सम कन्डीशन्स आर नेसेसरी एण्ड आल सी बी एस ई बोर्ड के स्कूल हो या आय सी एस सी ई वाले हों फालो इट। आप मुझे गलत मत समझना।"

इसका मतलब यह है कि एक बी एड डिग्री के सामने पी एच डी डिग्री का कोई मोल नहीं है। 

"देखिए आपकी हायली क्वालिफायड डिग्री संभव है आपको भविष्य में एक सायन्टिस्ट बनाएगी जो अपने देश एवं मानव जाति के लिए कल्याणकारी कार्य करेंगे बट टीचिंग इज नॉट फॉर हायली वेल क्वालिफाइड पर्सनल।"

यू आर राइट माय डियर सर बट नाउडेज आय नीड ए जाब ताकि ऐट प्रेजेंट मैं जीवित रहूं। कुछ सेकेंड की मौनता छा जाती है। अरविन्द के चेहरे पर पांच -छ: के स्थान पर पर्वत समान दृढ़ता दिख रही थी जबकि टीचर इन्चार्ज एक पराजित सैनिक की भांति अरविन्द को गहराई से पढ़ने का प्रयास कर रहा था। अब वह अरविन्द से ज्यादा कुछ जानना नहीं चाहता है। सो बहुत हीं विनम्रता से कहता है - 

मिस्टर अरविन्द क्या आप मुझे साइंटिफिकली टीचिंग के बारे में कुछ बताएंगे? अरविन्द ने प्रत्युत्तर में जो बताया उससे यह स्पष्ट हो गया कि ऐज ए टीचर के रूप में हन्ड्रेड परसेंट परफेक्ट है। अतः टीचर इन्चार्ज अरविन्द के लिए एप्वाइंटमेंट को प्रोसीड करने से पूर्व इस स्कूल के टर्म्स एंड कन्डीशन्स बताना उचित समझा। उसने कहा,

देखिए आपने सैलेरी के लिए ट्वेंटी फाइब का रिक्वायरमेंट किया है लेकिन हम आपको इस समय एप्रोक्स ट्वेंटी देंगे तथा क्लास फाइब से एइट तक का क्लास देंगे।

ऐसा क्यों सर! क्या अब भी लगता है कि मैं सीनियर सेकेंडरी क्लासेज नहीं ले सकता?

जी ऐसी कोई बात नहीं है। यदि आप बी एड डिग्री धारी होते तो सभी क्लासेज ले सकते हैं और आपकी सैलरी आपके अनुरूप मिलती। मरता क्या न करता अरविन्द टीचर इन्चार्ज के कन्डीशन को स्वीकार कर लिया। 

तब टीचर इन्चार्ज कहना शुरू किया -' नेक्स्ट मंथ के फर्स्ट वीक में आपकी ज्वाइनिंग हो जाएगी। इस बीच सारे टर्म्स लिग्ली वेज से इन रीटेन तैयार रहेगा ताकि एक एम्प्लोई को मिलने वाली सुविधाओं के लाभ पायें। और हां आपको एक काम और करने होंगे वह है ए नीयरेस्ट कीन की आथोरिटी प्रूफ जमा करना। एण्ड एनीथिंग एल्स यू वांट टू नो।"

नो थैंक्स सर।

और अंत में भविष्य के मजाक से लड़कर अरविन्द वापस लौट आया तथा आज भी स्कूल से आने वाली एप्वाइंटमेंट लेटर का इन्तजार कर रहा है।


 



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