Mukul Kumar Singh

Thriller

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Mukul Kumar Singh

Thriller

क्योंकि यह वहीं जाएगा

क्योंकि यह वहीं जाएगा

19 mins
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एक मरियल सा दिखने वाला, युवक तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन प्रौढ़ भी नहीं कह सकते हैं। बिल्कुल साधारण सा दिखने वाला है। धीरे-धीरे एक कदम दो कदम रखते हुए मंच की तरफ बढ़ा जा रहा है। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास के चिन्ह स्पष्ट दिख रहे हैं और उसके स्वागत में सेना की बैंड बजाई जा रही है। और उसे आज के आकर्षण का आसन प्रदान किया गया है। आसन पर विराजमान होने के बाद वहां उपस्थित सैन्य अधिकारी,जे सी ओ,एन सी ओ तथा अन्य सेना के जवानों के बीच वह चर्चा का विषय बन गया था। कोई उसे चांदी का चम्मच लेकर जन्मा है कह रहा था तो कोई कोई उसे भाग्यवान बंदा कह कर गर्वित हो रहा था। परन्तु सभी उसे भारत मां का वीर पुत्र मान रहा थे। लेकिन वह इन सभी चर्चाओं से दूर लापरवाह था पर आश्चर्य में डूबा तो अवश्य था। सैनिकों का यह परेड ग्राउंड आज बड़े सुन्दर ढंग से सजाया गया था। ग्राउंड के चारों ओर बड़े बड़े पेड़ों की कतारें भी खुले आसमान के निचे मंद मंद हवाओं के झोंकों को साथ लेकर सेना की पर्यावरण को खुशियां बांट रहे थे जहां प्रायः सैनिक अपने परिवार से दूर रहकर आनन्दित व खुश रह कर देश के नागरिकों को चैन की नींद में सोने का अवसर प्रदान करते हैं। प्रायः अतिथियों के आसन भर चुके थे और कुछ हीं पल में जनरल साहब का आगमन होगा और सैनिकों की टुकड़ियां उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर देगी तत्पश्चात सेरेमोनियल ड्रिल एवं उसी के साथ हीं साथ दो सैन्य अधिकारी और एक सिविलियन को अशोक चक्र से सम्मानित किया जाएगा। और सबसे मजेदार रहेगी जनरल साहब की ओर से बड़ा खाना।

अचानक वातावरण में थोड़ा खुशनुमा शांति फैल जाती है। परेड ग्राउंड के एन्ट्री गेट पर एक काली कार के आगे एक पायलट कार अन्दर प्रवेश करती है। उसी के पिछे एक ओर जी कलर की कार प्रवेश करती है जिसके बोनट पर लाल रंग फ्लैग एवं फ्लैग पर अशोक चक्र तथा एक दो तलवारों का क्रास चिन्ह दिखाई दे रहा है। कार का दरवाजा खुला और आकर्षक व्यक्तित्व वाला पुरे ए वन टनाटन सेना वर्दी में कार से बाहर निकला तथा दो सैन्य अधिकारियों ने सैल्यूट दिया तथा सैन्य अभिवादन के तरीके से मंच तक पहुंचाया गया। उसके बाद परेड कमांडर अपनी जगह से मार्च करते हुए जनरल साहब के पास पहुंचा तथा शेर की भांति गर्जना करते हुए “सात अफसर एक सौ अस्सी जवान आपके निरीक्षण के लिए हाजिर है श्रीमान”। सेना की बैंड स्वागत संगीत से पर्यावरण को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके साथ ही साथ परेड कमांडर अपनी स्थान पर जनरल साहब को सैल्यूट बजा लौट आया। दोनों पायलट जनरल साहब की आगवानी करता हुआ ले जाता है। प्रत्येक सेना टुकड़ी का कमांडर जनरल साहब को रिपोर्ट देता है। जनरल प्रत्येक टुकड़ी का निरीक्षण कर सलामी मंच पर आसीन और परेड कमांडर की दहाड़ती कमांड गुंजती है। “परेड तीनों तीन में बांये चलेगा दाहिने मुड़”

परेड कमांडर मार्च करता हुआ टुकड़ियों के आगे स्टार्टिंग प्वाइंट पर खड़ा हुआ तथा पुनः कमांड गुंजती है “बांये से तेज चल”। सेना की बैंड जोश जगाने वाली संगीत के तार छेड़ देती है। सैल्यूटिंग मंच के सामने से टुकड़ियां जब “दाहिने देख” कमांड देती है तो पुरे रंगारंग वातावरण तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठी। तत्पश्चात तीन मिनट का छोटा सा ब्रिफिंग आज के कार्यक्रम को संचालित करने वाले सेना अधिकारी आज की विशेषता के विषय में बताया तथा एक एक कर दोनों सेनाधिकारी के नाम की घोषणा करते हैं। घोषणानुसार दोनों सैन्य अधिकारी परेड ग्राउंड में खड़ी टुकड़ी से निकल मार्च करता हुआ विक्ट्री प्वाइंट पर पहुंचता है तथा जनरल साहब उनके सीने पर सेवा पदक टांग कर सम्मानित किया। जब अंतिम व्यक्ति जो एक सिविलियन है जिसने अपने जीवन की परवाह न करते हुए सेना के एक अधिकारी की प्राण रक्षा करता है उसके नाम की घोषणा होती है। वह सैनिक तो था नहीं जो एक सैनिक की भांति जनरल साहब के सामने जाएगा। सो वह बड़े हीं सहज अंदाज में आसन से उठकर जनरल साहब के सामने उपस्थित हुआ और सैल्यूट किया। जनरल साहब उसके सीने पर अशोक चक्र प्रदान कर उसके कंधे को थपथपाते हैं और कहते हैं मिस्टर अंशुमान राणा के ऐसे नागरिक जहां हो उस देश की सेना को इस विश्व में कोई पराजीत कर हीं नहीं सकता है। मुझे आपके उपर गर्व है। आपके देश भक्ति को सैल्यूट करता हूं। जनरल साहब अपने तो आसन पर आसीन होते हैं और संचालक अधिकारी अंशुमान राणा से आग्रह करता है कि वह अपने शिखर आरोहण तथा एक सैन्य अधिकारी की जीवन रक्षा करने हेतु जिस अदम्य साहस का प्रदर्शन किया उसे स्वयं सुनाकर हमारे सैनिकों के मनोबल को बढ़ायें।

वह अपने अनुभव को सुनाना प्रारंभ किया –

उपस्थित सभी को मेरा नमस्कार। मैं अंशुमान राणा पुत्र दलीप सिंह राणा, निवासी गढ़वाल जिला एक कृषक परिवार से संबंध रखता हूं। आप लोगों की भांति ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूं। मेरे अख्यात गांव से लगभग सात-आठ कि मी दूर माउन्टेनियरिंग इन्स्टीट्यूट है। जिसमें जब ट्रेनिंग लेने के लिए देश विदेश से लोग आते तो मेरे मन में भी इच्छा होती यदि मैं भी ट्रेनिंग ले लिया होता तो हिमालय की जो चोटियां मूझे रह रह कर बुलाती तो मैं अवश्य जाता। घर की माली हालत ऐसी न थी। चुंकि मेरे घर के बगल से अलकनंदा बहती है तथा पक्की सड़क थी और बस एवं ट्रेकर ऐसी सवारी गाड़ियां आकर रुका करती तो मैंने वहां एक नाश्ते की दुकान कर ली। मेरी दुकान अच्छी भली चल पड़ी और परिवार की माली हालत में सुधार आई पर खेती एवं दुकान से शिखर छूने की इच्छा का दमन नहीं हुआ इधर मेरे पिताजी ने पड़ोसी गांव के एक युवती से शादी कर दी। मेरे दुकान पर ट्रेकिंग करने वाले आते तो मैं तरह तरह की प्रश्न करता। मेरी उत्सुकता देख मूझे ढेर सारी जानकारियां देते। इन्हीं परिस्थितियों में ललित कुमार नेगी जो शायद एक सैनिक था साथ ही साथ माउन्टेनियरिंग का ट्रेनर भी था उससे मित्रता हो गई और उसने मुझे एक तरह से अपना छात्र मान बिना किसी इन्स्टीट्यूट के शैलारोहण थ्योरिटिकल तथा प्रैक्टिकल तकनीक सिखाया। अब आवश्यक है इक्युपमेन्टस। वो कहावत है ना ईश्वर उसी की मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है। मैंने कई विदेशी अभियानों एवं ट्रेकिंग में पोर्टार का कार्य किया जिससे इक्यूपमेंट की व्यवस्था हो गई। धीरे-धीरे मैं हिमालय के उंचाई पर हर पल परिवर्तन होने वाली मौसम से,एवालांच, शिखर आरोहण के पूर्व मानसिक तैयारी, आत्मविश्वास पर नियंत्रण तथा मार्ग का चयन एवं प्राकृतिक आघातों से बचने की तौर तरीकों से परिचित हो चुका था। लेकिन एक कमी रह गई तो ज्यादा पढ़ा-लिखा न होने के कारण कुछ आवश्यक वैध प्रमाण पत्र भी आवश्यक है जिसे मैंने जरूरी नहीं समझा। परन्तु मेरे शैलारोहण शिक्षक कह सकते हैं या मेरा मित्र। उसने हंसते हंसते एक बार कहा था “राणा यदि कोई भी युद्ध जीतना चाहते हो तो सबसे पहले विजय का लक्ष्य निर्धारित करो-लक्ष्य-लक्ष्य-लक्ष्य। अन्ततः घरवालों को बिना बताए हिमालय की किसी भी एक चोटी को स्पर्श करने करने का लक्ष्य निर्धारित कर निकल पड़ा। चुंकि मैं एक गढ़वाली, पहाड़ी पगडंडी ने मेरा मार्ग नहीं रोका। जंगली फलों को पहचानता था जिनमें कुछ ऐसे भी थे जिन्हें खाकर दो तीन दिन बिना भोजन या जल की भी जरूरत नहीं पड़ेगी संग्रह कर लिया था। मेरे पीठ पर मेरे सैक में अन्यान्य इक्यूपमेंट हल्की-फुल्की ड्राई फूड्स,उलेन गारमेंट, इमरजेंसी मेडिसिन तथा टैंट, स्लीपिंग बैग मैट्रेस इत्यादि का लोड था। झोपझाड़ से उंचाई को पार कर हरे रंग के कालीन बिछे वैली डिफरेंट कालार्स फ्लावर के क्षेत्र में प्रवेश किया। ईश्वर को लाख लाख धन्यवाद दिया हे भगवान भोलेनाथ आपने मुझे मेरे लक्ष्य पहले ही निर्धारित कर दिया था और इस लक्ष्य को प्राप्त कर के रहूंगा। अब मैं स्नो लाईन पर आ पहुंचा। केवल एक दिन की ट्रेकिंग आज पुरी हुई। अभी और दो दिन की ट्रेकिंग बाकी है जिसमें अगले दिन की ट्रेकिंग काफी कठीनाईयों से भरे थे यह क्षेत्र एवलांच एवं क्रेभास से भरे आपको चैलेंज देती हुई मिलेगी। एक बोल्डर उंचाई में दस बारह फीट की होगी और चौड़ाई लगभग पन्द्रह से बीस फीट जिसका सामने भाग में गुफा तो नहीं कहेंगे पर नाइट स्टे के लिए उपयुक्त लगी और मैंने उसे हीं अपना आश्रय स्थल के रुप में ईश्वर का आशीर्वाद माना। सैक को पीठ से उतार टैंट पिचिंग किया तथा टैंट के अन्दर मैट्रेस बिछा कर स्लीपिंग बैग निकाल कर रख ली। अभी सूर्यास्त नहीं हुई थी। अतः सफेद चादर के साम्राज्य अवलोकन किया। यह घाटी नुमा समतली मैदान चारों ओर छोटी बड़ी चोटियों से घिरा था। अब मेरा प्रथम कार्य था किस चोटी को अपना लक्ष्य बनाउं कारण अपरिचित चढ़ाई की ओर हीं जाउंगा ताकि अकेले शिखर तक पहुंच पाउं। अब आपके मन में शायद प्रश्न जागेगा कि ऐसा मैंने क्यों किया तो मुझे वही शिखर उस तक पहुंचाएगा जिसकी मैंने कल्पना कि थी एवं दूसरा कारण यह था कि मैंने अपने अभियान के लिए प्रशासन से कोई अनुमति नहीं ली थी और एक बात याद रखें कि आप कोई गलत कार्य करने जा रहे हैं तो आपका मन सदैव आपको स्मरण कराएगा, तुम गलत हो। खैर धीरे धीरे ठंड बढ़ने लगी और रह रह कर दूम्म दूम्म की ध्वनि सुनाई दे रही थी। मैं घाटी में चहलकदमी करता हुआ एक तरह से उस घाटी का रेकी किया और घुप्प अंधेरा होने के पूर्व टैंट के अन्दर घुस गया। सैक में रखे जंगली फलों को खाया ताकि मेरे सैक का वजन थोड़ा हल्का हो। दिन भर की चढ़ाई मेरे शरीर को थका दिया था। पलकें भारी हो रही थी परन्तु जल्द सोना नहीं चाहता था। मैं अपने को अच्छी तरह से एक्लामेटाइज्ड कर लूं। इसलिए अगले दिन यहीं स्टे कर मेरे मनोवांछित शिखर तक पहुंचाने वाला सहज मार्ग निर्धारित करूंगा। काफी ठंढक लगने लगी और अचानक एक नवागंतुक अतिथि मेरा साथ देने के लिए उपस्थित। स्नोफॉल शुरू। स्लीपिंग बैग के अन्दर घुस गया तथा भगवान भोलेनाथ से मन हीं मन प्रार्थना करने लगा कि मुझे मेरे लक्ष्य तक पहुंचने में साथ देना। ऐसा करते करते पता नहीं कब गहरी नींद में सो गया। अगली सुबह दूम्म दूम्म दूम्म की ध्वनि से मेरी आंख खुली। टेंट का कवर खोल कर देखा मेघ युक्त आकाश देख कर मेरा मन बैठ गया। स्नोफॉल अनवरत हो रही थी। मैंने सैक से कोपलैक बूट निकाली और विन्ड प्रुफ जैकेट पहना सर को ऊनी टोपी से ढका तथा बाहर निकला। कुछ देर स्नोफॉल में टहलता रहा तथा आकाश का रंग देख टैंट में वापस लौट आया। हृदय अशांत हो गया मेरी बनाई योजना प्रकृति के सामने असफल होता दिख रहा था। परन्तु मेरे मन का विश्वास कह रहा था लक्ष्य यदि सकारात्मक है तो बाधाओं पर विजय अवश्य मिलेगी। आखिर मेरा आत्मविश्वास अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता दिखा। तापमान में हल्की सी वृद्धि और स्नोफॉल में कमी के लक्षण सामने। सहसा मन में एक अपरिचित आनंद की लहरें उठने लगी और अगली प्रातः साढ़े तीन - पौने चार का समय निश्चित किया और मेरा समर्थन किया स्वयं मौसम ने। सारे आवश्यक इक्यूपमेंट की जांच कर ली क्योंकि मुझे अकेले हीं शिखर पर भोलेनाथ को प्रसन्न करना है। स्नोफॉल थम गई। आदित्य नाथ ने दर्शन तो नहीं दिया लेकिन बार-बार संदेश दे रहे थे आगे बढ़ो - बढ़ो आगे लक्ष्य तुम्हारे सामने है। अपने को अकेला मत समझो,हम सभी तुम्हारे साथ हैं। गतकाल का जंगली फलों ने मेरे उपर भूख-प्यास का प्रभाव होने नहीं दिया। शेषमशेष वह बहुप्रतीक्षित समय मेरे सामने। सर पर विशाल व्योम ने शशधर को अपनी चंद्रिका को उज्जवल रहने की आज्ञा दे रखी थी। मेरा सैक मेरे पीठ पर और पैरों ने बर्फिले मैदान को मापने का कार्य आरंभ कर दिया था। आईसएक्स की सहायता से क्रेभसों का पहचान करता हुआ बिना थमे लगभग दो घंटे तक शुन्य डिग्री से पचास डिग्री की ढलान पर चढ़ाई पुरी कर ली थी। प्रथम परीक्षा में शत प्रतिशत मार्क मिला पर अभी दूसरी कठिन परीक्षा मेरा स्वागत करने के लिए करीब पच्चीस फीट नब्बे डिग्री का बर्फिली दीवार तैयार मिला। एकबार तो ऐसा लगा कि शायद यह चढ़ाई मेरे लिए संभव नहीं है। परन्तु ऐसे समय में मेरे गांव ने मुझे जैसे कहा कि अंशु तुम गढ़वाल के उस भारतीय सैनिकों के गांव से हो जिन्होंने पिछे हटाना नहीं सिखा है, आगे बढ़ो आगे बढ़ो। सैक से क्रैम्पोन निकाला और बूट में लगाया तथा कुछ पिटन, क्लाईम्बिंग रोप निकाल कर लीड क्लाईम्बिंग की शुरुआत की। बड़ी सावधानी से एक एक कदम उपर उठ रहा था। सांसे फूल रही थी एकबार तो गिरते गिरते बचा क्योंकि बायें पैर का क्रैम्पोन रोप में फंस गया और मैं स्लिप कर झूला झूलने लगा था परन्तु धैर्य ने मेरा साथ दिया और डेढ़ घंटे की असाध्य चढ़ाई पर पहुंचा तो सामने टेबल की भांति हार्ड एण्ड कम्पैक्टेड बर्फीला मैदान मिला। इसने मेरे साहस एवं आत्मविश्वास को दोगुना उर्जा प्रदान किया तथा अंततः उस पच्चीस फीट ऊंची टेबल पर बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पन्द्रह मिनट तक विश्राम कर पुनः अग्रसर। लेकिन इस बार मैदान नहीं मेरे लक्ष्य की रीज पर चढ़ना जो प्रायः सौ मीटर ऊंची होगी तत्पश्चात मेरा लक्ष्य मुझे अपने गले से लिपटने का अवसर प्रदान करेगा। रीज तक पहुंचना बड़ा हीं कठिन चुनौती थी मेरे लिए क्योंकि गत काल का तुहिन कण अपने ग्रीवा को करीब तीन फीट मोटी कम्बल से ढंक लिया था जो दोनों ओर से मृत्यु का द्वार खोल रखा है। प्रथम तो यह क्षेत्र एवलांच का केंद्र स्थल दूसरे क्रेब्स से भरा पड़ा है ‌। ताजे तुहिनों ने उन्हें ऐसे ढंक दिया था कि वह किसी भी स्थिति में चिन्हित नहीं किया जा सकता था। मेरी स्थिति ऐसी मोड़ पर आ खड़ी हुई जहां से मेरे लिए वापस सुरक्षित स्थान ढुंढना असंभव था अर्थात यदि जीवित रहना है तो हर हालत में मुझे आगे बढ़ना हीं होगा और मुझे आगे बढ़ना हीं उचित लगा। सो एक एक कदम को फूंक फूंक कर रखना पड़ रहा था। अंततोगत्वा काफी परिश्रम करना पड़ा। उतनी ऊंचाई पर तापमान शून्य डिग्री से भी कम था परन्तु मेरी पीठ पसीने से लथपथ हो गई थी,सांस लेने के लिए फेफड़ों को लोहार की भट्ठी की तरह फुलानी पड़ रही थी। भले हीं काफी परिश्रम करना पड़ा पर भाग्य ने मेरा साथ दिया और मैं रीज तक पहुंच गया। सामने पांच फीट समतली टेबल की भांति स्थान मिला। मैंने पीठ से सैक उतारा और दो तीन जंगली फलों को उदर में जमा कर दिया। आकाश की ओर देखा मार्कण्डेय जी शायद घड़ी के दस बजे की दिशा में आ चुके हैं और ज्यादा देर रुकना उचित नहीं था एवं मेरे पास लगभग सौ मीटर की हॉर्स राइडिंग करनी थी। अतः सैक को वहीं पर रख रोप,आईस एक्स से सुसज्जित होकर घोड़े की सवारी करने लगा। परन्तु उस अनामी शिखर को मेरा प्रयास पसंद नहीं आया और तेज हवा बहने लगी जो किसी भी हालत में मुझे रीज पर से सूखे पत्ते की भांति फेंक देना चाहता था। मैं मन-ही-मन भगवान भोलेनाथ को याद करते हुए आगे बढ़ता गया। अब आप कह सकते हैं कि मेरे माता-पिता का आशिर्वाद, पत्नी की शुभकामनाओं ने इस अपरिचित शिखर पर पहुंचने वाला प्रथम मनुष्य के रूप में स्थान प्रदान किया। अन्यान्य पर्वतारोहियों की भांति अपने देश भारत वर्ष का राष्ट्रीय ध्वज एवं कैमरा मेरे पास नहीं था ताकि दुनिया को प्रमाणित कर सकूं। खैर जो भी हो मैं वहां पहुंच हीं गया जहां यह स्वयं जाता है। भगवान भोलेनाथ को मन ही मन प्रणाम कर अब उतरना होगा। और क्लाइम्ब डाउन शुरू। सौ मीटर की दूरी वाली रीज से जल्दी उतर आया तथा सैक पुनः पीठ पर डाल रोप को कमर से रोप अप कर निचे की ओर अग्रसर हो रहा था। जितनी जल्द से जल्द मैं किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंच जाना चाहता था क्योंकि उंचाई पर बर्फिले पहाड़ों पर दोपहर के बाद आवोहवा के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। कब आवोहवा ताण्डव नृत्य करने लगेगा कोई भी शैलारोही नहीं कह सकता है जबकि मैं जानता हूं यह क्षेत्र एवलांच जोन है फिर भी मैंने एक ग़लती कर हीं डाली। साथियों एक कहावत है ना कि अत्यधिक जोश में लोग होश खो बैठते हैं। जिस शिखर पर आरोहण मैंने अभी अभी किया था उसकी रीज जहां से शुरू हुई थी वहां से एवलांच आने का रास्ता नहीं था बल्कि जिस दिशा से मैंने वापस लौटना शुरू किया था वहीं एवलांच का मार्ग था। अचानक एक दूम्म की ध्वनि सुनाई दी और पिछे मुड़कर मैंने देखा मेरे पैर की निचे की बर्फिली सतह धीरे-धीरे मंद गति से सरकती महसूस हुई अर्थात मेरी मृत्यु निश्चित है परन्तु इतनी सहजता से मैं मृत्यु को गले नहीं लगाने वाला। अतः जितनी जल्द हो मैं निचे की ओर भागना प्रारम्भ कर दिया था साथ ही साथ किसी बड़े बोल्डर की ओर नजर दौड़ा रहा था जिस बर्फिली सतह पर मैं था वह बोल्डर से टकराकर बिखर जाए ताकि पुरा का पुरा उस एवलांच में दबने से बच जाऊं। और मेरा सौभाग्य मुझे ऐसा ही एक दीवार के रूप में सामने दिखा तथा संग हीं संग दाहिनी ओर भागा एवं एवलांच का ढेर उस बोल्डर टकराते हुए बांयी ओर निचे की ढलान से फिसलती आगे बढ़ गई। मैं अपने को सुरक्षित पा भोले शंकर को धन्यवाद दिया तथा गहरी सांस लेकर स्वयं को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा था। तभी दूम्म दूम्म की ध्वनि पुनः आई और जहां मैं खड़ा था अचानक बांयी ओर से कोई टेंट को एवं स्वयं को धंसता अनुभव किया। तत्पश्चात क्या हुआ व कब तक वहां पड़ा था याद नहीं रहा। जब आंख खुली तो मेरे बाएं घुटने में और दाहिनी जांघ में में दर्द की अनुभूति हुई। मेरी दोनों टांगें किसी रस्सी में फंसी हुई लगी। चारो ओर मैने दृष्टि दौड़ाई तो समझते देर न लगी यह कोई चौड़ी क्रेभस था और गनिमत यह थी कि ज्यादा गहरा नहीं है उपर आकाश की ओर नजर उठाया धूप तो दिखा नहीं पर प्रकाश मान। अचानक मेरी आंखों के सामने घटी घटना का चित्र आया और चला गया मुझे आनन्द एवं संदेह दोनों की प्राप्ति हुई। एक तो अपने को जीवित पाया एवं दूसरा मेरे साथ ही एक टेंट भी इस गर्त में समा गई वो किधर है। क्या उसमे कोई मनुष्य भी था! इस प्रश्न ने मुझे बेचैन कर दिया मुझे ढुंढना होगा, कहीं वो जीवित हो। अतः उसका रेस्क्यू कैसे करुंगा? एक बार तो मुझे लगा कि जो गिरा हुआ है शायद वो मर गया होगा, उसके पीछे समय खर्च करना केवल मूर्खतापूर्ण सिद्धांत होगी। अतः उसे उसी हालत में छोड़कर स्वयं बाहर निकल जाऊं। परन्तु मेरे अन्तर्मन ने मुझसे कहा एक गढ़वाली कभी भी ऐसा नहीं करता है भले हीं शत्रु क्यों न हों। आखिर मैंने निश्चय किया कि पहले मुझे उस टेंटनुमा वस्तु को देखना होगा साथ ही साथ अपनी टांगें। मेरा सैक पीठ पर था उससे मुक्त हुआ और स्नो को हटाने लगा। रह रह कर घुटना एवं जांघ दर्द कर उठता। स्नो हटाते हटाते ठंढक के स्थान पर गर्मी लगने लगी पर मैं रुका नहीं और सफलता मिली तो पाया कि टैंट का कील मेरे हाथ में जो रोप थी उसमें फंसा है स्नो हटाने के काम में कोई शिथिलता नहीं आने दिया और एक समय कोई भारी वस्तु लंथ पंथ पड़ा हुआ मिला। मैंने उस टेंट से दबे अपने टांगों को मुक्त किया तो इतना समझ गया कि उसमें कोई मानवीय काया है। स्नो हटाते हटाते थक चुका था फिर भी मैं रुका नहीं बल्कि आईस एक्स एवं रोप की सहायता से क्रेभस से बाहर निकलने का प्रयास करने लगा तो घुटने का दर्द बढ़ने लगा। दांतों से दांत लगाए उपर उठ आया। कुछ पल तक आंखें बंद किए लेटा रहा। उसके बाद आकाश की ओर देखा तो दोपहर पता नहीं कब जा चुका था और मुझे उस मानवीय काया को निकालना होगा और घुटना का दर्द भूल गया। अब आवश्यक था अपने को सेल्फ एंकरिंग करना, इधर उधर नजरें दौड़ाई एक बड़ा सा बोल्डर लगभग दाहिनी ओर मिल गया। तुरंत कमर से रोप को टीम्बर हीच का रुप दिया तथा कोपलाक बूट में क्रैम्पोन तो फिक्स थी हीं सो क्रेभस में उतरने में परेशानी नहीं हुई। मेरे सैक में एक और रोप थी उसकी सहायता से स्लीपिंग बैग में सोया हुआ मानवीय काया को किसी तरह से रोप अप किया और सैक से रोप को बाहर निकाल देने के कारण हल्का हो चुका था पीठ पर डाला तथा क्रेभस से बाहर निकला। अब आवश्यकता थी किसी भी तरह से उस मानवीय काया को बाहर निकालना। क्रेभस से थोड़ी सी दूरी बनाए आईस एक्स को पिचिंग कर अपने पैर को ठेकना की तरह लगा रोप को खिंचना शुरू किया जिससे लगभग एक डेढ़ घंटे की अथक परिश्रम से उस काया को बाहर निकाला। स्लीपिंग बैग को खोलकर देखा तो शायद मेरी हीं उम्र का व्यक्ति पाया जिसका शरीर एक दम ठंडा था लेकिन मृत शरीर जैसे सख्त हो जाता है ऐसा नहीं बल्कि ढिलाई थी। अतः अब मुझे उसे लेकर निचे उतरना था। कम से कम मुझे उस स्थान पर पहुंचना होगा जहां पर गत काल मैंने नाईट स्टे किया था। लेकिन पैरों का दर्द यंत्रणा में बदल गई और निचे उस काया को लेकर उतरने में बाधा बन गया। अन्ततोगत्वा मेरी मोटी बुद्धि को जो उचित लगा वही मैंने किया। बैठे-बैठे फिसलने लगा। हालांकि यह कार्य भी विपदजनक थी परन्तु मेरे सामने दूसरा कोई उपाय न था। ठीक ऐन मौके पर सर के उपर से हेलिकॉप्टर को काफी निचे से उड़ते हुए देखा। मै काफी जोर जोर से चिल्लाया परन्तु हेलिकॉप्टर मेरी दृष्टि से ओझल हो गई। मैं निराश नहीं हुआ और मेरा कार्य अनवरत जारी रहा। क्रमशः मैं अपने वापसी लक्ष्य के निकट आ पहुंचा। सैक से टेंट निकाल टेंट पिचिंग किया। उस दूसरे स्लीपिंग बैग में लिपटा काया के सिने को रह रह कर दबाया लेकिन कोई हलचल या प्रतिक्रिया न दिखी। इधर अंधेरा भी घिरने लगा। बाहर झिलमिलाते हुए रत्नजड़ित आकाश दिखा। मेरा हृदय उस दृश्य को देखकर गदगद हो गया परन्तु एक अपरिचित भय और पैरों की यंत्रणा ने इस खुशी को छिन्न लिया। न तो कोई भूख-प्यास और न शिखर आरोहण का आनन्द। आगामी काल कैसे इस मानवीय काया को लेकर निचे उतरूंगा। यह चिंता मुझे खाए जा रही थी। जैसे-तैसे रात घनी हो आई,भूख भी नहीं थी या युं कहें कि उस भय से भयभीत था कि यदि अगली सुबह जब निचे उतरना शुरू करूंगा तो गांव पहुंच कर लोगों को क्या कहूंगा। पोलिश वाले आएंगे तथा मुझे हीं यदि इस काया का हत्यारा मानते हुए जेल में डाल दिया तो कैसे उन्हें प्रमाणित करूंगा कि मैं शिखर आरोहण करने के लिए निकला था जबकि मेरे पास कोई डाक्यूमेंट नहीं है। यही सारी उधेड़बुन ने मेरी आंखों से नींद का अपहरण कर लिया था। बार-बार बाहर की ओर देखता। न जाने कब नींद आ गई। बाहर धूप निकल चुकी थी तथा कुछ लोगों के बातें करने की ध्वनि ने मेरी आंखें खोल दी। फ़ौरन हीं खड़ा होने का प्रयास किया तो गिर पड़ा। मेरी टांगों की यंत्रणा ने मुझे अवसर हीं नहीं दिया कि उपर चढ़ने वालों से मदद मांग सकूं। सो पागल की भांति चिल्लाने लगा। मेरी इस चिल्लाहट ने जानेवालों को मेरी तरफ आकर्षित किया और तुरन्त वो लोग मेरे निकट आ पहुंचे। आते हीं उनमें से एक ने मुझसे पूछा “कौन हो तुम और यहां क्या कर रहे हो” 

साब जी मैं निकट गांव का रहने वाला हूं एक शिखर आरोहण के लिए निकला था, सफलता भी मिली पर अचानक एक एवलांच में फंस गया था। एक क्रेभस में गिर पड़ा और दोनों टांगें चोटिल हो गई तथा उसी क्रेभस में एक और व्यक्ति  टेंट में फंसा पता नहीं जीवित भी है या मरा है को मैंने बाहर निकाला और उसे लेकर यहां तक आया। इतना हीं कह पाया था पुनः एक बार खड़ा होने का प्रयास किया परन्तु असफल एवं गहरी नींद में सो गया।

जब आंख खुली तो अपने को अस्पताल में पाया एवं मेरे बेड के पास हीं सेना की वर्दी पहने हुए डॉक्टर को देखकर चौंक गया। मुझे जगा हुआ देख प्रसन्नता के साथ कहा

“कांग्रेचुलेशन मिस्टर अंशुमान राणा”

डॉक्टर साब मैं यहां कैसे आया!

“यंगमैन यू हैव डन ए गूड जाब”

“और आज मैं आप सभी के सामने”।

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