Rubita Arora

Inspirational

3.8  

Rubita Arora

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मुझे मेरा घर मिल गया

मुझे मेरा घर मिल गया

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घर का सारा काम निपटाते हुए मैं पूरी तरह से थक चुकी थी।अब और कुछ भी करने की हिम्मत नहीं बची थी पर फिर भी सबसे जरूरी काम भला मैं कैसे भूल सकती हूं बाहर मेन गेट पर लगी नेमप्लेट जिसे प्यार से चमकाना मेरा रोज का नियम है।नेमप्लेट को अपनी साडी के पल्लू से ही पोंछते हुए मुझे एक अनूठी अनुभूति का अहसास होने लगा और मैं अपने अतीत की यादों के समुद्र में गोते खाने लगी। बात तब की है जब मैंने शादी से पहले इंटीरियर डैकोरेशन का कोर्स पूरा करने के बाद घर को अपने तरीक़े से सजाने की कोशिश की।मम्मी पापा ने यह कहकर मना कर दिया,"बेटा!! तुम्हें जो कुछ भी करना है अब अपने घर जाकर करना।"उस दिन पहली बार अपने ही घर में परायेपन का अहसास हुआ लेकिन फिर जब अमन के साथ मेरा रिश्ता तय हुआ तो मैं मन ही मन अपने घर के सुनहरे सपने सजाने लगी लेकिन ससुराल की दहलीज पर कदम रखते मेरे सपने उस समय चकनाचूर हो गए जब सासुमां और ननद रानी घर के परदों को बदलने की बात कर रही थी और मैंने अपनी राय देने की कोशिश की।एक बार फिर से परायेपन का अहसास हुआ जब सुनाया गया भला तुम क्या जानो हमारी पसंद के बारे में तुम तो दूसरे घर से आई हो।मैं अपने आपको पूरी तरह से ठगी से महसूस करने लगी।मन मे एक ही सवाल हुडदंग मचा रहा था आखिर मेरा अपना घर कौन सा है??


रोते हुए मैंने अपनी मां को फोन लगाया और उन्हें सारी बात बताई।मां मेरे मन की उलझन को भलीभांति समझते हुए बोली, "बिटिया!! यह एक कडवी सच्चाई है जिसका सामना हम सब औरतों को करना पडता है।कहने को तो औरत दो-दो घरों की रानी है परंतु सिर्फ घर को संवारने तक के लिए।असल में घर पुरुषों के नाम से जाने जाते है और हम औरतें बाहर नेमप्लेट पर पति का नाम लिखा देखकर खुशी-खुशी पूरी जिंदगी उस घर के नाम समर्पित कर देती हैं।"उस दिन मां द्वारा कहे शब्दों की पीछे छुपी सच्चाई को स्वीकार करना इतना आसान नहीं था लेकिन फिर मैं धीरे-धीरे मन को बहलाते हुए आगे बढने लगी।


मेरे पति की प्रमोशन बडे शहर में हुई थी तो मैंने भी ट्रांसफर ले लिया।अब हम किराए के एक छोटे से फ्लैट में अपनी गृहस्थी सजाने लगे।तभी एक दिन छुट्टी वाले दिन जब हम मां-पापा से मिलने आए तो आधी रात के समय पापा को दिल का दौरा पड गया।हम दोनों ने बिना एक पल गंवाए उन्हें अस्पताल दाखिल करवाया जहां ईश्वर की कृपा से उनकी जान तो बच गई परन्तु अमन को अब एक ही चिंता सताने लगी।मां-पापा का इस उम्र में यूं अकेले रहना ठीक नहीं। बस यही सोच आपसी सलाह मशवरा करके तय हुआ मां-पापा अब अकेले न रहकर हमारे साथ शहर में शिफ्ट हो जायेंगे परंतु उस किराए के छोटे से दो कमरों के फलैट मे गुजारा करना इतना आसान नहीं था।मां -पापा को बहुत परेशानी होने लगी।अमन ने खुद का बडा घर लेने के बारे में सोचा परन्तु उसे खरीदने के लिए पैसे कम पड रहे थे।अब सभी की नजरें मेरी सैलरी मे से हर महीने बचाकर रखे पैसों पर थी।अमन ने मुझे पूरे हालात के बारे में बताते हुए कहा, "अगर तुम अपने पैसे इस्तेमाल के लिए दे दोगी तो यह घर हमारा अपना हो सकता है।"मांपापा के साथ रहने से मुझे वैसे तो कोई परेशानी नहीं थी परन्तु आज जब नया घर खरीदने के लिए मुझसे मेरी बचत के पैसों की मांग की गई तो मन में आया आखिर क्यों दूं मैं बेगाने घर के लिए अपने पैसे?? मैं अमन को पैसे देने से मना करने के बारे में सोचने लगी फिर दूसरे ही पल मां पापा की मुश्किलों का अहसास हुआ और समझ आया इस उम्र में इनके आराम की जिम्मेवारी किसी और पर नहीं ब्लकि हमारे ऊपर है।बस यही सोच मैंने बिना समय गंवाए अपनी बचत के सारे पैसे अमन को दे दिए और घर खरीद लिया गया।


गृहप्रवेश के दिन जब मैं तैयारियों में व्यस्त थी तो मां-पापा ने आवाज देकर मुझे बाहर आने को बोला।बाहर का नजारा देख कर आँखें खुली की खुली रह गई।बाहर नेमप्लेट पर अमन के साथ-साथ मेरा नाम भी लिखा हुआ था।एकटक आँखों में आंसू लिए निहारते हुए मुझे बिल्कुल ध्यान न रहा कब मेहमान आने शुरू हो गए।बुआ सास ने गाडी से उतरने सबसे पहले मां को नए घर के लिए बधाई दी फिर जैसे ही उनकी नजर नेमप्लेट पर पडी तो गुस्से में बोली, "यह कौन सी उल्टी रीत चला रहे हो तुम लोग, हमेशा से घर तो मर्दो के नाम से जाने जाते है, कभी किसी औरत का नाम बाहर लिखा देखा।"पास खडे अन्य रिश्तेदारों ने भी बुआ की बात पर अपनी सहमति दिखाई तो मां बोली,"बहन जी!! आपने ठीक कहा अब तक घर के बाहर केवल मर्दो के नाम ही लिखे जाते थे लेकिन इस रीत को बदलने के लिए किसी को तो पहल करनी पडेगी।अब तक औरत को मात्र शब्दों में घर की मालकिन कहा जाता था परंतु अब समय बदल चुका है।आज की पढीलिखी व समझदार औरत ने यह साबित कर दिया है कि उसके योगदान के बिना घर का आस्तित्व संभव नहीं और फिर घर तो घर की मालकिन से होता है जो इसे सहेजने मे अपने आपको भी भूल जाती हैं और दिन-रात बस घर की खुशियों के बारे में सोचती है।इतना सब करने के बाद एक छोटा सा मान तो हम उसे दे ही सकते है घर के बाहर उसका नाम लिखकर ताकि आते-जाते जब उसकी नजर पडे तो अपनेपन का अहसास हो।"मां ने मुझे गले लगाते हुए कहा, बेटा!! अब तक मैं गलत थी तुम पराई नहीं ब्लकि इस घर की असली मालकिन हो।तुम्हारे साथ ही इस घर की खुशियां हैं, बरकत है, खुशहाली है।


सबने तालियां से मां के फैसले का स्वागत किया और मां के विचार जान कर मेरे मन में मां के लिए सम्मान और बढ गया।भरे गले से मैं बस इतना कह पाई थैक्यू मां मुझे मेरा घर देने के लिए। आज मां-पापा इस दुनिया में नहीं है परंतु उनके द्वारा दिया यह तोहफा मेरे लिए सदा अनमोल रहा।


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