मर्यादा
मर्यादा
घड़ी पर नज़र गई तो देखा नौ बजने में बस दस मिनट रह गए थे ।सुरेश ...पतिदेव को आवाज़ लगाई ..."जारही हूँ...’टिफिन ले लेना।"स्कूटी की चाभी ले हेलमेट पहन चल दी स्कूल की ओर ,कहीं असेम्बली न शुरू हो गया हो?मन में कई सवाल तैर रहे थे ;बच्चों का टिफ़िन रखा था या नहीं?पता नहीं मीठी कॉम्पास ले गया नहीं ,बारहवीं में चली गई है लेकिन बिलकुल लापरवाह अभी तक कोई ज़िम्मेदारी नहीं और राहुल जो दसवीं में था आज प्रोजेक्ट जमा करना था उसे ;क्या बनाया दिखाया भी नहीं आज कल पुछता भी नहीं क्याबनाऊँ ?कैसे बनाऊँ ?इन बातों में उलझी स्कूल पहुँच गई।
बच्चों का स्कूल और समय अलग होने के वजह से सहूलियत थी उन्हें स्कूल भेजकर जाती और उनके आने से पहले घर पहुँच जाती।
आजकल परिक्षाएं चल रही थी ;कॉपियाँ जमा कर सारी जवाब देही निबटा कर स्कूटी स्टैंड के पास आई तो देखा दसवीं कक्षा के सात आठ लड़के -लड़कियाँ बाइक पर बैठें थे ,हर बाइक पर एक लड़का और एकलड़की एक दूसरे से कुछ ज़्यादा ही घुले मिले कोई कंधे पर हाथ रखा था तो कोई कमर पर ;गप्पें लड़ा रहेथे जबकि छुट्टी हुए आधा घंटा हो चुका था ।मैं सोची मुझे देख कुछ लिहाज़ करेंगे...लेकिन सब अपने धुन में मग्न थे।एक शिक्षिका होने के नाते मुझसे रहा नहीं गया मैंने उनसे कहा आपलोग अभी तक घर नहीं गए?
और “ये क्या अमर्यादित ढंग है ये कोई पार्क नहीं ।क्या हमारी संस्कृति यही सिखाती है ?हर चीज़ का एक दायरा होता है,मर्यादा होता है और बाइक से स्कूल आने के लिए किसने अनुमति दी है?"एक साथ कई सवालों को दाग मैंने उन्हें अचंभित कर दिया ...सभी लड़कियाँ बाइक से उतर अपनी अपनी साइकिल से घरकी ओर जाने लगी ,सकपकाई सी ,एक ने मेरे पास आकर कहा ,’प्लीज़ मैम घर वालों से शिकायत मतकिजीएगा ।"
घर पहुँच कर जल्दी से कूकर में चावल चढ़ाया तब तक बच्चे भी आ गए मैं अन्य काम निपटाने में व्यस्त हो गई ,थोड़ी देर बाद बच्चों को चार -पाँच आवाज़ देने पर भी नहीं आने पर उनके कमरें में गई तमतमाते हुए तो;
देखा दोनों बच्चे पलंग पर लेटे मोबाइल पर गेम खेल रहे थे ।स्कूल ड्रेस भी नहीं बदले थे ,मींठी का स्कर्ट ऊपर तक उठा हुआ था ;गेम खेलने में मग्न उसे परवाह नहीं अपने कपड़ों का...आज शायद पाठ पढ़ाने कादिन था मीँठी को पास बुलाकर समझाया -"ये क्या तरीक़ा है ,मीठी इतनी बड़ी हो गई हो ढंग से उठा बैठा करो”उम्र के अनुसार व्यवहार में एक मर्यादा होना चाहिए।ये कोई संकीर्ण या रूढ़िवादी सोच नहीं है ,बेटा ।आधुनिकता में यदि संस्कारों का मेल हो तो वह हर किसी को भाता है।मन और विचारों से आधुनिक बनो-बेटा ,’यही हमारी संस्कृति की पहचान है ।चलो अब बहुत लेक्चर हो गया कपड़े बदल कर आ जाओ तुमदोनों ।"
मेरे साथ मीठी और राहुल दोनों मदद कर रहे थे मेज़ पर खाना लगाने में तो मैंने दोनों के गाल पर प्यार कीमीठी छाप लगा गले से लगा लिया ।