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Meeta Joshi

Tragedy Inspirational

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Meeta Joshi

Tragedy Inspirational

मरहम

मरहम

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वंदना माँ के पैर छू जाने लगी तो माँ ने दही-गुड़ खिला, आशीर्वाद दिया, "ईमानदारी और लगन से अपना काम करना भगवान तुम्हारी दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की करें।"


बाहर निकली तो आनंद अंकल कार में बैठे इंतजार कर रहे थे। ऑफिस के दरवाजे पर जा गाड़ी रोकी। वंदना ने उतर उन्हें प्रणाम किया तो बोले, "वंदना ये तुम्हारी तरक्की की पहली सीढ़ी है। यहाँ से तुम्हें बस आगे ही बढ़ना है और मुझे विश्वास है तुम जरूर बढ़ोगी। जाओ बेटा एक नई दुनिया तुम्हारा इंतजार कर रही है।"

....अंदर जाते-जाते वंदना सोचती रही ..आज अंकल नहीं होते तो छोटी सी वंदना शायद यहाँ नहीं होती। जबसे उन्होंने उसका हाथ थामा तब से आज तक वो सिर्फ आगे ही बढ़ी है। उनकी बातों में एक कशिश सी होती है और उनका विश्वास.. मुझे किसी बाधा से डरने नहीं देता।


ऑफिस में अंदर पहुँची। आज पहला दिन था। सभी से परिचय करवाया गया। किसी कारणवश बॉस लंच के बाद आने वाले हैं। सबसे मिलने के बाद जब वह बॉस से मिलने पहुँची तो उन्हें देख हक्का-बक्का रह गई। हर्ष....उसके बचपन का मित्र। वह उसका बॉस है। हर्ष भी छोटी सी वंदना को इस रूप में तुरंत पहचान गया।

दोनों एक दूसरे से अरसे बाद मिले रहे थे। उसे लगा आज से जिंदगी बहुत आसान हो गई है। धीरे-धीरे मुलाकातों का दौर बढ़ता गया और दोनों एक दूसरे के करीब आ गए।वो माँ और अंकल से मिलवाने उसे घर ले गई और हर्ष भी अपनी माँ से मिलवाने अपने घर।हर्ष की माँ उसे देख बहुत खुश हुईं। आंटी के पास वो बचपन में भी बहुत जाया करती थी। हर्ष की माँ उसका रूप देख दंग रह गईं, वही लंबे बाल, साँवला रंग और माँ जैसी खूबसूरती।


जल्दी ही दोनों ने शादी का फैसला कर लिया। दोनों के घर वाले एक दूसरे को जानते थे इसलिए किसी को कोई परेशानी न थी। वंदना में गुणों की कोई कमी नहीं थी, शांत सुदृढ़ व व्यवहारिक लड़की थी। एक कुशल बहू के सभी गुण उसमें मौजूद थे। शादी का दिन पक्का कर दिया गया।


परिवार के लोगों से संपर्क कम था इसलिए शादी सादगी से सपन्न हुई। विदाई के वक्त माँ का रो-रो कर बुरा हाल था, "खूब खुश रहो मेरी बच्ची। माँ की दुआएँ हमेशा बच्चे के साथ होती हैं। बस यही कहूँगी जो पीछे है उसे यहीं छोड़ जाना। अपनी नई जिंदगी और नए लोगों को प्यार से अपनाना है।"


...जब माँ के गले लग बुरी तरह से रोने लगी तो आनंद अंकल ने उसे अपने कंधों का सहारा दिया।


"अंकल"....कह उनसे चिपट गई। आनंद अंकल की आंखों में आज उसने पहली दफ़ा आँसू देखें,"माँ की चिंता मत करना....मैं उसके घाव पर मरहम लगाने को हर वक्त उसके साथ मौजूद रहूँगा। अपनी नई जिंदगी को गले लगाओ। अनुभव बहुत कुछ सिखाते हैं और मैं जानता हूँ तुम एक समझदार लड़की हो तुमने अपने जीवन से हर सकारात्मक बात सीखी होगी। कोई गलती हुई हो तो अपना समझ माफ कर देना। यहाँ से सिर्फ मेरी मीठी यादों को साथ ले जाओगी ऐसा मुझे विश्वास है।"


आनंद ने वंदना का हाथ हर्ष के हाथ में देते हुए कहा,"आज से वंदना तुम्हारी जिम्मेदारी है। इसकी हर खुशी का ख्याल तुम्हें रखना है। मेरी बच्ची को कभी कोई परेशानी ना हो। मैं सब बर्दाश्त कर सकता हूँ बस इसकी आँख में आँसू नहीं।"


हर्ष ने विश्वास दिलाते हुए कहा,"आप निश्चिंत रहें अंकल। आपको कभी कोई शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।"


ससुराल में उसका भव्य स्वागत किया गया। सब कुछ होते हुए भी माँ और आनंद अंकल की कमी उसे महसूस हो रही थी।


रात कमरे में हर्ष आया तो उसने वंदना से कहा,"हम दोनों के बीच हमेशा विश्वास बना रहना चाहिए। जो रिश्ते विश्वास की नींव पर टिके हों उन्हें कोई हिला नहीं सकता और ऐसा ही.. मैं तुमसे चाहता हूँ।"


वंदना ने कहा, "मुझ पर हमेशा विश्वास रखना हर्ष। एक विश्वास ही पति-पत्नी के रिश्ते का आधार है ऐसा मैं भी मानती हूँ। मेरे जीवन की सच्चाई जानते हुए भी तुमने मुझे अपनाया,तुम्हारे माँ-पापा तक ने मुझसे कभी कोई सवाल नहीं किया।मैं समझ सकती हूँ कि आप लोग कितने सुलझे हुए विचारों के हो....।मैं अपना सर्वस्व अर्पण कर सिर्फ इस घर की बनी रहूँगी। पर हर कदम मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है। मैं नहीं जानती पति-पत्नी का साथ क्या होता है लेकिन जैसा साथ आनंद अंकल ने माँ का दिया वैसा ही हमेशा तुम, मेरा देना।"

हर्ष ने बताया,"जब रिश्ते की बात चली तब तुम्हारी माँ और आनंद अंकल आए थे। सारी बातें साझा करके गए। पर वंदू हमेशा से एक प्रश्न मेरे मन में रहा है क्या मैं तुमसे पूछ सकता हूँ। आनंद अंकल....?"


"मेरे पापा ने माँ को घर से निकाल दिया था। छोटी थी मैं, सात या आठ साल की। मुझे बस इतना ध्यान है पापा घर होते थे तो घर में रोज ही लड़ाई-झगड़े होते। माँ के साथ मारपीट करते। पापा जब भी कमरे में आते मैं सहम जाती थी और एक दिन बहुत लड़ाई करने के बाद माँ को हाथ पकड़ कर घर से निकाल दिया। कहते थे तुम बदचलन हो। तब मैं बदचलन का अर्थ भी नहीं समझती थी। वहीं एक आंटी रहा करती थी हमने वहाँ रात बिताई वो माँ से हमदर्दी रखती थीं। बस वहाँ से अगले दिन सुबह हम नानी के आ गए और फिर कभी वापिस नहीं गए। थोड़े दिन बाद जब माँ नौकरी ढूँढने निकलीं तो आनंद अंकल से मुलाकात हुई। आनंद अंकल की पोस्टिंग उसी शहर में थी। जब उन्हें माँ के विषय में पता चला तो उन्होंने माँ का पूरा साथ दिया। एक दिन अचानक हार्ट-अटैक की वजह से नानी भी हमें छोड़ चली गईं। अपना कहने को आनंद अंकल के अलावा अब कोई न था। धीरे-धीरे आनंद अंकल का आना भी मुश्किल होने लगा। लोग तरह-तरह की बातें बनाते। पापा से तालाक हुए दो-तीन साल बीत गए थे उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा मुझसे तो वैसे भी उन्हें कोई मतलब ही न था। हमें लगे हर घाव का मरहम आनंद अंकल थे।

अब लोग आए दिन माँ को नसीहत देने लगे उनसे परेशान हो हम घर बेच दूसरी जगह शिफ्ट हो गए। अंकल ने कोशिश कर माँ की नौकरी लगवा दी। वो हर संभव प्रयास करते हमारी सहायता करने के लिए।

नए मकान में आने के बाद पता नहीं क्यों एक ख़ौफ़ सा दिल में बैठ गया। यहाँ अकेले में डर लगता था। पूरी-पूरी रात मैं और माँ जाग कर निकालते। उस समय मैं दस-ग्यारह साल की रही होंगी। एक दिन मैं आनंद अंकल का हाथ पकड़ कर रोने लगी,"अंकल आप यहीं रुक जाओ। हमें रात को डर लगता है। मम्मा भी रोती है।" मेरा मन रखने के लिए आनंद अंकल देर रात तक रुकने लगे। मेरे सोने के बाद ही जाते और कई बार वहीं रह जाते। लंबे समय तक ऐसा ही चलता रहा। एक दिन पड़ोस में से किसी ने मुझसे पूछा, "ये कौन है ?तुम्हारे घर क्यों आते हैं?"

आनंद अंकल ने सुन लिया बोले, "मैं पापा हूँ इसका चाचा-ताऊ के बच्चों के साथ अंकल बोलना सीख गई। माँ बाऊजी छोटे भाई के साथ रहते है तो अक्सर वहाँ चला जाता हूँ।"

पड़ोसन के जाने के बाद अंकल ने मुझे समझाया यदि तुम चाहती हो कि मैं रात को तुम्हारे साथ रहूँ तो बाहर कोई भी मेरे लिए पूछे तो बाहर वालों को यही बताना कि मैं तुम्हारा पापा हूँ। मैंने हाँ कर दी। उस दिन से अंकल दुनिया वालों के लिए मेरे पापा ही थे।

मैं जब बड़ी हुई तो बहुत समय बाद मुझे पता चला अंकल और मम्मी किसी समय एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे। पर अंकल की माँ ने मना इनकार दिया था, इसी बीच नानी ने माँ की शादी जल्दबाजी में कहीं और कर दी। माँ की तो शादी हो गई पर अंकल ने कभी शादी न करने का फरमान जारी कर दिया।


अंकल हमेशा हमारे साथ रहे। हर कदम पर उनके रूप में पिता का साया मेरे साथ था। पर दोनों ने कभी विवाह नहीं किया। लोगों ने कुछ समय तक बातें बनाई। खुसर-पुसर होती रही पर धीरे-धीरे सब शांत हो गए। मैं बड़ी हो गई माँ की सच्ची सहेली के रूप में । इतने में वंदू रोते हुए बोली,"अब पता नहीं माँ कैसे रहेगी? अंकल अब भी उनका का साथ देंगे ना?"


हर्ष ने कहा,"बुरा मत मानना वंदू, जिस आदमी ने तुम्हारी माँ के खातिर कभी शादी नहीं की जीवन भर उनका साथ दिया। तुम्हारे पिता ना होते हुए भी पिता से बढ़कर तुम्हें प्यार दिया। और तुम लोगों ने.....तुम लोगों ने उन्हें क्या दिया! तुम्हें भी उन्हें उनके हिस्से का अधिकार देना चाहिए था।क्या कभी तुम्हारे मन में ये सब नहीं आया।"


हर्ष की बातों में दम था। अगले दिन पग-फेरे के लिए निकली वंदू कार में बैठी यही सोचती रही 'मैं नहीं जानती दोनों का संबंध क्या था! वो हमेशा मेरे अंकल ही रहे। वो इंसान जिसकी अँगुली पकड़कर मैंने पढ़ना सीखा जो हर डर से मुझे महफूज करते रहे। रात-रात भर मेरी बीमारी में मांँ का साया बने रहे। मैं नहीं जानती दोनों में क्या रिश्ता था सिर्फ दोस्ती या उसके ऊपर....!शायद अपनी मांँ पर अपना अधिकार रखने के लिए स्वार्थवश मैं कभी सोच ही न पाई....।


घर पहुँची तो माँ बेसब्री से इंतजार कर रही थी। गले लगाकर रोने लगी।

आनंद अंकल जमाई के पहले स्वागत में व्यस्त दिखाई दिये। सिर पर हाथ रख बोले,"ठीक है बच्चा? कितना याद किया अपनी मांँ को....?"

वंदू सोच रही थी कैसे कहूँ माँ से ज्यादा तो आपको याद किया। देख रही थी कैसे खिदमत में लगे हैं। हर चीज खाने में मेरी पसंद की बनवाई गई है।

माँ ने बताया आज तेरा जन्मदिन है ना तो सुबह से लगे हैं....।


वंदना ने हाथ पकड़ कर बोला,"अंकल बैठेंगे नहीं! कुछ पूछेंगे नहीं मुझसे? क्या गिफ्ट लेगी वंदू ये भी नहीं....एक यही तो मौका होता है जब मैं आपसे चला कर कुछ माँगती हूँ वर्ना तो आप कहने से पहले ही मेरी हर फरमाइश पूरी कर देते हो।"


आनंद ने मुस्कुरा कर कहा,"सब तेरा है बेटा। तुझे तो सिर्फ मुंह से बोलने की देरी है। बता बेटा,क्या लेगी?"


"ना तो नहीं कहेंगे? सोच लीजिए। हाँ कह कर मुकरना नहीं चाहिए।"


"अंकल,जबसे मैंने होश संभाला है आपने मेरे हर घाव पर मरहम लगाई है। आज एक घाव नासूर की तरह मेरे दिल को खोखला कर रहा है। क्या आप उसमें मरहम लगाएंगे?"


आनंद ने उतावले पन से कहा,"क्या मेरे बच्चे....ऐसी क्या परेशानी है तुम्हें?"


उसने माँ का हाथ पकड़ अंकल के हाथ में रख दिया, "यही मेरा घाव है अंकल। जिसकी मरहम आप हैं पर मरहम अंकल बन कर नहीं लगानी मेरे पापा बन कर लगानी है। मैं चाहती हूँ आप, माँ से शादी कर, इस रिश्ते को एक नाम दे दें। नहीं जानती मैंने इतनी सी बात को कहने में इतनी देर क्यों कर दी।ये सब कुछ तो मुझे बहुत पहले माँग लेना चाहिए था। शायद आज भी स्वार्थ है। पहली दफा खुद से अलग माँ को देखा तो लगा माँ के अकेलेपन के घाव को मरहम के रूप में एक साथी की जरूरत है और वो मरहम सिर्फ आप हैं। लेकिन पता नहीं क्यों समय रहते कभी समझ ही नहीं पाई।"


आनंद अंकल ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेर हांँ कर दी,"बेटा कुछ रिश्तों को निभाने के लिए नाम की भी जरूरत नहीं होती। तुम नहीं कहतीं तब भी मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी निभाता लेकिन तुमसे किया वादा तोडूंँगा नहीं, जो तुम चाहती हो वही होगा।"

वंदना खुशी से आनंद के गले लग गई,"मुझे पता था पापा आप मुझे कभी ना नहीं कहेंगे।"


वंदना ने हर्ष की तरफ देखा तो वह मुस्कुरा रहा था। हाथ पकड़ बोला,"मेरी बात मान उस पर विश्वास कर, विश्वास की पहली सीढ़ी में तुम पास हुई।"


कभी-कभी बिना नाम के रिश्ते भी ज़िंदगी में बहुत अहम होते हैं। खून के रिश्ते से ज्यादा विश्वास का रिश्ता लंबे समय साथ निभाता है।



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