मृगतृष्णा
मृगतृष्णा
पूरे गाँधी मैदान को घेर कर बांस बल्ला से पाट, पंडाल बहुत बड़ा और सुंदर बना था।आज बड़े बड़े मिनिस्टर आ रहे थे। मुख्यमंत्री का भाषण था। सुदूर गाँव व बस्ती से बस में भर भर कर लोगों को लाया गया था, सुंदर सपनों का जाल बिछाया। उस जाल में फंस कोई रात का भूखा, कोई सत्तू बांध अपने मंत्री से मिल अपना दुःख तकलीफ बताने आ गया।
मैदान में ही एक तरफ घेर कर पकवान बन रहा था। चावल दाल आलू मटर की सब्जी। खुशबू से नाक भरा जा रहा था। इतना लजीज भोजन तो कभी देखा भी नहीं था। आज मंत्री जी की कृपा से मिलने वाला था।
बड़े-बड़े मंत्री लोग सर्किट हाउस में खाना खाए पर छुटभैया लोग के साथ जनता जनार्दन बैठ कर स्वादिष्ट खाना खा अपने को धन्य समझ रही थी। सबको पूर्ण विश्वास था मंत्री जी आज एक एक आदमी की बात सुनेंगे और सबके समस्या का निराकरण होगा , गाड़ी के काफिले के बीच मंत्रीगण के संग मुख्यमंत्री पधारे। लम्बा-चौड़ा आश्वासन वाला भाषण हुआ। अंत में कहा गया सब कोई बारी बारी से अपनी समस्या बताएँ। आज हमलोग सबकी बात सुन कर नोट करेंगे और एक हफ्ते में सबका निराकरण होगा। भीड़ में से एक आदमी ने उठ कर बोलना प्रारम्भ किया। फिर दूसरा फिर तीसरा। तीन चार आदमी के बाद भीड़ में से ही आवाज आई "थोड़े में ही समस्या बताइए कि ताकि हर किसी को बोलने का अवसर मिले" हाँ हाँ की आवाज गूंजी। उस आवाज में मंत्री जी के कार की आवाज धीमे हो गई। कुछ देर के बाद लोगों ने देखा मंच से लगभग सभी मंत्री गायब हैं। अब छुटभैया लोग भाषण शुरू कर रहे हैं। तब तक रामलाल जो अपने गाँव के लोगों का अगुवाई कर रहा था मंच की ओर लपका। माइक पकड़ने ही वाला था कि माइक वहाँ से हट गई। पीछे से आवाज आई - 'ई का कर रहे हो रामलाल। बना बनाया काम बिगाड़ना है। मंत्री जी कहे हैं सो होगा। फालतू बात नहीं करो। एक सुनहरे जाल में घिर रामलाल वहीं धरासाई हो गया। जनता जनार्दन के बीच धीमे-धीमे कुछ खट्टी कुछ मीठी आवाज के बुलबुले उठने लगे।