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Anita Sharma

Tragedy Crime Inspirational

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Anita Sharma

Tragedy Crime Inspirational

मर्द का साथ जरूरी नहीं।

मर्द का साथ जरूरी नहीं।

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"माँ आप इतने सालों बाद भी क्यों वो पुरानी यादों को याद करके अपना मन दुखी करती है? अब तो हमारा उस आदमी से कोई वास्ता भी नहीं रहा। आपकी कड़ी मेहनत और मेरे प्रयास से अब तो मेरी नौकरी भी लग गई है। अब हम दोनों व्यवस्थित और अच्छी जिन्दगी गुजार रहे है। फिर क्यों आप बार- बार अपनी आँखे भिगोती है।"

प्राची अपनी दुखी माँ गुलाबो के पल्लू में खुद को समेटते हुये बोली।

अपनी बेटी की बातें सुनकर गुलाबो उसके बालों में उंगलियाँ फिराते हुये बोली....

"क्या करूँ बिटिया वो कड़वी याद भुलाये नहीं भूलती अगर उस दिन मैं जरा सी कमजोर पड़ी होती तो तुम्हारा वो सौतेला बाप तुम्हे उस शराबी के हाथों बेच ही देता। "

और उसदिन की याद में फिर एकबार माँ बेटी का मन कसैला हो गया। दोनों को ही यूँ महसूस होने लगा जैसे उस घटना को बर्षो न बीत कर अभी कल की ही बात हो......

अट्ठारह साल की गुलाबो की शादी एक बहुत ही नेकदिल इंसान से हुई थी । वो गुलाबो को खूब प्यार करता। और गुलाबो भी उसे टूट कर चाहती। जल्द ही गुलाबो ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया। दोनों ने अपनी बेटी का नाम बहुत प्यार से प्राची रखा।

अभी प्राची महज पांच साल की थी कि तभी उसके सर से बाप का साया और गुलाबो के माथे से उसके पति के नाम का सिंदूर मिट गया।

पति का साथ क्या छूटा कि जैसे पति के सारे रिश्ते नातेदारों ने उससे मुँह मोड़ लिया। सीधी शादी गुलाबो के पास न तो पैसा था और न हि किसी का साथ जो वो अपने हक के लिये आवाज उठा पाती।

इसलिये लड़कियों के एक मात्र सहारा अपने मायके आ गई। पर कहते है कि शादी के बाद मायके में रहने आई बिटिया का बोझ पहाड़ से भी बड़ा होता है। इसीलिये दो सालों में ही उसके बाबा ने मायके में भाभी द्वारा बार - बार अपमानित होती अपनी बेटी की बिदा दूसरे आदमी किशन के साथ कर दी।

गुलाबो भी बिना किसी विरोध के अपने बाबा के द्वारा दुबारा चुने रिश्ते में अपनी जिन्दगी खोजती चल दी। क्योंकि हम महिलाओं को हमेशा यही सिखाया जाता है कि आदमी भले ही कैसा भी हो पर एक औरत के साथ उसका होना ही काफी है। भले ही औरत ही उस आदमी को कमा कर खिला रही हो।

गुलाबो के साथ भी यही हुआ उसका दूसरा आदमी किशन न तो कुछ कमाने जाता। न ही घर का कोई काम करता । बस सारा दिन पड़े- पड़े शराब पीता रहता। और गुलाबो के कुछ कहने पर उसे खूब मारता।गुलाबो खुद ही दूसरों के घरों में बर्तन माँज कर पैसे कमाती। सभी को सिर्फ ये तसल्ली थी कि गुलाबो के सर पर किसी आदमी का साया है। इससे किसी को कोई मतलब नहीं था कि वो और उसकी बेटी कैसी हालत में रह रहे है।

गुलाबो ज्यादातर स्कूल से अपनी बेटी प्राची के आने से पहले घर आ जाती। अगर कभी उसे देर हो जाती तो उसका सौतेला बाप उसे खा जाने वाली निगाहों से घूरता। और प्राची डर के मारे अपने ही खोल में सिमट जाती।

धीरे - धीरे प्राची बड़ी हो रही थी। और पढ़ने में होशियार भी। एक दिन स्कूल से आते वक्त किशन के ही एक साथी की नजर जवान होती प्राची पर पड़ गई और उसने किशन से कुछ पैसों में उसका सौदा कर लिया। अगले दिनजब गुलाबो प्राची को स्कूल भेज काम करने गई तो किशन प्राची को स्कूल से ये बोलकर ले आया कि उसकी माँ की तबियत खराब है। और रास्ते में ही प्राची को अपने दोस्त को सौपने लगा।

वो तो अच्छा हो कि गुलाबो को किसी ने ये सब बता दिया और वो सब छोड़ -छाड़ अपनी बेटी को बचाने आ गई। रोती बिलखती प्राची अपनी माँ के आते ही किशन से हाथ छुड़ा उसके पीछे छुप गई।

किशन ने जैसे ही झपट्टा मार प्राची को पकड़ना चाहा, गुलाबो ने वहीं खड़ी एक किसान महिला के हाथ से हँसिया छीन कर हवा में लहराते हुये कहा....

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी को हाथ लगाने की ? अगर तुमने मेरी बेटी की तरफ एक कदम भी बढ़ाया तो मैं तुम्हे काट डालूँगी। "

हाथ में हंसिया लिये अपनी पंद्रह साल की बेटी को अपने पीछे छुपाये गुलाबो शेरनी बन दहाड़ रही थी। जिसकी दहाड़ सुन उसके दूसरे पति किशन के कदम वहीं जम तो गये थे। पर पीछे नहीं हटे थे। इसलिये इसबार गुलाबो ने बिजली सी फुर्ती दिखाकर हँसिये से उसके हाथ पर जोरदार वार किया। जिससे किशन के मुँह से एक जोरदार चींख के साथ हाथ से धार बांधकर खून बहने लगा। और वो दर्द से तड़फते हुये अपना हाथ पकड़ वहीं बैठ गया।

गुलाबो एक बार फिर अपनी बेटी के आगे ढाल बनकर खड़ी होते हुये गुर्राई . .... "शर्म नहीं आती अपनी बेटी का सौदा करते हुये! "

गुलाबो की बात सुनकर किशन के होठों पर बिषैली मुस्कान तैर गई । वो आँखो को नचाते हुये बोला .....

"ये तुम्हारी बेटी है मेरी नहीं। मेरे ऊपर तो ये एक बोझ है जिसे मैं आज कम रहा हूँ।"

और अपने खून सने हाथों से फिर एकबार प्राची को अपनी तरफ खीचना चाहा।

पर गुलाबो एक सिपाही की तरह बिल्कुल मुस्तेद होकर खड़ी थी। इसबार उसने हँसिये को सीधे उसके हाथपर बार किया। बार इतना जोरदार था कि किशन का हाथ उसके धड़ से अलग हो छट -पटाने लगा।

ये सब देखकर वहाँ खड़े लोगों की भी एक बारगी रूह काँप गई।प्राची को खरीदने आया किशन का दोस्त तो कब का भाग गया था। पर गुलाबो पर तो आज जैसे कोई भूत सवार हो गया था। अगर वहाँ खड़े लोग आज उसे पकड़ न लेते तो शायद वो किशन का खून कर देती।

गुलाबो गुस्से में बस बार - बार एक ही बात बोल रही थी कि... " तेरी हिम्मत कैसे हुई बाप बेटी के पवित्र रिश्ते को कलंकित करने की। आज में तुझे जान से मार दूँगी। "

अधमरी सी हालत में वहीं के कुछ लोगों ने किशन को डॉक्टर के यहाँ पहुँचाया। और गुलाबो ने प्राची का हाथ पकड़ कर हमेशा के लिए अपने पति का गाँव और सर पर एक मर्द का साया होने का विचार छोड़ दिया। और शहर आकर नये सिरे से जिन्दगी शुरू की। प्राची को पढ़ा लिखा कर इस लायक बनाया कि अब वो शान से जी सके बिना किसी मर्द की सहायता के।

तभी प्राची अपनी माँ के आँसू पोंछते हुये बोली....

" माँ उस समय जो मर्दो को लेकर डर मन में घर कर गया उसे हम मिटा तो नहीं सकते पर आपने मुझे इतनी हिम्मत दी है कि हम उस डर के साथ भी मुस्करा सकते है। इसलिये आजसे और अभी से हम सिर्फ मुस्करायेंगें वो भी बिना किसी के सहारे के सिर्फ अपने लिये। "

गुलाबो एकबार फिर अपनी बिटिया के सर पर हाथ रखकर भींगी पलको से मुस्करा दी। सिर्फ अपनी बेटी की खुशी के लिये। आखिर उसने अपने सगे कितने मर्दो से धोखा खाकर ये साबित कर दिया था कि अपने बच्चे की परवरिश के लिये किसी मर्द का साथ जरूरी नहीं। एक माँ ही काफी है।


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