Nand Lal Mani Tripathi

Classics Inspirational Others

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Nand Lal Mani Tripathi

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मनोरंजन क्षेत्र कल आज और कल

मनोरंजन क्षेत्र कल आज और कल

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मनोरंजन मानवीय मन, मस्तिष्क और सभ्यता, सामाजिक सरोकारों से संबंधित है। मनोरंजन मानवीय मूल्य संस्कृति, संस्कारों से संबंधित एक कला है जो क्रीड़ा, संगीत, नृत्य, शिक्षा आदि से संबंधित है। जिसका सीधा संबंध सभ्यता, संस्कृत, संस्कारों से है।

मनोरंजन आदि अनादि काल से मानवीय सत्ता का आकर्षण की मूल विधा है। भारतीय धर्म दर्शन में मनोरंजन को सवृद्धि स्थान प्राप्त है जिसे नृत्य, कला, संगीत के माध्यम से 

निरूपित किया जाता है। इंद्र की सभा में मेनका, उर्वशी का होना उनकी नृत्य कला उत्कृष्ट सांस्कृतिक, संस्कार मनोरंजन मूल्यों का देवत्व संस्कार को वर्णित करता है। तो खेल को भी मनोरंजन का ही हिस्सा स्वीकार किया गया है। शिकार, चौसर का खेल भी मनोरंजन ही है। मनोरंजन मानव मन, मस्तिष्क, शारीरिक, स्वास्थ्य के लिये प्रासंगिक और अति आवश्यक है। साथ ही साथ मनोरंजन मानवीय किसी भी समाज चाहे वह पूरब हो, पश्चिम हो, उत्तर हो, दक्षिण हो के लिये आवश्यक अनिवार्य हिस्सा है।

तरीके परिस्थिति परिवेश के अनुसार अलग अलग हो सकते है मगर सबका उद्देश्य यही होता है कि ऊबे मानवीय मन मस्तिष्क में नई ऊर्जा, उत्साह, उमंग का संचार कर कर्तव्य दायित्व के निर्वहन के लिये स्फूर्ति ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम हो समय, काल, परिस्थितियों के अनुसार मनोरंजन का स्वरूप भी बदलता गया राजाओं के दरबार में दरबारी कवि हुआ करते थे जो अपनी काव्य रचनाओं से जन जन का मनोरंजन करते भोज के राज्य कवि कालिदास और चन्द्र वरदायी इस मनोरंजन परम्परा के आज भी प्रेरक प्रेरणा स्रोत है। साथ ही साथ विद्वत जन का शात्रार्थ भी मनोरंजन का प्राचीन काल में साधन था। मनोरंजन के बदलते स्वरूप में कभी भी नृत्य से अलग नहीं हुआ लगभग सभी काल में मनोरंजन प्रसिद्ध परम्परा नृत्य था बाकायदे हर राज्य में इसके लिये नृत्यंगनाएं नियुक्त थी जो मनोरंजन की सशक्त परम्परा की अक्षुण्ण धरोहर के रुप में विद्यमान रहती ।त्योहारों की परम्परा भी मनोरंजन का ही एक हिस्सा है विश्व के प्रत्येक हिस्से मे त्योहार उस परिस्थिति परिवेश के सांस्कृतिक, धार्मिक, विरासत की याद या परम्परा के प्रतीक के रूप में मनाए जाते है। भारत में मौसम और दिन सुबह शाम परिवेश परिस्थितियों के अनुसार मनोरंजन को जोड़ा गया है जिसके अनुसार रागों का निर्माण नृत्य कला को परिभाषित किया गया है।

नाटक, नौटंकी का प्रचलन मनोरंजन की सशक्त विधा थी। जो समय के साथ साथ कमजोर पड़ती जा रही है। वास्तव में मनोरंजन स्फूर्ति, ऊर्जा का प्रभा प्रवाह है जिसके न होने से से समाज व्यक्ति में उदासीनता घर कर जाती है। मानव मस्तिष्क सार्थक परिवर्तन के सापेक्ष ऊर्जा प्राप्त करता है। मनोरंजन के साधन के रूप में नृत्यांगनाओं की बस्तियां बसाई जाती थी जिसने बाद में विकृत स्वरूप धारण कर जिस्म फरोशी में तबदील हो गई। मनोरंजन में खेल भी अहम स्थान प्राचीन काल से अब तक है। फ्रांस में सांडो की लड़ाई हो या भारत के दक्षिणी हिस्से का जली कट्टू मनोरंजन का ही साधन है अंग्रेजों ने क्रिकेट की शुरुआत मनोरंजन के तौर पर की थी जो आज भी बरकरार है।

मदारी, सर्कस, जादू ऐसे खेल थे जो प्रायः लुप्त होते जा रहे है जो प्रायः जानवरों और मनुष्यों का सम्मिलित मनोरंजन खेल था। परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत सत्य सिद्धान्त है जिसके कारण समाज के संस्कार, संस्कृतियों में समचीन परिवर्तन होते रहते है। लगभग हर क्षेत्र में परिवर्तन दृष्टिगत होते रहते है ।मनोरंजन के क्षेत्र में भी बहुत परिवर्तन हुए और क्रांतिकारी परिवर्तन हुये मनोरंजन जो सिर्फ मनोरंजन के लिए था और उसका समाज में कोई बहुत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं था। मगर परिवर्तन ने मनोरंजन क्षेत्र के हालात में बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ नौटंकी नाटकों का महत्वपूर्ण स्थान समाज में

 प्राप्त हुआ जो समाज को जोड़ने सामाजिक ऐतिहासिक क्षेत्रीय परिवेश को राष्ट्र को एकात्म रखने में मनोरंजन के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करते थे ।कठपुतलियों की परंपरा एवम् बहुरूपिया भी मनोरंजन के सशक्त माध्यम हुआ करते थे। मनोरंजन की दुनिया में वैज्ञानिक आविष्कार और वैज्ञानिकों ने  क्रांतिकारी परिवर्तन किया रेडियो का आविष्कार आने के बाद मनोरंजन के क्षेत्र में जबरदस्त बदलाव के संकेत मिलने लगे कैमरे का आविष्कार सिनेमा ने मनोरंजन की प्राचीन परम्पराओं को धीरे धीरे निगलना शुरू कर दिया परिणाम यह हुआ कि मनोरंजन व्यक्ति तक सिमट गया प्राचीन मनोरंजन में सामाजिक सरोकार और सामाजिक सिधान्तों की पुरातन प्रथा पर निर्भर थी। मनोरंजन के नए आयाम, आविष्कार के साथ मनोरंजन के क्षेत्र में आमूल चूल परिवर्तन हो गया फिर टेलीविजन और मोबाइल के आविष्कार ने व्यक्ति की पसंद के अनुसार मनोरंजन को उपलब्ध तो कराने में सफल रहा मगर सामाजिक संबंधों सरोकारों को सीमित बना दिया व्यक्ति थियेटर तक फिर मोबाइल तक सीमित हो गया आज हालात यह है कि मोबाइल ही व्यक्ति के मनोरंजन का साधन हो गया है टेलीविजन के कारण घर घर थियेटर मौजूद है ।तो मोबाइल ने पुरातनपंथी मनोरंजन परम्पराओं को जीवंत करने में भूमिका निभने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मोबाइल टेलीविज़न के माध्यम से नाटक, नृत्य, नौटंकी, गीत, संगीत, खेल आदि सभी को पुनः अपनी कलाओं का प्रदर्शन करने का शुभावसर प्राप्त हुआ है। केवल सर्कस, मदारी, कठपुतली ही मनोरंजन की पुरातन विधाएं हैं जिन्हें इस नए वैज्ञानिक युग में भी उचित सम्मान स्थान प्राप्त नहीं हो पा रहा है। नए आविष्कार से मनोरंजन की प्राचीन परम्पराओं को फलने फूलने का मौका तो मिल ही रहा है साथ ही साथ नई पीढ़ी जो आधुनिकता की चकाचौंध दौड़ में आत्म मुग्ध हो चुका था उसे अपनी प्राचीन संस्कृति, सभ्यता, संस्कारों से परिचित होने का अवसर और गौरव प्राप्त हो रहा है। टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले धार्मिक और ऐतिहासिक कार्यक्रमों सीरियलों ने समाज में खासकर युवाओं में स्वयं की पहचान के लिये जागृति का क्रांतिकारी आगाज किया है। नए मनोरंजन माध्यम में एक खासी कमी भी है आज मानव अपने घर और बन्द कमरे से ही जीवन के सभी अवसर आयामों का निर्वहन करता है। जबकि पहले मनुष्य को स्वयं एक दूसरे के साथ संबंधों का निर्वाहन प्रत्यक्ष करता था ।आज मनुष्य एकाकी और वर्चुअल हो गया है। एक्चुअल यानी वास्तविकता का मानव समाज विलुप्त होता जा रहा है जैसे पहले परिवार की संयुक्त प्रथा समाप्त हो परिवार पत्नी बच्चों तक सिमट गया उसी प्रकार आधुनिक मनोरंजन ने भी व्यक्ति को स्वयं में समेट लिया है। नतीजा यह है कि एक ही परिवार में कोई लेपटॉप के माध्यम से अपनी पसंद जी रहा होता है तो कोई मोबाइल से चैट कर रहा होता है तो कोई टेलीविजन पर अपना मन पसंद कार्यक्रम देख रहा होता है सभी आत्म मुग्ध खाने के टेबल पर ही अक्सर मिलते है। एक दूसरे की संवेदनाओं की जानकारियां एक दूसरे को नहीं रहती यह सार्थक परिवर्तन है या निरर्थक यह प्रश्न भविष्य के गर्भ से अपने उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा है। यह परम विकास का सद्भावना के समाज के निर्माण का समाज का मनोरंजन है या व्यक्तिगत संतुष्टि का समाज मनोरंजन।।



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