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Lokanath Rath

Tragedy Classics Inspirational

4  

Lokanath Rath

Tragedy Classics Inspirational

मन की बात ........

मन की बात ........

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सुमित्रा अपनी घर की काम काज ख़तम करके सोफे के ऊपर बैठ गयी। अपनी पसीना माथे से पोछते पोछते थोड़ी देर के लिए आंक बंद कर ली। आज इस ४५ साल की उम्र में शादी के बाद सिर्फ वो घर गृहस्ती की काम ही कर रही है। अपनी जो सपने थे उसको वो मन की एक कोने में छुपा दी है। अब सिर्फ अपने पति बसंत और बेटे राजेश के सारे इच्छाये पूरी करने में भी कभी कभी थोडीसी चूक हो जाती है तो उनसे ताना भी सुनती पड़ती है। उसकी सास और ससुर नहीं हैं। करे तो क्या करे ?कभी कभी अपने आप की ऊपर वो अभिमान भी करती है की क्या सोची थी और अब क्या निभा रही है ?अब वो अपनी वही सपनो को दबाके रख दी है।

सुमित्रा एक मध्यबित्त परिबार से है। अपने पिता माता की वो पहेली संतान है। वो लोग ५ भाई बहन है। पिता एक सरकारी कर्मचारी और माँ गृहिणी। उसकी पिता अब काम से भी अबसर ले चुके है। पर उसकी या उसकी सरे भाई बहनों को पिताजी ने पढने की बहुत प्रोस्चाहित करते थे। उनकी छोटीसी रोजगार में वो सब कुछ उनको देनेको कोशिस कर रहाहे थे। सुमित्रा भी पढाई लिखे में खूब तेज़ थी। उसने राजनीती बिज्ञान में एम् ए करने के बाद पि एच डी भी की हुई है। उसकी सपना था की एक ाची नौकरी करके अपनी पैरो में खुद कड़ी होगी और समाज के कुछ ाचे काम भी करेगी। पढाई के साथ साथ वो बकतृता प्रतजोगिता में भी खूब नाम कमाई थी। पर अपनी घर की स्थिति और समाज की परम्परा ने उसे मजबूर की शादी करके अपनी घर चलने के लिए। वो उसकी पिता माता की बात मान गयी। उसदिन वो खूब रोइ थी। शादी के बाद ससुराल में उसे नौकरी करने नहीं दिए। उसकी पास और कुछ चारा भी नहीं थी सिवा की घर और गृहस्थी को सँभालने के सिवा। उसकी पति एक सरकारी अधिकारी है। अब बीटा भी दसवीं कख्या में पढ़ रहा है। कभी कभी वो उसकी बेटे के जरिये अपनी कुछ सपने पूरा करने कोशिश करती है। उसे वो बकतृता प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रेरित करती है। उसकी बीटा राजेश भी पढ़ने में बहुत तेज है। कभी कभी वो सुमित्रा को पूछ लिया करता है। '' आप मुझे कियूं बकतृता प्रतियोगिता के लिए इतने प्रेरित करते है माँ ?''

सुमित्रा चुप रहती है और बात को घुमाके बोलती है की ये तुम्हे और स्मार्ट और काबिल होने में मदत करेगा। रमेश भी बहुत प्रति योगिता जीत चूका है। अब उसका दसवीं की परिख्या है और रात दिन सुमित्रा उसका पढाई में मदत भी करती है।

अब सोफे से उठके सुमित्रा फिर घर की काम पे लग गयी। ये तो उसकी रोज की काम है। बसंत दप्तर से आगये और राजेश भी आगया था। देखते देखते राजेश का दसवीं की परिख्या ख़तम हुआ और अचे नंबर के साथ पास भी हुआ। उसका पढाई एक अछि कालेज में सुरु हुआ। देखते देखते समाया के साथ साथ साल गुजर गया पर सुमित्रा की काम की कुछ कमी नहीं हुई। राजेश पि जी ख़तम किया राजनीती बिज्ञान में वो अब भारतीय सेवा में आई ए एस का तैयारी सुरु किया। अब सुमित्रा को लगने लगा की उसकी बेटे के जरिये अपनी मन की बात को पूरी करेगी। वो भी राजेश को तैयारी के लिए बहुत मदत और मेहनत किया। राजेश को सुमित्रा से बहुत मदत मिल रहा था और उसका मनोबल और बढ़ते जा रहा था। आई ए एस की सरे परिख्या ख़तम हुआ अभी नतीजे की इंतजार। बसंत किन्तु चाहते थे रमेश डाक्टर बने। वो इसमें खुस नहीं थे। उनको रमेश की कामियाबी पर बिलकुल भरोसा नहीं था।

कुछ दिन के बाद आई ए एस की नतीजा आया। सुमित्रा अपनी घर की काम में ब्यस्त थी। बहार से राजेश एक कागज़ के साथ आया और सुमित्रा को गले में लगा के बोला,'' माँ में आई ए एस बन गया। '' सुमित्रा वो कागज को देख के रो रही थी। उसमे देखि की राजेश ने १५ स्थान प्राप्त किया है। उसका माँ की आँखों में आंसू देख के राजेश ने बोला ,''क्या आप खुस नहीं है? कियूं रो रहे है ?' सुमित्रा रट रट बोली ,''नहीं बीटा आज में बहुत खुस हूँ। ये मेरे खुसी की आंसू है। इतने दिनों के बाद मेरी मन की बात जो छुपी हुई थी ,वो सच हो गया। तूने ये सब कर दिखाया। '' तब आंसू पोछ के वो थोड़ी खुलके हसी। '' रमेश सुमित्रा को कभी इतनी खुसी से हँसने देखा नहीं था। बसंत भी आ चुके थे। वो भी खुश हुए और सुमित्रा को बोले ये सब तुम्हारी सोच, विश्वास और मेहनत की नतीजे।


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