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Bhavna Thaker

Classics

4  

Bhavna Thaker

Classics

ममता की छाँव

ममता की छाँव

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"ममता की छाँव"

जब माँ की ममता का शामियाना था सर पर जब तक कहाँ कोई दर्द की कोई ख़लिश पहुँच पाती थी मुझ तक, माँ क्या गई ज़िंदगी की चुनौतियाँ का अहसास होने लगा। जब माँ साथ होती है तब तक हमें कद्र कहाँ होती है उस ममता की छाँव की। आज भी दिल चर्रा उठता है अपनी गलती पर, जी हाँ मेरा एक गलत फैसला और अफसोस ज़िन्दगी भर का रह गया। उस वक्त मेरी माँ का रोना क्यूँ नहीं समझ पाई मैं वो आज याद आ रहा है सबकुछ..

कितना कुछ बदल गया था मायके में शादी के कुछ साल बाद, कहाँ गई वो चहल-पहल जब माँ थी, मेरे आने की खबर सुनते ही वो झुर्रियों वाला चेहरा खिल उठता था, माँ खुद अपने हाथों से मेरी पसंद की सारी चीज़ें बनाती थी, जितने दिन रहूँ मानों माँ का दिल भरता ही नहीं था, मैं भी पूरे हक से घर पर कब्ज़ा कर माँ को नये-नये कामों में हाथ बटाती थी। और लौटते समय अचार, पापड़, वडीयां और मसाले अपने हाथों से बनाकर पैक करके जबरदस्ती साथ में बाँध देती , और मिरची का अचार जो उनके दामाद जी का पसंदीदा वो कभी नहीं भूलती थी।

और हाँ सबसे छुपकर वो सो का नोट मेरे हाथ में थमाकर पापा को अलग से बोलती कि बिटीया जा रही है सगुन के पैसे दीजिए। पापा भी जानते होते थे की खुदने तो दिये ही होंगे फिरभी दिलवा रही है ,दोनों की आँखों से हो रही गुफ़्तगु देख में खुश होती थी। अब जब जाती हूँ मायके तो भरा-पूरा घर भी माँ की मौजूदगी के बिना काटने को दौड़ता है ,पापा , भैया ,भाभी सब बडे जतन से रखते है पर माँ की कमी कोना-कोना महसूस करवाता है ॥

"मेरी ज़िन्दगी का सबसे बडा गलत फैसला आज भी कई बार नींद उडा देता है" मेरी माँ को कैंसर था , उसके अवसान के कुछ दिन पहले पूरा एक हफ़्ता रही उसके साथ, तबियत कुछ ठीक थी और मुझे एसा कोई अंदाज़ा नहीं था की माँ अब बस दो दिन की मेहमान है तो मैं वापस घर जाने लगी , पर पहेली बार माँ रो रोकर कह रही थी कुछ दिन रुक जा मेरा कोई भरोसा नहीं, कब उपर चली जाऊँ, मैने माँ को जैसे तैसें समझाया और चली आयी घर।

पर आज भी माँ का रोना अफ़सोस की आग लगा जाता है क्यों नहीं समझी मैं, क्यूं चली गई माँ को रोता छोड़ बस दो दिन की तो बात थी..!

हाँ मेरे धर वापस आने के दो दिन बाद ही भैया का फोन आया जल्दी आजाओ माँ आख़री साँसें गिन रही है ,फोन आते ही तुरंत निकली महज़ चार घंटे का रास्ता था पर हाय री किस्मत आधे रास्ते में थी की भैया का मोबाइल पे कोल आया माँ नहीं रही..!

अब आज तक कोस रही हूँ मेरे उस फैसले को ... अगर दो दिन रुक जाती तो माँ को आख़री समय मिल पाती। मेरी माँ पर क्या बीती होगी उसकी जान मुझ पर अटकी थी। जब उसे रोता छोड मैं निकल गई थी पर अब तो बस माँ की यादें और एक टीस ही बची है। जो कभी-कभी बहुत ही झकझोर जाती है...जब माँ का ज़िक्र होता है ईतना ही बोल पाती हूँ मिस यू माँ।

भले माँ नहीं रही पर ताउम्र उसके अहसास से बंधा रहेगा मेरा अस्तित्व, मेरा दिल हंमेशा माँ के ऋजु दिल की नर्मी महसूस करता रहेगा, मेरी रूह मेरी भोली माँ की ममता को तड़पती रहेगी, मेरा तन मेरी माँ की आभा की ऋचाओं से महकता रहेगा, माँ की संघर्षों से जूझने की क्षमता पग-पग मुझमें उर्जा का संचार भरती रहेगी, जब-जब में गिरूँगी ज़िंदगी की ठोकरों से टकराती मैं जानती हूँ मेरी माँ की दो भुजाएं मातारानी के आशिर्वाद सी मुझे थाम लेगी, मेरी हर साँस में बहती है मेरी माँ उस ममता की मूरत सी छवि बनूँ अपने बच्चों के लिए तभी मेरा जीवन सार्थक होगा। माँ के सिखाएं जीवन के हर पाठ को बखूबी निभाऊँगी। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

दोस्तों कभी माँ का दिल मत दुखाना क्यूंकि जब वो नहीं रहती तब उसकी अहमियत पता चलती है॥


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