मिट्टी से जुडाव
मिट्टी से जुडाव


भोलानाथ जी ने अपने इकलौते बेटे को शहर पढने भेज दिया।अपने खेत में दिन रात मेहनत कर पाई पाई जोड़ कर पढाई का खर्च संभाला, पढाई करते करते बेटा शहर का हो गया, नौकरी मिलते ही ,अपनी पसंद की लडकी से शादी करके शहर में ही बस गया।यदाकदा कभी वार त्योहार पर भोलानाथ जी के बुलाने पर ही बेटा गांव आता।
पत्नी के स्वर्ग सिधारने के बाद भोलानाथ जी बिल्कुल अकेले हो गये तबियत भी नरमगरम रहने लगी।
बेटे को खबर हुई वह भोलानाथ को शहर लिवा ले गया। पंद्रह दिन बाद भोला वापिस गांव चले आये।उनका मिट्टी प्रेम उन्हें गांव खींच लाया वे अपने खेत में श्रम किए बिना नहीं रह पाते थे।
इधर गांव वाले भोलानाथ को कहते अरे भोला क्यों बुढापे में इतनी तकलीफ उठाते हो शहर जाकर बेटे के साथ रहो ,उधर रिश्तेदार बेटे को कहते पिता को अकेला मत छोडो शहर ले जाओ।।
भोलानाथ जी के मना करने पर भी बेटा जबरन उन्हें शहर लिवा लाया।भोलानाथ जी आदत से मजबूर थे,जब तक दो चार घंटे खुरपी से श्रम नहीं कर लेते उन्हें चैन नहीं था मिट्टी से उनका अनौखा जुडाव था ।उन्होंने अपने बेटे के यहाँ गमलों में सुंदर सुंदर फूलों के पौधे लगा दिए।
इससे भी संतोष नहीं मिला तो कोलोनी के सामने तथा आसपास पेड़ पौधे लगा दिये और उनकी देखभाल करने लगे।कोलोनी के लोगों ने इस नेक काम के लिए उनकी खूब सराहना की।
एक दिन बेटा उन्हें पास ही के पार्क में घूमने ले गया।पार्क की दशा देखकर भोलानाथ को लगा कि वह अपनी सेवा देकर पार्क को खूबसूरत बना सकते हैं। अपनी इच्छा अपने बेटे को बताई।बेटे ने सोचा पिताजी को खुशी मिलती है तो भले अपनी सेवाएं दें।
भोलानाथ हरदिन पार्क में श्रमदान करते, घासफूस निकाल कर उन्होंने क्यारियां बनाई और फूलों के पौधे लगा दिये।पुराने सूखे पेड़ पौधों की जगह नये लगा दिये।कुछ ही समय में पार्क की सूरत ही बदल गई।पार्क रंग बिरंगे फूलों से सुशोभित हो गया।पार्क में आने वाले हर व्यक्ति ने इस खूबसूरती को नोटिस किया और माली की सराहना की।
एक दिन म्युनिसिपल कमिश्नर ने शहर के सभी पार्कों का दौरा किया।इस पार्क की हरियाली और रखरखाव को देख वे बहुत खुश हुए।उन्होंने पार्क के माली को शाबाशी देने बुला भेजा।
सहायक ने बताया कि साहब यहां के माली की जगह तो छ महीने से खाली पडी है। जिसे ये जिम्मेदारी सोंपी थी वह भी छुट्टी पर चल रहा है। तो फिर कौन है जो अपनी सेवाएं दे रहा है।
..अगले दिन कमिश्नर पार्क में घूमने आते हैं, भोलानाथ को पार्क में श्रम करते हुए देख उसके पास जाकर पूछते हैं क्या आप यहां के माली हैं?
साहब मेरा नाम भोलानाथ है लेकिन मैं यहां का माली नहीं हूं।मैं तो पास के गांव का किसान हूँ। अपने बेटे के साथ पास ही कोलोनी में रहता हूँ।एक दिन बेटे के साथ यहां आया था, पार्क की हालत खराब थी ,कईबार आया कोई माली दिखाई नहीं दिया, मुझे श्रम बिना रहा नहीं जाता।मैं अपनी सेवाएं देने चला आता हूं ।
आइये आप मेरे साथ, गाड़ी में बैठिये आप के घर चलते हैं। रास्ते में उन्होंने अपना परिचय भोलानाथ को दे दिया।। कोलोनी के लोग चकित थे आज कोलोनी में म्युनिसिपल कमिश्नर की गाड़ी आई है।,
आप अपने बेटे को बुलाकर लाईये मैं यहीं इंतजार करता हूँ।वे बेटे को बुला कर लाते हैं।बातचीत होती है वे उन्हें अपने आफिस में आने का कह कर चले जाते हैं।
पंद्रह अगस्त के दिन भोलानाथ को निस्वार्थ बिना पारिश्रमिक पार्क में श्रम करने के लिए श्रेष्ठ नागरिक का प्रशंसापत्र दिया जाता है। तथा उसी पार्क में अपनी सेवाएं देने के लिए अस्थायी तौर पर नियुक्त कर दिया जाता है।