mujeeb khan

Abstract

5.0  

mujeeb khan

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मीठी सी टीस

मीठी सी टीस

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"आइये आइये अनवर मिया " अपने बचपन के दोस्त अनवर को आता देख मनोहर लाल अपना कुर्ता ठीक करते हुए बोले।

" कैसे है मनोहर लालजी"? अनवर मिया ने हाथ मिलाने को बढ़ाते हुए पुछा।

 " बस आप जैसे ही है टूटे फूटे" मनोहर लाल जी व्यंगात्मक लहज़े में चुटकी लेते हुए कहा  और दोनों हंस पड़े।" इसी मजाकिया अंदाज के तो हम कायल हैं मनोहर भाई" अनवर मिया ने हंसी रोकते हुए कहा। 

"अरे हँसते गाते रहना चाहिए, सुख दुःख तो जीवन का एक हिस्सा है " मनोहर लाल का अंदाज़ इस बार दार्शनिक का सा था  ।

 " पर सुख की चाहत में कितने दुःख झेले और फिर सुख आया तो भोग नहीं पा रहे, अब भी दुःख ही झेलने पड़ रहे है " अनवर मिया का स्वर थोड़ा ग़मगीन हो चला था। 

 "बात तो तुम्हारी सही है अनवर मिया" मनोहर लाल भी इस बार गंभीर होते हुए अपने दोस्त की हाँ मे हाँ मिलाते हुए नज़र आये। पर माहौल को भारी होता देख तपाक से  बोले "अरे छोड़ो मिया, बताओ चाय पीयोगे "?

 "क्यों नहीं भाई, नेकी और पूछ पूछ " अनवर भाई को चाय के लिए हामी भरते देख मनोहर लालजी ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई "अरे उर्मिला, सुनती हो ज़रा चाय बनाना अनवर भाई आये हैं " 

" जी अभी लायी " अंदर से उर्मिला भाभी की कंकपकाती आवाज़ सुन के अनवर मिया फिक्रमंद होते हुए पूछ बैठे "भाभी की तबियत तो ठीक है ना"मनोहर लाल लम्बी साँस भरते हुए बोले " हाँ घुटने के आपरेशन के बाद अब चल फिर लेती है  बस अब बायीं आँख मे मोतियाबिंद का आपरेशन करवाना है"

 "ओह, तो सुनील या अनिल दोनों में से किसी के अमेरिका से आने पर ही करवाओगे " अनवर मिया ने जिज्ञासावश पुछा।

 " अरे नहीं, "एक लम्बी सांस लेते हुए अपनी पीड़ा को छुपाते हुए मनोहर लाल बोले' "दोनों बड़ी MNC में काम करते हैं, बड़े ओहदों पर हैं, बड़ी ज़िम्मेदारियाँ है, छुट्टी नहीं मिलती आसानी से, और अनवर मिया दोनों आ कर करेंगे भी क्या ? जो करेगा वो तो डॉक्टर ही करेगा। मनोहर लाल ने व्यंग से अपनी पीड़ा छुपाने की नाकाम कोशिश की।

 "पर फिर भी। अनवर मिया की चिंता बरक़रार थी। 

"अरे अनवर मिया आजकल के अस्पताल में मरीज़ की देख रेख, दवा दारू सब अस्पताल वाले ही करते है,हम लोगो को तो थोड़ी देर के लिए बस मिलने जाने देते है बाकि सारा काम उनके ही ज़िम्मे रहता है अपनी नो टेंशन " मनोहर लाल अपने दर्द को तर्क से ढंकते हुए बोले 

" हाँ बात तो सही है " अनवर मिया ना चाहते हुए भी अपने दोस्त की पीड़ा को भांपते हुए सहमत होते हुए बोले। इतने में चाय आगयी ,कप पकड़ाते हुए उर्मिला ने अनवर मिया से पुछा  "रुकसाना भाभी कैसी है ? बहुत दिन हुए मिली नहीं। इस बार अनवर मिया के चेहरे पर पीड़ा उभर आयी लम्बी सांस भर के बोले " हाँ भाभी,वैसे तो ठीक ही है बस कमर दर्द से परेशान है सो ज्यादा काम नहीं कर पाती और जब से इमरान अपने परिवार को दुबई ले गया है सारा काम यूँ समझ लीजिये मुझे ही करना पड़ता है " एक फीकी सी मुस्कराहट से माहौळ को हल्का करने का प्रयत्न करते हुए अनवर मिया बोले

अपने दोस्त की पीड़ा को भांप के मनोहर लाल ने माहौल को हल्का करने में मदद करते हुए पूछा "अरे इमरान सेट हो गया दुबई में?" " हाँ आपकी दुआ और अल्लाह के शुक्र से सब कुछ अच्छा चल रहा है" कहते हुए अनवर मिया संतुष्ट नज़र आये।  

चाय की चुस्कियो के बीच एक अजीब से चुप्पी माहोल में छा गयी और दोनों दोस्त अपने बच्चों की यादों में खो गए, चुप्पी को तोड़ते हुए अनवर मिया बहुत गंभीर होते हुए बोले " सुनील, अनिल को गए चार साल हो गए, इमरान को भी अगले महीने २ साल हो जाएंगे, बच्चो की बेहतरी और कामयाबी के लिए हमने कितने दुःख झेले, और शायद इसीलिये सब दुःख और दर्द बर्दाश्त कर लिए की कंही  एक  इच्छा थी की बुढ़ापा आराम से काट जायेगा, पोते पोती को खिलाएंगे, बच्चे हमारी देखभाल करेंगे और घर भी संभाल लेंगे। "पर" कहते कहते अनवर मिया का गला भर आया, "पोते पोती तो दूर, अपने बच्चो को देखे भी सालों निकल जाते है कभी कभी तो डर लगता है की कही उनको देखे बिना ही आँख न बंद हो जाये हमेशा के लिए" अनवर भाई की आँखों की किनारों पे आंसू की बूंदे डेरा जमा चुकी थी पर अनवर मिया रुके नहीं, अपने दोस्त मनोहर की तरफ देख के बोले "क्या वो मेहनते, दर्द, तकलीफे हमने इस दिन के लिए उठाई थी ?आज उर्मिला भाभी के घुटने का ऑपरेशन हुआ तो अनिल सुनील नहीं आये,कल उनका आँखों का ऑपरेशन होगा तो भी नहीं आएंगे। तुम्हारी भाभी चल फिर नहीं सकती, मेरी उम्र भी ऐसी नहीं की भाग दौड़ कर सकू, नज़र दिन ब दिन कमज़ोर हो रही है, इस बुढ़ापे में हम अपने बच्चों के होते हुए दूसरे लोगो के मोहताज़ है। अनवर मिया की आवाज़ में हताशा साफ़ नज़र आरही थी। अपने दोस्त को रुआंसा होते देख मनोहर लाल ने अनवर भाई का हाथ अपने हाथ मे लेते हुए कहा "यही जीवन है अनवर भाई।

"हुंह क्या ख़ाक जीवन है अनवर मिया खीजते हुए बोले।  

दोस्त को परेशां होता हुआ देख के मनोहर लाल जी ने दोनों हाथों से अनवर भाई के हाथो को थामा और आगे बोलना शुरू किया “ इस संसार में जो सबसे ज्यादा मिथ्या है वो है जीवन, ये मृग मरीचिका के समान है और हम उस मृग की भांति जो रेगिस्तान में पानी की चाह में भागते भागते दम तोड़ देता है। जितनी जल्दी इसे समझ जाओगे सुखी रहोगे, हम अपने सुख के लिए, बच्चो के भविष्य के लिए उम्र भर भागते रहते हैं और अंत में जैसे तुम हताश हो गये वैसे हताश हो जाते हैमेरे दोस्त ये समझ लो की जीवन एक रंगमंच है और सब कलाकार, अपना अपना किरदार निभाते है हम। सृष्टि के वाहक है,,उसको आगे बढ़ाते है, मनुष्य आँखे खोलने से लेकर आँखे बंद करने तक अपने लिए, अपने परिवार और अपने आसपास के वातावरण के लिए क्या उपलब्धिया हासिल करता है वही उसकी सफलता होती है और इसमें अपेक्षा का कोई स्थान नहीं होता, अपना किरदार निभाए जायो बस। और अपेक्षा मत रखो ये सोचो की मैंने अपने परिवार, अपने वातावरण और अपने से जुड़े लोगो के लिए क्या किया न की उन्होंने मेरे लिए क्या किया। आज हमने अपने बच्चों को हमारे से अच्छा जीवन दिया और वो भी अपने बच्चो को उनसे अच्छा जीवन देंगे और ये सब हमारी वजह से होगा। क्या फर्क पड़ता है की वो नज़रों से दूर है दिल के तो करीब है कहते कहते मनोहर लाल जी का गला भर् आया और अनवर मिया भी अपने आंसुओ को रोक नहीं पाए अपने को संयमित करते हुए बोले “हां मनोहर भाई यही जीवन है आज मुझे भी समझ आगया। ”इसी बात पे एक एक प्याला और चाय हो जाये”! मनोहर लाल जी अपने चिरपचित अंदाज़ में कहा। "क्यों नहीं " अनवर मिया ने भी हामी भर दी और दोनों दोस्त ठहाका लगा के हंस पड़े। पर उस ठहाके में जीवन की एक मीठी सी टीस महसूस की जा सकती थी                           


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