Shobhit शोभित

Romance

4.9  

Shobhit शोभित

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मेट्रो का एक अनजाना प्यार

मेट्रो का एक अनजाना प्यार

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मेट्रो अभी रुकी ही थी और मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई थी, यही था वो मेट्रो स्टेशन, जहाँ से वो चढ़ती थी।

“वो रही! आज गुलाबी सूट में बहुत अच्छी लग रही है।” उसको मेट्रो में आते हुए देखा तो यही ख्याल आया और ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरा दिल सीना फाड़कर बाहर आ जायेगा, दिल बहुत जोरों से धड़क रहा था।

रोज की तरह वो मेरे नजदीक आई और ‘महिला आरक्षित सीट’ पर बैठे हुए शख्स को उठाकर खुद बैठ गयी। वो और मैं बिलकुल बराबर बराबर थे और मुझे पता था कि वो मेरे पास केवल 4 स्टॉप तक के लिए ही है और उसके बाद फिर सीधे कल मिलेगी।

मैं उसको पिछले 2 महीने से देख रहा था, न तो मुझे उसका नाम पता था और न ही उससे कोई बात हुई थी।

“कैसे बात करूँ इससे ? क्या सोचेगी ये मेरे बारे में ? कहीं ये मुझे कोई लोफर तो नहीं समझेगी ? कहीं ये शोर मचाकर भीड़ तो इकट्ठी नहीं कर लेगी ?” यही कुछ मेरे दिमाग में रोज की तरह आज भी घूम रहा था।

वैलेंटाइन डे क़रीब ही है और मुझे इससे बात करनी ही पड़ेगी।

वो बिलकुल बराबर में थी तो मैंने देखा कि शायद गाने सुन रही थी, कम से कम उसके कान में ठुंसे हुए इयरफ़ोन तो यही दिखा रहे थे। वो बीच बीच में कभी दुपट्टे से तो कभी सूट की किनारी से अपनी ऊँगली घुमा घुमा कर खेल रही थी और मुझे उसकी ये हरकत बहुत अच्छी लग रही थी।

“अरे अरे अरे, शायद अभी वो मेरी तरफ देखकर मुस्कुराई थी।” एक दम से मेरे दिमाग ने सचेत किया, मैं अपने आप को बात करने के लिए तैयार करने लगा।

“क्या कहूँ इससे ? ‘हेल्लो’ से शुरू करू ? या कोई साधारण सा प्रश्न पूछ लूँ ? क्या एकदम से उसकी ख़ूबसूरती की तारीफ कर दूँ ?.. ये करूँ ? या वो करूँ ? या कुछ और करूँ ?”

“एक पेन ही माँग लेता हूँ, यह बोलकर कि घर रह गया और अभी कुछ बहुत जरुरी लिखना है..” एकदम से ख्याल आया, “.. हाँ ये सही रहेगा, एक बार बात शुरू होगी तो फिर होती रहेगी।”

मैं अपने आप को सँभालते हुए उसकी तरफ घूमा और..

बस मुँह खोलने ही वाला था कि वो उठकर मेट्रो के दरवाजे के पास खड़ी थी। अब पेन माँगने का कोई फायदा नहीं था, मुझे देर हो गयी थी।

“.. स्टेशन आने वाला है, दरवाजे दाई और खुलेंगे, कृपया हटकर खड़े हो।”

ये मेट्रो में गूंजती हुई आवाज़ मुझे पिघले हुए लोहे जैसे अपने कानों में आती हुई लगी।

उसने बस एक बार सेकंड के हजारवें भाग बराबर से मुझे देखा और उतर गयी।

और इधर मैं सोचता ही रह गया, “अब कल मैं क्या करूँगा ? क्या कैसे बोलूँगा ? जब वो कल फिर से मेरे पास आएगी चार स्टेशन के साथ के लिए।”

“क्या मैं बोल पाऊँगा उसको अपने दिल का हाल ?”


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