सुरक्षा नियम से या नियत से
सुरक्षा नियम से या नियत से
कुछ हफ्ते पूर्व, मेरे कान में दर्द था और मैं अपने भाई, जो कि एक ENT सर्जन हैं, के पास इलाज के लिए बाइक से मुरादाबाद जा रहा था। रास्ते में एक तिराहा था और काफी पैदल मुसाफिरों को रोड क्रॉस करनी थी तो पुलिस ने हमारी साइड में हाथ से रुकने का इशारा किया। सड़क पर लोगों ने रोड क्रॉस करना शुरू कर दिया।
मैं अपनी बाइक रोककर सड़क खुलने का इंतज़ार करने लगा। तभी पीछे से एक जोर की टक्कर लगी, बाइक गिरी, मैं गिरा। अभी मैं पहले अपने शरीर को उठाने की प्रक्रिया में ही था कि फिर से टक्कर लगी मेरे नितम्बों पर। इस बार मैं उछलते हुए थोडा आगे गिरा। इस बार गिरने से पहले जब तक हवा में था तो ऐसा लग रहा था कि शायद यह मेरी ज़िन्दगी के अंतिम छण हैं, उन कुछ गिने चुने छणों में ज़िन्दगी में जितने महत्त्वपूर्ण लोग हैं सब आँखों के सामने घूम गए कि अब मेरे बिना इनकी ज़िन्दगी कैसी होगी।
जिस जगह मैं गिरा उस जगह हनुमान जी की एक बहुत विशाल प्रतिमा लगी हुई है (इस जगह को हनुमान मूर्ति तिराहा ही बोलते हैं) मेरी गिरने की जगह ठीक उनके चरणों में थी। खैर मेरे गिरते ही उस बस के आगे तमाम लोग खड़े हो गए उसे रोकने के लिए, उससे ज्यादा मुझे उठाने के लिए। सबकी, चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, जुबान पर एक ही बात थी कि आज मंगलवार के दिन आपको हनुमान जी ने ही बचाया है, वर्ना ऐसे गिरने पर तो कुछ भी हो सकता था।
होने को बहुत कुछ हो सकता था जैसे मैं या बाइक बस के नीचे आने की जगह, उसके पहिये के नीचे आ सकते थे।
बस की रफ़्तार और तेज हो सकती थी। मैं इस दुर्घटना में सुरक्षित रहा, सर पर हेलमेट होने के कारण, पैर में अच्छे जूते होने के कारण।
अगर ये दोनों नहीं होते तो तरबूज फट जाता और पैर रगड़ खाकर बुरी तरह छिल गए होते। मुझे लगता है कानून और जुर्माने के बिना भी हमें अपनी सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए।