नैतिकता
नैतिकता
आखिर किस चिड़िया का नाम है नैतिकता, बचपन में यह शब्द सुना ज़रुर था पर इसका अर्थ मुझे कई साल बाद एक पराये देश में जाकर पता चला।
हुआ कुछ ऐसा कि मेरे अफ़्रीकी प्रवास के शुरुआती दिन थे, पता चला कि समुद्री किनारा मेरे ऑफ़िस से कोई ज्यादा दूर नहीं। एक दिन शाम को जल्दी छुट्टी हुई तो मन हुआ कि वहां घूमने चलता हूँ, बाकी साथियों के कुछ और प्लान थे और ये पता ही था कि कोई ज्यादा दूर नहीं तो सोचा कि क्यों नहीं मैं अकेला ही चला जाऊँ।
दक्षिण अफ्रीका की पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बसें हमारे यहाँ की पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बस से लगभग चौथाई साइज़ की होती हैं, अगर आपने चांदनी चौक, दिल्ली में चलने वाली फटफट सेवा देखी हो तो कुछ कुछ वैसी ही होती है वहां की ज्यादातर बसें। रुकिए! अब यह मत सोचिये कि वहां भी सवारियों को ठूंस ठूंस कर भरा जाता है, वहां पर हर सवारी को बैठाया जाता है और अगर बैठाने की जगह नहीं होती तो किसी भी हालत में सवारी को नहीं बैठाया जाता.
तो जनाब, पूरा मूड बन चुका था और मैं चल भी दिया, हालाँकि लोगों ने बता दिया था कि समुद्र कोई 10 मिनट दूर है, जगह का नाम “वाटर फ्रंट” है और कंडक्टर को बता देना वो उतर देगा।
मैं सभी निर्देशों का पालन करते हुए, बस में टिकट लेकर बैठ गया, कंडक्टर को बता भी दिया कि “वाटर फ्रंट” आने पर मुझे बता दे। केवल 5 रैन्ड्स का किराया था।
मैंने वहां का मशहूर भारतीय एफएम “लोटस एफएम” अपने मोबाइल पर लगाया और हिंदी गाने सुनते हुए सफ़र का आनंद लेने लगा, खिड़की वाली सीट मिली थी तो मज़ा दोगुना हो चुका था।
कोई 10 मिनट हो गए तो लगा कि हो सकता है स्टॉप आने वाला होगा और मैं बार बार कंडक्टर की दिशा में देखने लगा।
पर यह क्या 10 फिर 12 फिर 15 मिनट हो गए,मुझे लगा कि कंडक्टर को बोलूं फिर लगा कि यह पब्लिक ट्रांसपोर्ट है धीरे धीरे ही चलता है
(आखिर अपने देश का अनुभव साथ था)
तभी कंडक्टर को जैसे मेरी याद आई और उसने कहा की
(इंग्लिश में हुआ वार्तालाप आपको हिंदी में पेश कर रहा हूँ)
“श्रीमान आपको तो “वाटर फ्रंट” उतरना था?”
“हाँ, आ गया?” इतना बोलकर मैं उतरने को तैयार हो गया।
“माफ़ कीजिये, आपका स्टॉप तो निकले हुए देर हो गई, क्या आपको भी अंदाज़ा नहीं था कि “वाटर फ्रंट” कहाँ है?”
मैंने सच बोलते हुए कहा “मुझे नहीं पता”
“कोई बात नहीं श्रीमान, आप यहाँ उतरिये आपको पीछे जाना होगा”
अब क्या हो सकता था, नीचे तो उतरना ही था, मन ही मन अफ़सोस भी था कि अकेला क्यों चला आया इस अनजान जगह पर।
मैं रोड क्रॉस करने लगा तो बस कंडक्टर ने मुझे रोका और कहा कि आप यहीं रुकिए मैं आपके लिए कुछ इन्तेजाम करता हूँ और मेरे वाले बस कंडक्टर ने सामने से आती हुई दूसरी बस रुकवाई, उसके कंडक्टर को समझाया कि मुझे कहाँ उतरना है और उसको 10 रैन्ड्स दिए।
यह मेरे लिए आश्चर्यजनक था मैंने उसको पैसे देने से रोका पर उसने कहा कि यह उसकी नैतिकता के खिलाफ होगा अगर हमारे देश में एक मेहमान को मेरी ग़लती के पैसे भरने पढ़े। मैंने उसको बहुत मना किया पर वो नहीं माना, यहाँ तक कि मैंने उसको ज्यादा किराये के पैसे ही देने चाहे पर उसने नहीं लिए, उसके लिए उसकी नैतिकता महत्त्वपूर्ण थी।
उसका मानना था कि जब मैंने उसको स्टॉप पर उतारने के लिए बोला था और उसने स्वीकार किया था तो उसको करना ही था। फिर ऊपर से मैं दक्षिण अफ्रीका में मेहमान था, तो वो नहीं चाहता था कि उसके देश की छवि को नुकसान पहुंचे।
“वाटर फ्रंट” पर मुझे नए कंडक्टर ने ज़िम्मेदारी से उतरा और आगे जाने का रास्ता भी समझा दिया था।
(हो सकता है आप भी कभी किसी भी देश में इस तरह के हालातों से गुज़रे हों, याद कीजिए कि उस अनुभव में मेरे अनुभव से कितनी समानताएं या विषमतायें थीं)
आज इस बात को 8 वर्ष बीत चुके हैं पर न तो मैं उस कंडक्टर का चेहरा भूला हूँ और न ही उस दिन सीखा हुआ नैतिकता का मतलब भूला हूँ।