बेटी–बहू
बेटी–बहू




हालाँकि कई लोग बोलते हैं कि ज़माना बदल रहा है अब लोग बहू और बेटी में फ़र्क नहीं करते पर ऐसा क्या वाकई हो गया है !
अभी कल की ही बात है एक शादी में जाना हुआ। जैसा कि आम तौर पर भारतीय शादियों में होता है, आगे होने वाली शादियों रिश्तों की बात होने लगी। बात होते होते एक आंटी के बेटे पर गई जिसकी बीवी की मृत्यु एक दो साल पहले हुई थी वो उसके लिए लड़की देख रही थीं और एक दूसरी आंटी से बात कर रही थी, जिनके बेटे की मृत्यु कुछ महीनों पहले हुई थी और उनकी बहू अकेली रह गयी थी।
यहाँ इन दूसरी आंटी का कहना था कि, “बहुओं की भी कहीं शादियाँ की जाती हैं, उसकी शादी कर दी तो आगे जाकर हमारी सेवा कौन करेगा ? बेटे का मामला होता तो जरुर ढूंढते पर अब तो बहू ही सहारा है। उसकी शादी ना बाबा ना !”
इसके ऊपर मैं कुछ कहने में असमर्थ हूँ।